इतिहासविशेष

पहाड़ों से घिरी इस सुंदर ऐतिहासिक नगरी की अपनी अलग ही ऊर्जा है, अपने आप में अनोखा है यह छोटा सा शहर

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संजय सिंह राणा की खास रिपोर्ट

‘‘बड़े लड़ैया गढ़ महोबे के, इनकी मार सही न जाए।

एक को मारे दुई मर जाए, तीजा खौफ खाए मर जाए।”

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महोबा उत्तर प्रदेश का एक छोटा जिला है जो चित्रकूट मंडल का एक भाग है। महोबा शहर इस जिले का मुख्यालय है। महोबा बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित है। 

यह जिला खजुराहो, लौंडा, कुलपहाड़, चरखारी, कालिंजर, ओरछा व झांसी जैसे कई ऐतिहासिक स्थलों के समीप स्थित है। यह जिला 11 फरवरी 1995 को हमीरपुर जिले से विभाजित होकर एक अलग जिले के रूप में स्थापित हुआ।

यह उत्सवों की नगरी थी इसलिए इस नगर को महोत्सव नगर कहा गया। अपभ्रंश के चलते इस नगर का नाम महोत्सव नगर से होते-होते महोबा हो गया। 

कथाएं हैं कि चंदेल राजा हर वर्ष यहां विशेष उत्सवों का आयोजन किया करते थे। इन उत्सवों में दूर-दूर से कलाकार आते थे और अपना हुनर दिखाते थे। इन उत्सवों में होने वाले भव्य मेलों के दौरान कई छोटे-बड़े व्यापारी मुनाफे के उद्देश्य से अपनी विशेष वस्तुएं बेचने के लिए यहां लेकर आते थे। 

यह नगरी उत्सवों के चलते इतनी प्रसिद्ध हुई कि इस नगरी को बुंदेलखंड की राजधानी बना दिया गया। यही वजह है कि इस सुंदर नगरी को इतिहास के पन्नों में विशेष स्थान प्राप्त है।

जिला महोबा को 11 फरवरी 1995 को तत्कालीन महोबा तहसील से अलग करके तत्कालीन हमीरपुर जिले में बनाया गया था।

इसे महोउत्सव-नगर के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है उत्सव का शहर। महोबा को दो प्रसिद्ध योद्धाओं आल्हा और उदल के लिए जाना जाता है, जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और आल्हा, उदल के साहस के कारण, जिस सेना का वे प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उसने युद्ध जीत लिया। 

महोबा को जिला घोषित किए जाने से पहले, यह हमीरपुर जजशिप का एक बाहरी न्यायालय था और तीन बाहरी न्यायालय, एक अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश और एक सिविल जज (जूनियर डिवीजन) का न्यायालय और न्यायिक मजिस्ट्रेट का एक न्यायालय कार्य कर रहा था। जी.ओ. संख्या 2010/7-नया-2-104बी/1994 नया अनुभाग -2 (अधीनस्थ न्यायालय) दिनांक 19/09/1995 के अनुसार जिला और सत्र न्यायाधीश का एक न्यायालय, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का एक न्यायालय, सिविल न्यायाधीश (वरिष्ठ) का एक न्यायालय डिवीजन) न्यायिक मजिस्ट्रेट और मुंसिफ मजिस्ट्रेट बनाए गए। ज्ञापन संख्या 322/डीआर(एस)/57 दिनांक 4 अप्रैल, 1997 के तहत श्री रघु नाथ प्रसाद एच.जे.एस को महोबा जजशिप के पहले जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। तब से लेकर आज तक लगभग 18 जिला जज इस जजशिप में काम कर चुके हैं।

सृजन के बाद महोबा जिले को तीन तहसीलों में विभाजित किया गया था- (1) तहसील महोबा सदर (2) तहसील चरखारी (3) तहसील कुलपहाड़। 

जिला मुख्यालय महोबा में जिला न्यायाधीश के न्यायालय यानी मूल क्षेत्राधिकार के प्रधान न्यायालय के अलावा अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों के तीन न्यायालय यानी अतिरिक्त जिला न्यायाधीश/अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या 01 (विशेष सत्र न्यायाधीश डकैती प्रभावित क्षेत्र) हैं। ), अपर जिला न्यायाधीश/अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या 02 (एससी-एसटी एक्ट के लिए विशेष न्यायालय), अपर जिला न्यायाधीश/अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या 03 नियमित एडीजे स्थापित हैं। अतिरिक्त जिला न्यायाधीश/अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश का एक और न्यायालय है जो पूर्व संवर्ग का न्यायालय है। उपर्युक्त अदालतों के अलावा, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की एक अदालत, एक अन्य सिविल जज (एस.डी.), सिविल जज (जे.डी.) और जेएम की दो अदालतें मुख्यालय में स्थापित की गई हैं। चरखारी में 07/06/2002 से सिविल जज (जे.डी.)/जेएम की एक बाह्य अदालत कार्यरत है। तहसील कुलपहाड़ में सिविल जज (जे.डी./जेएम) की एक और बाहरी अदालत का उद्घाटन 07/01/2011 को किया गया। महोबा जजशिप में लगभग 12 न्यायालय स्थापित हैं।

सबसे बड़े लड़ैया

इसे आप वीरों की नगरी भी कह सकते हैं। महान योद्धा आल्हा-ऊदल की नगरी। वही आल्हा-ऊदल जिनके बारे में आज भी कहा जाता है, ‘आल्हा-ऊदल बड़े लड़ैया।’ भला कौन है, जो उनका नाम नहीं जानता। दोनों महोबा नगर के ऐसे शूरवीर थे कि जिनके नाम मात्र से ही दुश्मन कांप उठते थे। दोनों राजा परमाल के दरबार की शोभा थे। उनकी वीरता के किस्से आज भी इस नगर के जन-जन से सुने जा सकते हैं। बावन गढ़ों पर फतह करने वाला यह नगर शूरवीरों से भरा पड़ा था किसी जमाने में। दोनों लड़ाकों की शान में आज भी आल्हा गाया जाता है, जो उनकी वीरता और बहादुरी के किस्से बयां करता है। आल्हा गाना यहां की विशेष परंपरा है, जिसके तहत समय-समय पर उसे गाया जाता है। उसमें गान के माध्यम से महोबा की वीरता का पूरा इतिहास सुना दिया जाता है।

महोबा आकर आल्हा न सुना तो क्या सुना। वीर रस से भरे इस गान में इतनी उत्तेजना होती है कि कमजोर से कमजोर इरादे वाले की भुजाएं भी फड़कने लगेंगी। खून में वीरता का ऐसा प्रवाह होगा कि सुनने वाला बड़े से बड़े युद्ध के लिए सज जाए। 

आल्हा गाना मौखिक परंपरा है, जो आज तक जीवित है। राजा परमाल के दरबार के राजकवि जगनिक ने इसे रचा था। दुर्भाग्य कि उसकी पांडुलिपियां उपलब्ध नहीं है। लेकिन मौखिक परंपरा ने उसे आज भी जीवंत रखा है।

मान का पान

मेहमान नवाजी में मान देने के लिए पान न हो, तो आतिथ्य कमजोर दिखता है। यहां के पान दुनिया भर में मशहूर हैं। कह सकते हैं कि पान यहां की शान है। पान की खेती भी यहां खूब होती है। पान के खेतों को यहां बरेजे और खेती करने वालों को बरई कहा जाता है। पान की देशावरी नाम की विशेष किस्म यहां पाई जाती है, जो अनोखे स्वाद के कारण पहचानी जाती है। 

हाल ही में यहां के पान को जीआइ टैग मिल गया है। खाने के बाद पान खाने का चलन लगभग यहीं से शुरू हुआ है। 

किसी संग्राम में जाते वक्त योद्धा पान का बीड़ा उठाकर संदेश देते थे कि युद्ध के लिए वे पूरी सजधज के साथ तैयार हैं। यहां के पान के अनोखे स्वाद के बारे में कहा जाता है, ‘‘तुमने का जाने स्वाद कहूंके, का जाने तुमने खान। अगर तुमने चवाओ न भैया, महोबा वालो पान।।’’

अबके बरस सावन में

बुंदेलखंड के प्रमुख पर्वों में से एक है, सावन में मानाया जाने वाला रक्षाबंधन का पर्व। पूरे भारत में महोबा इकलौता ऐसा नगर है, जहां रक्षाबंधन का पर्व दूसरे दिन मनाया जाता है। 

किंवदंती है कि एक बार राखी पर्व पर नगर के राजा राजकुमारों और सभी योद्धाओं के साथ लड़ाई पर गए हुए थे। इस कारण उस दिन यहां रक्षाबंधन नहीं मना। दूसरे दिन जब सभी योद्धा विजय प्राप्त कर लौटे, तो नगर की सभी बहनों ने धूमधाम से दूसरे दिन यह पर्व मनाया। बस तभी से उस विजय की स्मृति में राखी का त्योहार दूसरे दिन ही मनाया जाने लगा। तब से आज तक यही परंपरा है। यहां अगले दिन ही महोबा का प्रसिद्ध कजली मेला लगता है। अपनी भव्यता के लिए यह पूरे देश में प्रसिद्ध है। इस बरस सावन में महोबा संस्कृति देखने के लिए आइए और कजली मेले में शामिल रहिए।

या देवी सर्वभूतेषु

कीरत सागर और मदन सागर जिस तरह शहर में कभी पानी की कमी नहीं होने देते। उसी तरह शहर में मां चंद्रिका भक्तों पर कभी भी अपनी कृपा कम नहीं होने देतीं। मां चंद्रिका का विश्वप्रसिद्ध, ऐतिहासिक मंदिर इसी शहर में है। 

यहां माता के दो रूप विराजे हैं। एक मां छोटी चंद्रिका, दूसरा मां बड़ी चंद्रिका। मंदिर अत्यंत प्रचीन तो है ही, साथ ही साथ यह मंदिर पर्यटकों के विशेष आकर्षण का केंद्र भी है। इसके अतिरिक्त यहां और जगहें हैं, जो प्राकृतिक-सौंदर्य से लबरेज हैं। सूर्य मंदिर, मनिया देव, मां संकरीसनैया, शिवतांडव, बलखंडेश्वर, चकौटा देवी का मंदिर, प्राचीन कालीदेवी का मंदिर और आल्हा-ऊदल बैठक प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

पावन धरा

बुंदेलखंड की पावन धरा में पहाड़ों से घिरी इस सुंदर ऐतिहासिक नगरी की अपनी अलग ही ऊर्जा है। यह छोटा-सा नगर अपने आप में अनोखा है। यह कहा जा सकता है कि अपने अलौकिक सौंदर्य और संपन्नता के चलते ही यह नगर चंदेलों की राजधानी बना होगा। आज भी इस नगर के ठाट-बाट किसी राजधानी से कम नहीं हैं। सच में अनोखी ही है यह वीरों की नगरी।

शिल्प कला का गढ़

महोबा जिला देशभर में अपने उत्तम गौरा पत्थर हस्तकला के लिए प्रसिद्ध है। गौरा पत्थर हस्तकला में इस्तेमाल होने वाला गौरा पत्थर एक शुभ्र सफ़ेद रंग का पत्थर होता है जो ख़ासतौर पर इस क्षेत्र में पाया जाता है।

गौरा पत्थर हस्तकला की कला एवं शिल्प के क्षेत्र में अपनी एक अलग ही पहचान एवं महत्व है। हस्तकला में इस्तेमाल करने से पूर्व गौरा पत्थर को पहले छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है फिर उन टुकड़ो से विभिन्न सजावटी शिल्प वस्तुओं का निर्माण किया जाता है।

महोबा के कारीगरों को विश्व भर में गौरा पत्थर हस्तशिल्प के बेजोड़ नमूने एवं अद्वितीय कलाकृतियों के लिए जाना जाता है।

कारीगरी करने में महोबा के शिल्पकारों का वास्तव में कोई सानी नहीं है। तांबा, पीतल, जस्ता व लोहे से बनी अनेकों कलाकृतियां देश के विभिन्न भागों में पसंद की जाती हैं। इन कलाकृतियों में धार्मिक महत्त्व की मूर्तियाँ, ऐतिहासिक कथ्यों को उजागर करती मूर्तियाँ, सजावटी सामान आदि प्रसिद्ध हैं। 

यहाँ अष्टधातु से निर्मित भगवान शिव की मूर्ति तथा भगवान विनायक की मूर्तियाँ बहुत पसंद की जाती हैं। यह उद्योग कुटीर उद्योग की सीमा लांघ कर लघु यद्योग के श्रेणी में आ पहुंचा है। इसमें अब पारंपरिक शैली के अतिरिक्त आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग भी हो रहा है जिसके कारण निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता व फिनिश विश्वस्तरीय हो गई है। यह उद्योग यहाँ की जनसंख्या के एक बड़े भाग को रोजगार प्रदान करता है। 

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"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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