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उत्तर प्रदेश के प्रमुख शिवालय: सावन में भगवान शिव की पूजा के लिए विशेष स्थान

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

गोंडा। सावन माह चल रहा है। मंदिरों पर आस्था उमड़ रही है। हर कोई भगवान भोलेनाथ की आराधना में लगा हुआ है।

गोंडा के खरगूपुर स्थित पृथ्वीनाथ मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी। महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहां पर प्रवास किया था। उस वक्त भीम ने शिवलिंग की स्थापना की थी। यह साढ़े पांच फीट फुट ऊंचा है। काले कसौटी के पत्थरों से यह शिवलिंग निर्मित है।

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सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा को अत्यधिक फलदायी माना जाता है। उत्तर प्रदेश में कई प्रमुख शिवालय हैं, जहां हर मनोकामना पूरी होने का दावा किया जाता है। आइए जानते हैं प्रदेश के कुछ प्रमुख शिवालयों के बारे में:

वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर

यह मंदिर न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के प्रमुख मंदिरों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां भक्त गंगा नदी से जल भरकर बाबा विश्वनाथ पर चढ़ाते हैं। मंदिर के प्रमुख देवता श्री विश्वनाथ हैं, जिसका अर्थ है संपूर्ण ब्रह्मांड के भगवान। 

मान्यता है कि एक बार बाबा विश्वनाथ के दर्शन और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। सावन के महीने में यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

गोला गोकर्णनाथ

लखीमपुर खीरी में स्थित गोला गोकर्णनाथ को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का उल्लेख वाराह पुराण में मिलता है। मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान राम से युद्ध के समय रावण ने कठिन तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। 

भगवान शिव ने शिवलिंग का आकार लेकर रावण को लंका में स्थापित करने का निर्देश दिया, लेकिन रावण ऐसा करने में असफल रहा और क्रोधित होकर उसने अपने अंगूठे से शिवलिंग को दबा दिया, जिससे उसमें गाय के कान जैसा निशान बन गया।

मनकामेश्वर मंदिर

यह मंदिर सरस्वती घाट के पास यमुना नदी के तट पर स्थित है। सावन के महीने में यहां भारी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। विशेष रूप से सोमवार को यहां लंबी लाइन लगती है। श्रद्धालु संगम तट से जल लेकर भगवान शिव को अर्पित करते हैं।

पुराने शहर में ये मंदिर है जहां भगवान शिव विराजमान हैं। सावन में यहां विशेष पूजा-अर्चना के साथ भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है।

मान्यता है कि यहां शिवलिंग की स्थापना खुद भगवान शिव ने द्वापर युग में की थी। प्रचलित कथा के अनुसार, मथुरा में श्रीकृष्ण के जन्म के बाद उनके बाल-रूप के दर्शन की कामना लेकर कैलाश से चले शिव ने एक रात यहां बिताई थी और साधना की थी।

उन्होंने यह प्रण किया था कि यदि वह कान्हा को अपनी गोद में खिला पाए तो यहां एक शिवलिंग की स्थापना करेंगे। अगले दिन जब वह गोकुल पहुंचे तो यशोदा मैया ने उनके भस्म-भभूत और जटा-जूटधारी रूप को देख कर मना कर दिया कि कान्हा उन्हें देख कर डर जाएगा। तब शिव वहीं एक बरगद के पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठ गए। शिव को आया जान कन्हैया ने लीला शुरू कर दी और रोते-रोते शिव की तरफ इशारा करने लगे। तब यशोदा माई ने शिव को बुला कर कान्हा को उनकी गोद में दिया और तब जाकर कृष्ण चुप हुए।

लोधेश्वर महादेव मंदिर

बाराबंकी के रामनगर में स्थित लोधेश्वर महादेव मंदिर का भी काफी महत्व है। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर की स्थापना की थी। सावन में यहां कांवड़ लेकर जल चढ़ाने भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

इस मंदिर का शिवलिंग पृथ्वी पर उपलब्ध 52 अनोखे एवं दुर्लभ शिवलिंगों में से एक है।

ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल से पूर्व भगवान शिव को एक बार फिर से पृथ्वी पर प्रकट होने की इच्छा हुई। पंडित लोधेराम अवस्थी एक विद्वान ब्राह्मण, सरल, दयालु और अच्छा स्वभाव वाला ग्रामीण था। एक रात भगवान शिव ने सपनों में उसे दर्शन दिये। अगले दिन लोधेराम जो पुत्रहीन थे, ने अपने खेत में सिंचाई करते हुए एक गड्ढा देखा जहां से सिंचाई का पानी पृथ्वी में जाकर गायब हो रहा था। उन्होंने उस गड्ढे को पाटने के लिए कड़ी मेहनत की लेकिन असफल रहे। 

रात में उन्होंने फिर से उसी प्रतिमा को अपने सपनों में देखा और मूर्ति को फुसफुसाते हुए यह कहते हुये सुना कि ‘उस गड्ढे में जहां पानी जाकर गायब हो रहा है, मेरा स्थान है। वहां मुझे स्थापित करो। इससे मुझे तुम्हारे नाम से प्रसिद्धि मिलेगी’। अगले दिन जब लोधेराम उस गड्ढे की खुदाई कर रहे थे तो उनका उपकरण किसी कठोर वस्तु से टकराया। फिर उन्होंने अपने सामने वही मूर्ति देखी जो उनके सपने में आई थी। मूर्ति में रक्त स्राव हो रहा था। 

जहां उनका उपकरण मूर्ति पर पड़ा था यह निशान आज भी शिवलिंग पर देखा जा सकता है। इससे लोधेराम भयभीत हो गए परन्तु मूर्ति के लिये खुदाई जारी रखी। पर खुदाई करने के बाद भी वह मूर्ति के दूसरे छोर तक पहुंचने में असफल रहे। उन्होंने उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण किया। जिसे अर्ध-नाम ‘लोधे’ और भगवान शिव के ‘ईश्वर’का नाम दिया। इस प्रकार यह मंदिर भक्त के नाम अर्थात लोधेश्वर से प्रसिद्ध हो गया।

पृथ्वीनाथ शिवधाम

गोंडा जिले के ऐतिहासिक शिवालय बाबा पृथ्वीनाथ धाम की स्थापना भीम ने की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडुपुत्र भीम ने राक्षस बकासुर का वध किया था और पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना की और शिवलिंग की स्थापना की। इसे एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग भी कहा जाता है।

इन प्रमुख शिवालयों में सावन के महीने में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भक्त बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं, अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए।

पुरातत्व विभाग की जांच में पता चला कि यह शिवलिंग 5000 वर्ष पूर्व महाभारत काल का है। जिला मुख्यालय से 33 किमी की दूरी पर पृथ्वीनाथ मंदिर स्थित है। इसके समीप खरगूपुर कस्बा है। यहां पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय से वाया इटियाथोक या आर्यनगर-खरगूपुर-असिधा होते हुए निजी साधनों से पहुंचा जा सकता है। आर्यनगर व इटियाथोक से टैक्सी वाहन भी मिलते हैं।

सबसे ऊंचा है शिवलिंग

मंदिर में स्थापित शिवलिंग एशिया में सबसे ऊंचा बताया जाता है। यहां दर्शन अवधि में नेपाल तक से श्रद्धालु पूजन अर्चन के लिए पहुंचते हैं। पुजारी जगदंबा प्रसाद तिवारी ने बताया कि पौराणिक पृथ्वीनाथ मंदिर का अलग महत्व है। इसकी स्थापना पांडवों ने की थी। यहां का शिवलिंग सबसे ऊंचा है। यहां पर जलाभिषेक का विशेष महत्व है।यहां पर स्थापित शिवलिंग की उंचाई इतनी है कि एड़ी उठाकर ही जलाभिषेक किया जा सकता है। सावन माह भगवान भोलेनाथ का माह है। इसका विशेष महत्व है। इसलिए इस माह में पड़ने वाले सोमवार व शुक्रवार को भगवान शिव का पूजन करने से मन वांछित फल प्राप्त होता है।

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"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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