दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
होली 2022 में कई मायनों में अनोखी नजर आ रही है। एक ओर कोरोना संक्रमण का शोर थम चुका है तो दूसरी ओर काशी में सियासी रंग भी अब घुल चुका है। फाल्गुन शुक्ल-एकादशी को काशी में रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ ऐसे में रंगभरी एकादशी के मौके पर काशी में भोले शंकर को पहला गुलाल लगाने की परंपरा का निर्वहन सोमवार को किया गया।
पौराणिक परम्पराओं और मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के उपरान्त पहली बार अपनी प्रिय काशी नगरी आये थे । इस पुनीत अवसर पर शिव परिवार की चल प्रतिमायें काशी विश्वनाथ मंदिर में लायी जाती हैं और बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंगल वाध्ययंत्रो की ध्वनि के साथ अपने काशी क्षेत्र के भ्रमण पर अपनी जनता, भक्त, श्रद्धालुओं का यथोचित लेने व आशीर्वाद देने सपरिवार निकलते है।
यह पर्व काशी में माँ पार्वती के प्रथम स्वागत का भी सूचक है । जिसमे उनके गण उन पर व समस्त जनता पर रंग अबीर गुलाल उड़ाते, खुशियाँ मानते चलते है जिसमे सभी गलियां रंग अबीर से सराबोर हो जाते है और हर हर महादेव का उद्गोष सभी दिशाओ में गुंजायमान हो जाता है और एक बार काशी क्षेत्र फिर जीवंत हो उठता है जहाँ श्री आशुतोष के साक्षात् होने के प्रमाण प्रत्यक्ष मिलते है ।
इस दौरान तस्वीरों में काशी का होलियाना मिजाज भी खूब झलका…
पूर्व महंत के आवास से गौरा की पालकी यात्रा बाबा दरबार की ओर निकली तो काशी वासी रंगों से सराबोर नजर आए।
शिव और गौरा को अबीर और गुलाल से रंगने के बाद बाबा दरबार में आस्था की कतार गुलजार रही। हर हर महादेव का उद्घोष शिव की नगरी में उल्लास का पर्याय बना नजर आया।
बाबा की पालकी गुजरी तो हर कोई किनारे मौजूद रहकर पालकी को छूकर आशीर्वाद पाने की कामना करता नजर आया।
पालकी का रास्ते भर इंतजार लोगों की भीड़ करती रही और हर हर महादेव का उत्साह बाबा की नगरी में दिन भर परवान चढ़ती रही।
वहीं पालकी यात्रा के पूर्व रजत पालकी को सजाकर तैयार किया गया और पालकी को हाथ लगाने वालों की कतार लगातार बढ़ती रही।
पालकी के हिस्सों को जोड़कर बाबा दरबार में आस्था दिन भर परवान चढ़ती रही और बाबा दरबार में रंगोत्सव का उल्लास छलकता रहा।
पालकी यात्रा के रास्ते में डमरू दल हर हर महादेव का उद्घोष कर बाबा की पालकी का इंतजार करता नजर आया।
रास्ते में शिव पार्वती की झांकी ने गौरा के गौना विदायी की जीवंत प्रस्तुतियां दीं और बाबा के दरबार में आस्था एकाकार होती रही।
पालकी के आने की आहट हुई तो डमरू की डमडम से पूरी विश्वनाथ गली गूंज उठी और बाबा दरबार में आस्था का कोई ओर छोर नहीं रहा।
बाबा दरबार तक रंगों का उल्लास बिखरा रहा तो बाबा दरबार में डमरू दल की धुन ने लोगों का मन भी मोह लिया।
डमरू दल ने रास्ते भर बाबा की पालकी का स्वागत किया तो लोगों का उत्साह भी चरम पर नजर आया और आस्था दिन भर परवान चढ़ती रही।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."