Explore

Search

November 2, 2024 4:53 am

दस्यु सम्राट दद्दा मलखान एक बार फिर चर्चा में, पढ़िए क्यों ?

3 Views

धर्मेंद्र प्रजापति की रिपोर्ट

गुना। 80 के दशक में डाकुओं के सरदार का खिताब पाने वाले डाकू मलखान सिंह ने 1967 में भिंड जिले के बिलाव गांव के सरपंच की बदमाशी के कारण बंदूक उठा कर सिस्टम से बगावत का एलान किया था। आज 55 साल बाद उन्हीं की बहू गुना जिले में निर्विरोध सरपंच बन गई हैं। मुख्यमंत्री ने ऐसी पंचायत को 15 लाख देने की घोषणा की थी, जहां सरपंच और पंच पद पर महिलाएं निर्विरोध चुन ली जाएं।

एक जमाने में मध्यप्रदेश के बीहड़ को हिलाकर रख देने वाले चर्चित दस्यु सम्राट दद्दा मलखान एक बार फिर चर्चा में हैं। गुना जिले की आरोन तहसील के सुनगयाई पंचायत में उनकी मलखान सिंह पत्नि निर्विरोध सरपंच चुनी गई हैं। उनके साथ 12 पंच उम्मीदवार भी महिलाएं निर्विरोध चयनित हुई हैं।

पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरु होने के साथ ही मलखान सिंह ने यह प्रयास किया था कि पूरी पंचायत में महिला प्रत्याशी चुनकर आएं। उन्होंने ग्रामीणों से बात की तो सभी ने निर्विरोध प्रत्याशी चुनने के विकल्प को सही समझा और मलखान सिंह पत्नि ललिता सिंह सहित सभी प्रत्याशियों को निर्विरोध चुन लिया गया। यह खबर बुधवार सुबह से ही पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है।

दस्यु सम्राट के नाम से चर्चित मलखान सिंह ने न केवल पंचायत में निर्विरोध प्रत्याशी चुनवाकर तमाम खर्चे और विरोध टालने का सराहनीय काम किया है, बल्कि महिलाओं को प्रतिनिधित्व देकर अन्य पंचायतों के लिए मिसाल पेश की है। सुनगयाई पंचायत के सभी ग्रामीण इस निर्णय पर एकजुट हैं और उन्हें इस बात की प्रसन्नता है कि वह शत-प्रतिशत महिला पदाधिकारियों वाले पंचायत के नागरिक बन गए हैं।

कौन हैं मलखान सिंह?

बता दें कि मलखान सिंह पूर्व दस्यु रहे हैं। भिंड जिले के बिलाव गांव में पैदा हुए मलखान सिंह ने जुल्म और पुलिसिया रवैये से तंग आकर बंदूक उठाई थी। इसके पीछे का कारण भूमि विवाद था। मलखान सिंह के गांव के दबंगों ने जब मनमानी शुरू की तो उन्होंने जवाब दिया। जिसके चलते उसे कुछ दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा। ऐसे में जब मलखान ने बंदूक उठाई तो पूरा चंबल गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा।

कहा जाता है कि गांव बिलाव के सरपंच कैलाश नारायण पंडित से मलखान की दुश्मनी ही उसके बागी होने का कारण रही। मलखान अपने गांव बिलाव में एक छोटे से स्थानीय मंदिर से जुड़ी कुछ भूमि पर कैलाश के अतिक्रमण से नाराज था। इसी के कारण हर बार नौबत पुलिस तक पहुंचती थी। साल 1972 में, भूमि विवाद के चलते मलखान सिंह ने बंदूक उठाई। फिर 1972 से 75 के बीच उन पर डकैती के तीन मामले दर्ज किए गए।

1982 में किया आत्मसमर्पण

फिर 15 जून 1982 में 70 हजार के इनामी डाकुओं के सरदार मलखान सिंह और उनकी गैंग ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद मलखान 6 साल जेल में रहे और साल 1989 में सभी मामलों में उन्हें बरी करके रिहा कर दिया गया। जेल से छूटने के बाद मलखान सिंह ने राजनीति का रुख किया। साल 2014 में वह भाजपा का प्रचार करते दिखे, लेकिन 2019 में उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने भाजपा छोड़ प्रसपा का दामन थाम लिया, लेकिन लोकसभा चुनावों में वह हार गए।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."