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यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों की आपबीती बताई जो सुनकर भारत का दिल दहल उठा

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अभिनव गोयल

‘शाम का वक्त था. यूक्रेन के टेरनोपिल शहर से पोलैंड बॉर्डर पहुंचने के लिए बहुत मुश्किल से मुझे दो हजार रुपये में बस की टिकट मिली. बस ने बीच रास्ते में ही मुझे छोड़ दिया. तापमान माइनस में था, सर्दी बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं करीब 45 किलोमीटर पैदल चलकर यूक्रेन-पौलेंड सीमा के चेक पोस्ट पर पहुंची. वहां कहा गया, ‘इंडियन आर नोट अलाउड टू गो’.”

ये आपबीती उत्तर प्रदेश के झांसी की रहने वाली बिंदु की है.

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बिंदु यूक्रेन की टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं.

भारत से मीडिया ने बिंदु के नंबर पर संपर्क किया. बिंदु ने फोन पर पूरी कहानी सुनाई, ” रात में तापमान माइनस चार डिग्री तक चला गया था. हमारे पास ना खाने के लिए कुछ था और ना रुकने के लिए कोई शेल्टर था. हम लोग आग जला रहे थे लेकिन यूक्रेन के सैनिक बार बार आग बुझा देते थे”

घंटों लाइन में लगते थे लेकिन नंबर नहीं आता था. लाइन में थोड़ा सा टच होने पर धक्का देने लगते थे. भारतीय छात्रों के साथ मारपीट भी की जा रही थी. यूक्रेन में ऐसा भेदभाव हमने पहले कभी नहीं देखा. 27 फरवरी की रात दो बजे पौलेंड का वीजा मिला. सिर्फ लड़कियों को जाने दिया. पौलेंड में दाखिल होने के बाद अब कोई दिक्कत नहीं है”

बॉर्डर पर भारतीयों छात्रों के साथ हो रही परेशानी को लेकर पोलैंड के राजदूत और शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी के बीच ट्विटर पर बहस हुई. प्रियंका चतुर्वेदी ने आरोप लगाया कि बहुत से भारतीय स्टूडेंट्स को पोलैंड में घुसने से रोक दिया गया है. इसके जवाब में पोलैंड के राजदूत एडम बुराकोव्स्की ने लिखा,”मैडम, ये बिल्कुल भी सच नहीं है. पोलैंड की सरकार ने यूक्रेन से लगती सीमा से घुसने से किसी को भी मना नहीं किया है.”

यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों से हो रहे भेदभाव की ख़बरें भारत सरकार तक भी पहुँची हैं. भारत सरकार ने छात्रों को सकुशल स्वदेश वापस लाने के लिए यूक्रेन के चार पड़ोसी देशों में विशेष दूत भी तैनात करने का फैसला लिया है. ये दूत समन्वय स्थापित करते हुए लोगों को बाहर निकालने की प्रक्रिया को देखेंगे.

लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद ये मुश्किल सिर्फ एक भारतीय छात्रा बिंदु की नहीं है बल्कि यूक्रेन के अलग अलग शहरों में फंसे हजारों भारतीय छात्रों की है. इनमें से एक की गोलीबारी में मौत भी हो गई है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसकी जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि मंत्रालय परिजनों के संपर्क में है और उन्होंने परिजनों के प्रति सहानुभूति प्रकट की है.

यूक्रेन के खारकीएव में फंसे भारतीय छात्र

यूक्रेन के पूर्व में स्थित खारकीएव शहर रूस से करीब 50 किलोमीटर दूर है. वहीं इस शहर की दूरी राजधानी कीएव से करीब 600 किलोमीटर है. खारकीएव से पौलेंड, रोमानिया या हंगरी बॉर्डर पहुंचना भी आसान नहीं है. खारकीएव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पांच सौ से ज्यादा भारतीय छात्र फंसे हुए हैं. इतनी ही छात्र खारकीएव के पास सुमी शहर में भी हैं. ऐसे में यूक्रेन के पूर्व में फंसे छात्रों की वतन वापसी कैसे होगी ?

खारकीएव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी हॉस्टल के बंकर में फंसे भारतीय छात्रों से बीबीसी ने वीडियो कॉल पर बात की. उपासना पांडे यूपी के गोरखपुर की रहने वाली हैं जो पिछले पांच दिनों से बंकर में रह रही हैं. उपासना बताती हैं, ”खारकीएव से पोलैंड और हंगरी बॉर्डर पहुंचने के लिए ट्रेन से एक दिन लगता है. लोग बोल रहे हैं कि आप बॉर्डर पर क्यों नहीं जा रहे? यहां डबल मार्शल लॉ लगा हुआ है, शूट एट साइट का ऑर्डर है, ऐसे में हम कैसे बॉर्डर तक जा सकते हैं.”

जम्मू-कश्मीर की रहने वाली विशाखा बताती हैं, ”पूर्वी यूक्रेन के शहरों में फंसे बच्चों के लिए कुछ नहीं किया जा रहा, यहां तक की हमारे लिए एडवाइजरी तक नहीं आती है. पांच दिन से बंकर में फंसे हैं. कैसे बाहर निकाला जाएगा. क्या हमें रूस बॉर्डर से एंट्री मिलेगी ? इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही”

विशाखा बताती हैं, ”मुझसे ज्यादा मेंटल ब्रेकडाउन मेरे परिवार का हो रहा है”.

वीडियो इंटरव्यू के बीच में ही विशाखा की मां भी बीबीसी से बातचीत के लिए जुड़ीं. अपनी बेटी को मोबाइल स्क्रीन पर देख मां भरभरा कर रोने लगती हैं. मां बेटी से कहती हैं, ”आपका फोन बंद होता है ना, हमारी जान निकल जाती है”. मां को ढांढस बंधाते हुए बेटी कहती है, ”मम्मी हम आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों आ जाएंगे. रूस की सेना के टारगेट से बचने के लिए हमें फोन बंद करना पड़ता है”.

रोते रोते मां कहती हैं ”भारत सरकार चाहे तो सब कुछ कर सकती है. सरकार से बस एक गुजारिश है कि मेरी बेटी को मुझ तक पहुंचा दो”.

इस बीच भारत सरकार ने एक बार फिर भारतीय नागरिकों को सुरक्षित यूक्रेन से निकालने की अपनी माँग को मंगलवार को भी दोहराया है.

रोमानिया बॉर्डर पर फंसे भारतीय छात्र

सिक्किम के रहने वाली बीरी के मन में बस एक ही सवाल है कि उनकी बेटी भारत कब लौटेगी ? बीरी की बेटी ग्रासिआ लपेचा पांच साल पहले यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए गई थीं. ग्रासिआ यूक्रेन की विनितसिया नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं. यूक्रेन के विनितसिया शहर से रोमानिया बॉर्डर की दूरी करीब 300 किलोमीटर है.

ग्रासिआ लेपचा ने बीबीसी को बताया, ”26 फरवरी को यूनिवर्सिटी से रोमानिया बॉर्डर के लिए बस ली. यूक्रेन- रोमानिया बॉर्डर पर हजारों छात्र फंसे हुए हैं. बॉर्डर पर पहुंचने के बाद भी मुझे रोमानिया में एंट्री नहीं मिली”.

ग्रासिआ के मुताबिक लंबे इंतजार के बाद उसे 28 फरवरी की सुबह रोमानिया में एंट्री मिली. ग्रासिआ लेपचा के साथ मणिपुर की रुकसाना, निमशिम और एक लड़का भी है. फिलहाल ग्रासिआ और उसके दोस्तों को रोमानिया के वॉलंटरी टाउन में रखा गया है.

ग्रासिआ की मां बीरी का कहना है, ”कल शाम से मेरी बेटी रोमानिया में है. मेरी बेटी रोमानिया में भारतीय दूतावास से कोई संपर्क नहीं कर पा रही है ना ही वहां का दूतावास कोई संपर्क कर रहा है. वो भारत कब आएगी कुछ पता नहीं लग रहा है”.

मणिपुर कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के पूर्व सदस्य केसाम प्रदीप के मुताबिक, ”अभी तक की जानकारी के मुताबिक मणिपुर के कुल 14 बच्चे फंसे हुए हैं. सात बच्चे यूक्रेन से निकलकर रोमानिया पहुंच गए हैं वहीं सात बच्चे यूक्रेन के अलग अलग इलाकों में हैं. एक बच्चे का पासपोर्ट गुम होने की जानकारी भी मिली है जिसे लेकर हम सरकार से बातचीत कर रहे हैं. मणिपुर के मुख्यमंत्री भी लगातार बात हो रही है”

रूस-यूक्रेन संकट पर भारतीय रुख से नाराजगी

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के यूक्रेन के ख़िलाफ़ हमले के प्रस्ताव पर भारत ने न तो इसके पक्ष में वोट किया था और ना ही इसका विरोध किया था. यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के मुताबिक भारत के इस रुख की वजह से यूक्रेन के लोगों में आक्रोश है.

अमृतसर के रहने वाले पृथ्वी, मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गए थे. बीबीसी से वीडियो कॉल पर हुई बातचीत में पृथ्वी बताते हैं, ”यहां लोग गुस्से में हैं. जो भारतीय छात्र मेट्रो में यूक्रेन के लोगों के साथ रह रहे हैं वहां स्थानीय लोगों के साथ काफी लड़ाई होती है. कई लोगों को बहुत गुस्सा आता है. यूक्रेन के लोग बोल रहे हैं कि भारत ने हमारी कोई मदद नहीं की है. हम भी तुम्हें बॉर्डर पार नहीं करवा सकते. हमें सुनने को मिलता है यूक्रेन के सैनिक भारतीयों को देखकर आक्रोश भरा कदम उठाते हैं. बॉर्डर पर भी यूक्रेन आर्मी ने बच्चों के साथ मारपीट की है”

महाराष्ट्र के रहने वाले नीतीश भी कुछ ऐसी ही बात बताते हैं, ”भारत ने न्यूट्रल टेक लिया है UNSC में. मेरा दोस्त लविव मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ता है. वे करीब चालीस लोग ग्रुप में एक साथ बॉर्डर पहुंचे थे यूक्रेन के सैनिकों ने उन्हें भगा दिया गया. मजबूरन उन्हें हॉस्टल वापस आना पड़ा”

यूक्रेन बॉर्डर पार कर पौलेंड पहुंचने वाली बिंदु भी कहती हैं ”ऐसा व्यवहार हमने यूक्रेन में इससे पहले भारतीयों के लिए नहीं देखा. हालांकि कुछ यूक्रेन के लोग खाने पीने में मदद भी कर रहे हैं”

बंकर में रहना कितना मुश्किल

खारकीएव मेडिकल यूनिवर्सिटी और सुमी स्टेट यूनिवर्सिटी में 500 से ज्यादा भारतीय मेडिकल छात्र पिछले पांच दिनों से बंकर में रह रहे हैं. जम्मू-कश्मीर की रहने वाली ख्वाहिश दिसंबर 2020 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गई थीं. बीबीसी से बातचीत में ख्वाहिश बताती हैं, ”मेरी 25 फरवरी को भारत जाने की फ्लाइट बुक थी लेकिन मैं जा नहीं पाई. 24 फरवरी को बमबारी हो रही थी. सुरक्षित स्थान के लिए मैं अपने फ्लैट से हॉस्टल आ गई. तब से हम हॉस्टल के नीचे बंकर में रह रहे हैं”

”बंकर में लड़कियों का रहना काफी मुश्किल है. दिन में सिर्फ पंद्रह मिनट का ब्रेक मिलता है. इसी समय हम अपने कमरों में जाकर फ्रेश हो पाते हैं. हमें दिन में दो बार ही खाना मिलता है एक दोपहर में 1 बजे और दूसरी बार रात में करीब 9 बजे. खाने की मात्रा कम होती है हम बस सर्वाइव कर रहे हैं.”

गोरखपुर की रहने वाली उपासना पांडे बताती हैं, ”बंकर में हिटिंग की कोई व्यवस्था नहीं है. यहां तापमान माइनस में भी चला जाता है. रात गुजारनी काफी मुश्किल होती है. हम किसी तरह एक दूसरे को सब कुछ ठीक होने का भरोसा दिला रहे हैं ताकि उम्मीदें टूटने ना पाएं. बंकर में रहकर वीडियो कॉल पर मां-पिता से बात करना कितना मुश्किल है मैं आपको नहीं बता सकती”

महाराष्ट्र के रहने वाले नीतीश बताते हैं, ”बंकर में हर जगह धूल है. कुछ बच्चों को अस्थमा की बीमारी है. उनको दवाइयों की जरूरत है लेकिन बाहर नहीं जा सकते. मेडिकल की दुकानें बंद हैं. एंबेसी को फोन करते हैं तो वे काट देते हैं या फिर लाइन बिजी आती है”

पंजाब के रहने वाले पृथ्वी बताते हैं, ”हमारी उम्मीद खत्म हो रही है. धीरे धीरे खाने पीने का सामान कम हो रहा है. यहां पर एक हफ्ते से भी कम का स्टॉक बचा है. कल दाल चावल खाने को मिले थे. सबको खाना नहीं मिल पाता. जो बच्चे बच जाते हैं उन्हें अगले दिन ही खाना मिल पाता है”

उत्तराखंड के ऋषिकेश की रहने वाली जिया बलूनी यूक्रेन के सुमी शहर में फंसी हुई हैं. जिया सुमी स्टेट यूनिवर्सिटी से मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं. बीबीसी से बातचीत में जिया बताती हैं, ”जिस दिन रूस ने यूक्रेन पर हमला किया उस दिन बाजार में लंबी लंबी लाइन लगी हुई थी. हमने मुश्किल से खाने पीने का सामान जुटाया. हमें सायरन बजते ही बंकर में पहुंचना होता है”

भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची का कहना है कि यूक्रेन में फंसे भारतीय लोगों को बाहर निकालने के लिए सरकार व्यवस्था कर रही है. घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पर्याप्त उड़ाने मौजूद हैं. (साभार बीबीसी)

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"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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