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होली खेले मसाने में: काशी के घाटों पर जब औघड़ खेलते हैं भस्म की होली

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सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट

वाराणसी, शिव की नगरी, जहां त्योहार भी अलौकिक होते हैं। रंगों का उत्सव होली तो हर जगह खेली जाती है, लेकिन काशी की मसान होली अपनी अनूठी परंपरा और रहस्यमयी माहौल के लिए जानी जाती है।

श्मशान की राख से होली, अघोरियों का अनोखा अंदाज

यह होली साधारण रंग-गुलाल से नहीं, बल्कि चिता की भस्म से खेली जाती है। जिस राख से आम लोग दूर भागते हैं, उसे यहां भक्त प्रसाद मानकर अपने माथे पर लगाते हैं। हरिश्चंद्र घाट और मणिकर्णिका घाट पर जहां दिन-रात चिताएं जलती हैं, वहीं कुछ दिनों के लिए यहां जश्न और उल्लास का अनोखा संगम दिखता है।

यहां हर तरफ राख उड़ती है, डमरू की आवाज गूंजती है और शिवभक्त अपने तन को भस्म से रंगकर शिवमय हो जाते हैं। अघोरी साधु, जो आमतौर पर रहस्यमयी और अलग-थलग रहते हैं, इस दिन खुलकर उत्सव में भाग लेते हैं। वे अपने शरीर पर जानवरों की खाल लपेटे, गले में नरमुंड की माला पहने और हाथों में त्रिशूल लिए नजर आते हैं। कुछ भक्त तो जिंदा सांप लेकर घूमते हैं, तो कुछ आग के गोले लपकते हैं।

क्यों खेली जाती है मसान होली?

इस अनोखी होली के पीछे शिव और उनके गणों की कथा जुड़ी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर काशी लाए थे और अपने भक्तों के साथ होली खेली थी। लेकिन शिव के कुछ गण, भूत-प्रेत, पिशाच और अन्य अघोरी तब इस होली से वंचित रह गए थे। इसलिए, अगले दिन महादेव ने अपने इन गणों के साथ श्मशान में भस्म की होली खेली। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

इतना ही नहीं, इस घाट पर राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी एक और कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को इसी घाट पर डोमराजा कालूराम के हाथों बेचा गया था। उनके सत्य के बल पर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। उसी स्थान से मसान होली की शुरुआत हुई थी।

झांकी, शिव बारात और भक्तों की भीड़

इस भस्म होली के लिए देश-विदेश से हजारों लोग आते हैं। काशी के हर होटल और गेस्ट हाउस इस दौरान फुल रहते हैं। पूरे माहौल में शिवभक्ति का रंग घुल जाता है।

हरिश्चंद्र घाट स्थित मसान मंदिर में सुबह से ही विशेष पूजा होती है। शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, धतूरा और भस्म अर्पित की जाती है। पांच पंडितों द्वारा रुद्राभिषेक के बाद बाबा को धोती और मुकुट पहनाया जाता है। साल में सिर्फ इसी दिन बाबा मसान मुकुट धारण करते हैं।

इसके बाद भव्य झांकी निकलती है। इसमें शिव-पार्वती बने युवक-युवती को रथ पर बिठाया जाता है। झांकी में औघड़, नागा साधु, महिलाएं, बच्चे और शिवभक्तों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। महिलाएं भी इस अनोखे रूप में दिखती हैं—सिर पर मुकुट, हाथ में त्रिशूल, कटार, और मुंह पर काला रंग। मानो साक्षात माँ काली प्रकट हो गई हों।

इसके बाद शिव की बारात निकाली जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। डीजे पर भक्ति गीत गूंजते हैं—

“होली खेले मसाने में, काशी में खेले, घाट में खेले, खेले औघड़ मसाने में…”

इस अनूठे जश्न में हर कोई शामिल होना चाहता है, चाहे वह भक्त हो, अघोरी हो, या कोई विदेशी सैलानी।

मसान होली: जहां मृत्यु के बीच जीवन का जश्न

काशी की मसान होली सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच का एक अनोखा संतुलन है। यहां हर साल यह संदेश दिया जाता है कि मृत्यु भी एक उत्सव है, एक नई शुरुआत है। इसलिए, जब तक जीवन है, इसे पूरी तरह से जीना चाहिए—भय और मोह से परे होकर, शिवमय होकर!

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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