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बिलासपुर

“कल्याण कला मंच” के कला साधकों ने जब अलग अलग अंदाजों में पहाड़ी सुरों का आह्वान किया तो पढिए फिर कैसी समां बंध गई

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सुरेंद्र मिन्हास की रिपोर्ट

बिलासपुर : कल्याण कला मंचबिलासपुर के कलाकारों वा कलमकारों की मासिक कवि गोष्ठी बड़ोल देवी के चरणों और मां रुकमणी की गोदी में गांव कल्लर की हसीन तलहटी पर संपन्न हुई। 

सन्गोष्ठी की अध्यक्षता मंच के संयोजक अमरनाथ धीमान ने की जबकि मंच का कुशल संचालन तृप्ता कौर मुसाफिर ने किया।

आयोजक भगत सिंह और विशिष्ट अतिथि कर्म सिंह सहित गोष्ठी में चालिस से अधिक कलाकर उपस्थित थे ।

सर्वप्रथम सूबेदार बिरी सिंह चंदेल ने मुरली धुन- ना जाओ श्यामा बिन्दरा बन में तेरे बिन दिल नई ओ लगदा, देवली की स्वर कोकिला चिन्ता देवी भारद्वाज ने-मरेआ करिश्णा जी मार्कण्ड रिशिये रे मेल्ले इक्क बारी जाणे दे, कल्लर की नुरातू देवी ने- फुल्ल बरसाओ इसा बाटडीया ओ म्हारे महिमान आये, छ वर्षीय नन्ही बालिका सुरभि ने– इक बुढ़िया ने था बोया दाना इक गाज्जर का, रपैड की आशा कुमारी ने–कभी आता कभी चला जाता, निचली सोई के लश्करी राम ने जिस घरा च हुँदा टब्बर नई छद्दी आये, ललित चंदेल ने- परिहा भि लई जाणा, शीला सिंह ने– बन बन भटकी सीता विपदा जीवन में झेली भारी, रपैड की कुमारी पूजा — हर करम अपना करेंगे ए वतन तेरे लिये, नये सदस्य डियारा के श्याम सुन्दर ने — झिल्ला रा नजारा दुज्जे शहर ए प्यारा प्यारा, दगसेच की कविता सिसोदिया ने– उठा ले आनन्द वर्तमान पलों का, सायर की ललिता कश्यप ने — रामचरितमानस सखी देता ऐसा ज्ञान, कुमारी निकिता ने– हिम के आंचल में जन्मी हूं मैं , तृप्ता कौर मुसाफिर ने-‘ जन जन का कल्याण करने काले बाबा आये, सुरेन्द्र मिन्हास ने–ख्वाडे घरां ते हुँदे थे थोडी दूर पर सारे जाच रखदे थे जरुर, नगर के चंद्रशेखर पंत ने– मैं पशुओं का राजा हूं फिर भी बहुत भटकता हूं, कृशनी देवी ने– कर कामाई तू नेक बन्देआ इक दिन सब छड्ड जाणा है, तमन्ना देवी नें–तिनका तिनका जोड़ कर आशियाना हमने बनाया है, प्रिया कुमारी ने- जप ले हरिओम तू बन्दे जे मुक्ति को पाना है, भगेड़ के रणजीत वर्धन ने– जिन्दगी में कुच्छ खोया है तो बहुत पाया भी है,, अंजु कुमारी ने– भगवान के भगतों को क्या क्या नजर ना आया, जगदंबा देवी ने– बडी असें उकल बुट्टी री कित्ती सफाई, कुमारी कोमल ने– मेरे दादी दादू भगवान का रूप हर बेल्ले सौगी रन्दे जिहां छांव धूप, आयोजक भगत सिंह ने– सचाई की राह पर जो चला,कांगड़ा से आये आतिथी साहित्यकार कर्म सिंह ने- सेही लत्तां सेही बाहवां, ओ मरेआ जोरा तू गया कुताहां। 

अन्त में कार्यक्रम के अध्यक्ष अमरनाथ धीमान ने गोष्ठी का सार बताने के बाद अपणी रचना यूं सुनाई– रुढाई ते बडे बडे पहाड कोरी दितीयां धारां, खरी चौडी सडक बनाणी छोड पुज्जणा मेरे यारां ।
अंत में सभी ने आयोजकों की ओर से परोसी गई बिलासपुरी धाम का स्वाद चखा ।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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