दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
ये कहानी UP के अमरोहा के बावनखेड़ी गांव की है। एक-दूसरे के लिए जीने-मरने की कसम खा चुके प्रेमी जोड़े ने सात जिंदगियां छीन लीं। घटना इतनी वीभत्स थी कि तत्कालीन CM मायावती को सूचना मिलते ही अमरोहा जाना पड़ा।
15 अप्रैल 2008, रात के 1 बजे। शबनम अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने परिवार के छह लोगों की हत्या कर चुकी थी। तभी 11 महीने का एक बच्चा रोने लगा। शबनम ने सलीम को फोन करके बुलाना चाहा। सलीम बोला, “मैं नहीं आऊंगा तुम मार दो।” शबनम ने बच्चे का गला तब तक दबाए रखा जब तक वो मर नहीं गया। शबनम ने सातवां खून कर दिया था।
अमरोहा के बावनखेड़ा गांव में शबनम के पिता शौकत की बड़ी इज्जत थी। चूंकि वह कॉलेज के लेक्चरर थे इसलिए गांव में किसी को कोई जरूरत पड़ी तो वह उनके पास आ जाते। शबनम का एक भाई इंजीनियरिंग और दूसरा भाई MBA कर चुका था। शबनम खुद पहले इंग्लिश से फिर भूगोल से MA कर चुकी थी। पिता की ही तरह लेक्चरर बनने का ख्वाब था। तभी शबनम को प्यार हो गया।
शबनम को बावनखेड़ा गांव के पांचवी फेल सलीम से प्यार हो गया। दोनों परिवार से छिपकर एक-दूसरे से मिलने लगे। फिजिकल रिलेशन बना और शबनम प्रेग्नेंट हो गई। हालांकि, इस बात का खुलासा बहुत बाद में हुआ। प्यार की बात शबनम के परिवार तक पहुंची तो पिता शौकत के अलावा दोनों भाइयों ने भी ऐतराज जताया। शबनम ने सभी को समझाने की कोशिश की, सलीम को अच्छा बताया, लेकिन बात नहीं बनी। परिवार अपनी जिद पर अड़ गया कि वह सलीम को भूल जाए।
शबनम के सिर पर अब खून सवार हो गया था। उसने मान लिया था कि परिवार को खत्म करके ही सलीम से निकाह किया जा सकता है इसलिए उसने सलीम से जहर मंगवाया। सलीम ने 13 अप्रैल 2008 को बाजार से जहर खरीदकर उसे दे दिया। 14 अप्रैल की सुबह तक परिवार के सभी घर पर ही थे। दोपहर में दोनों भाई शहर के लिए निकल गए। शबनम ने दोनों भाइयों को फोन करते हुए कहा, “जहां भी पहुंचे हैं वहां से वापस आ जाइए, कल जाइएगा।” भाइयों ने शबनम की बात मान ली और घर वापस आ गए।
शबनम के घर में उसकी भाभी और मौसी की बेटी ने मिलकर खाना बनाया। रात नौ बजे तक सभी ने खाना खा लिया। तभी शबनम ने पूछा “कौन-कौन चाय पिएगा?” सभी ने हां में सिर हिला दिया। शबनम ने उबलती चाय में जहर की पुड़िया खोली और मिला दी। सभी को चाय दी, लेकिन खुद नहीं पी। चाय पीने के बाद सभी अपने कमरे में गए। जहां उनका दम घुटने लगा और मर गए। शबनम को जहर पर यकीन कम था इसलिए उसने सलीम को फोन करके बुलाया।
सलीम अपने साथ एक कुल्हाड़ी लेकर आया। शबनम के कहने पर उसने पहले शौकत के सीने पर कुल्हाड़ी मारी। उसके बाद मां पर, फिर दोनों भाइयों, भाभी और मौसी की लड़की को कुल्हाड़ी से मारकर मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद सलीम कुल्हाड़ी लेकर भाग गया। रास्ते में एक तालाब दिखा उसी में कुल्हाड़ी फेंक दी। तभी सलीम के फोन की घंटी बजी। दूसरे साइड शबनम थी, उसने कहा, “वापस चले आओ, भतीजा जिंदा है।” सलीम बोला, “अब मैं नहीं आऊंगा तुम मार दो।” शबनम ने 11 माह के भतीजे का गला तब तक दबाए रखा, जब तक कि उसकी मौत नहीं हो गई।
रात करीब 2 बजे शबनम दहाड़े मारकर रोने लगी। आसपास के लोग आ गए। शबनम ने कहा, “घर में लुटेरे आ गए थे उन्होंने सबको मार दिया। मैं बाथरूम में थी इसलिए बच गई।” चार कमरों के घर में चारों तरफ सिर्फ लाशें नजर आ रही थीं। खबर इतनी बड़ी थी कि रात में ही लोकल थाने से लेकर लखनऊ होते हुए दिल्ली तक पहुंच गई। सुबह सूरज निकलने से पहले दस थानों की पुलिस फोर्स पहुंच चुकी थी। डॉग स्क्वाड पूरे गांव का चक्कर लगा रहे थे। फोरेंसिक वाले पूरे घर की बैरिकेडिंग करके सैंपल इकट्ठा कर रहे थे।
7 लोगों की हत्या 15 अप्रैल का सबसे बडा़ मुद्दा बन गई। कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए। उस वक्त की मुख्यमंत्री मायावती हेलिकॉप्टर के जरिए अमरोहा पहुंच गईं। लगातार रो रही शबनम के सिर पर हाथ रखते हुए आरोपियों पर सख्त कार्रवाई की बात कही। पांच लाख का चेक देने का ऐलान पहले से कर चुकी थीं। हालांकि, घटना स्थल पर मामले की जांच कर रहे इंस्पेक्टर आर पी गुप्ता ने मायावती के PA से शबनम को अभी मुआवजा न देने की अपील की। चूंकि उन्हें शबनम पर शक था तो उन्होंने कहा, “24 से 48 घंटे का समय दे दीजिए, पोस्टमॉर्टम और फोरेंसिक रिपोर्ट आ जाए तब मुआवजा दिया जाए।”
16 अप्रैल को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई। पता चला कि किसी भी व्यक्ति ने मौत से पहले कोई संघर्ष नहीं दिखाया। मतलब किसी ने भी कुल्हाड़ी के वार को रोकने की कोशिश की नहीं की। ऐसा इसलिए क्योंकि जहर की वजह से या तो उनकी जान जा चुकी थी या फिर वह बेहोश थे। इंस्पेक्टर आरसी गुप्ता को यहीं पहला पॉइंट मिल गया, जब पूरा परिवार बेहोश था तो शबनम कैसे होश में थी? उस वक्त जो हालात थे उसमें पूछताछ भी नहीं की जा सकती थी इसलिए आर पी गुप्ता ने सबूत जुटाना जारी रखा।
शबनम ने रोते हुए बताया था कि छत के जरिए बदमाश घर में घुसे थे। यह पहली ही लाइन तब झूठी साबित हो गई जब पता चला कि छत पर जा रही सीढ़ी का दरवाजा तो अंदर से बंद है। फिर जमीन से छत की ऊंचाई 14 फीट पर थी। दीवार प्लास्टर की थी ऐसे में ईंट पकड़कर चढ़ पाने का भी कोई माध्यम नहीं था। बदमाश सीढ़ी से आते तो उसे लेकर क्यों जाते? इंस्पेक्टर आरसी गुप्ता की नजर में शबनम आरोपी बनती जा रही थी, तभी किसी ने खबर दी कि सलीम को उठा लीजिए सब पता चल जाएगा।
आरसी गुप्ता सलीम को पूछताछ के लिए उठाने वाले ही थे कि खबर मिली उससे घटना के अगले दिन ही पूछताछ हुई थी और पुलिस ने उसे क्लीनचिट दे दिया। 17 अप्रैल को उन्होंने सलीम को फिर से बुलवाया और पूछताछ के लिए सख्ती का सहारा लिया। सलीम टूट गया और बता दिया कि हत्या उसने ही की है। सबूत के तौर पर उसने हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी के बारे में बताया जिसे पुलिस ने बरामद कर लिया। अब पुलिस ने शबनम को पूछताछ के लिए बुला लिया।
ये पूरा केस पानी की तरह साफ हो गया था। अमरोहा की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने 3 अगस्त 2010 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सलीम और शबनम को फांसी की सजा सुनाई। जज एसएए हुसैनी ने कहा, “इससे ज्यादा जघन्य कत्लेआम नहीं हो सकता, पुलिस ने जिस तरह से केस को सुलझाया उस तरह से मैंने अपने पूरे जीवन में जांच नहीं देखी।” डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से निकलकर ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट गया। हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखा। सलीम और शबनम को माफी की उम्मीद थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट गए लेकिन वहां भी फांसी की सजा बरकरार रही।
शबनम और सलीम ने अपने सारे कानूनी दांव आजमा लिए, लेकिन कहीं भी माफी नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने पिछले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को दया याचिका भेजी जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। शबनम के वकील सहर नकवी ने UP की गवर्नर आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखा, उसमें उन्होंने कहा,
आज तक भारतीय इतिहास में किसी महिला को फांसी नहीं हुई है। शबनम को होगी तो पूरी दुनिया में भारत की बदनामी होगी। अतः शबनम की सजा को उम्रकैद में बदल दीजिए।
गवर्नर ने इस मामले को UP सरकार को ट्रांसफर कर दिया जहां से अभी तक कोई फैसला नहीं आया। सलीम प्रयागराज जिले की नैनी और शबनम रामपुर की जेल में बंद है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."