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आज का मुद्दा

मोदी की 2014 में जहाँ हुई थी चाय पे चर्चा वहाँ पढिए इस बार क्या हो रही कुचर्चा? 

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। एक तरफ जहां विपक्षी दल पीएम मोदी के कार्यकाल की आलोचना कर रहे हैं, तो दूसरी ओर पीएम मोदी जमकर अपने कामकाज गिना रहे हैं। ऐसे में पीएम मोदी का दस साल पुराना कैंपेन चर्चा में आया है, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और बीजेपी ने उन्हें अपना पीएम उम्मीदवार घोषित किया था। उस कैंपेन में चाय पर चर्चा भी काफी पॉपुलर हुआ था, जिसके तहत नरेंद्र मोदी जनता के साथ संवाद करते थे।

लोकसभा चुनाव 2014 की बात करें तो उस दौरान कांग्रेस के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी को चायवाला बताते हुए, उनका मजाक उड़ाया था। 

बीजेपी ने इसे ही अपना चुनावी कैंपेन बना लिया था, जिसका नाम ‘चाय पर चर्चा’ रखा गया था। इसके तहत नरेंद्र मोदी चाय पीते हुए जनता के साथ संवाद करते थे।

ऐसी ही चाय पर चर्चा उन्होंने दस साल पहले 10 मार्च 2014 को महाराष्ट्र के यवतमाल के दाभाडी गांव में की थी। इसमें 1500 से ज्यादा लोगों ने ऑनलाइन पार्टिसिपेट किया था। मोदी ने किसानों की समस्या समझते हुए उसके समाधान का आश्वासन दिया था।

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उस दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि मैं देश के किसानों को विश्वास दिलाता हूं कि हम देश के कृषि क्षेत्र को बदल सकते हैं। देश का जीवन स्तर बदल सकता है। देश के गांवों को बदल सकते हैं। मुझे बस आपका समर्थन चाहिए। हम देश के किसानों के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाएंगे। अब सवाल यह है कि आखिर दस साल बाद उनके कामों को लेकर किसानों की सोच क्या है? इसको लेकर बीबीसी की एक रिपोर्ट में किसानों ने अपने रिएक्शन दिए हैं।

किसानों के बीच नाराजगी का माहौल

दाभाडी में एक किसान ने निराशा जाहिर करते हुए कहा कि कपास की दरें पलट गईं हैं और 15 दिन पहले तक जो रेट 7700 था, वो अब 7200 और 7300 रुपये तक आ गया है। उन्होंने कहा कि हमें दस हजार रुपये मिलने की उम्मीद थी लेकिन उतना नहीं मिलता है। किसानों की लाइफ में आए बदलाव को लेकर दाभाडी के दिगंबर गुल्हाने ने कहा था कि 2014 के बाद यह हालत ज्यादा संतोषजनक नहीं हैं। कृषि उपज की कीमत की बात करें तो ये अंतरराष्ट्रीय कीमत की हिसाब से तय होती है।

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एक अन्य किसान भास्कर ने पीएम किसान योजना के पैसे मिलने का जिक्र किया है लेकिन फसल बीमा योजना पर उन्होंने नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने कहा कि इसमें फर्जीवाड़ा हो रहा है। गांव के दो तीन किसानों को ही फायदा होता है और उन्हें आवेदन के बावजूद कपास से नुकसान पर कोई सहायता नहीं मिली।

याद दिलाएं वादे तो थाने में किए गए नजरबंद

इसी तरह एक अन्य किसान विजय ने कहा कि मैं मोदी के कार्यक्रम में था। 2014 के बाद भी गांव में एक-दो किसानों ने आत्महत्या की है। मोदी ने कपड़ा मिलों, सोयाबीन प्रसंस्करण उद्योग का वादा किया था। विजय ने बताया कहा कि मोदी को उनके वादे याद दिलाने के लिए गांव में बैनर लगाया गया कि आपने वादे किए थे, पूरे नहीं किए, यहां ध्यान दीजिए. लेकिन, उस दिन चैनल पर बोलने वालों को ही एक दिन के लिए थाने में नज़रबंद रखा गया।

दिलचस्प बात यह भी है कि देश में किसान लगातार मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं। ऐसे में इस किसानों की नाराजगी से मोदी सरकार के किसानों की मुसीबत बढ़ सकती है।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

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