“पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर 404 दिन पुराने किसान आंदोलन को महज चार घंटे में खत्म कर दिया गया। पुलिस ने बैरिकेड तोड़कर तंबू हटाए और किसानों को हिरासत में लिया। एमएसपी की कानूनी गारंटी पर अब भी असमंजस बरकरार है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट।”
404 दिनों से जारी किसान आंदोलन को महज चार घंटे में कुचल दिया गया। पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर पुलिस और प्रशासन ने सख्त कार्रवाई करते हुए बैरिकेड्स हटाए, अस्थायी ढांचे तोड़े और आंदोलन स्थल को पूरी तरह खाली करा लिया। किसानों के तंबू और मंच उखाड़ दिए गए, अनाज और सब्जियां सड़कों पर बिखेर दी गईं। इस कार्रवाई के तहत 700 से अधिक किसानों को हिरासत में लिया गया, वहीं अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को सेना के नियंत्रण वाले एक गेस्ट हाउस में शिफ्ट कर दिया गया। नाराज डल्लेवाल ने विरोधस्वरूप पानी तक पीने से इनकार कर दिया है।
पूर्व-नियोजित रणनीति या अचानक फैसला?
हालांकि, यह कार्रवाई अचानक दिखाई दी, लेकिन इसे पूर्व-नियोजित रणनीति के रूप में भी देखा जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि जब दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन हो रहा था, तब आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार किसानों को हर संभव सहायता उपलब्ध करा रही थी। अरविंद केजरीवाल ने तब किसानों को जेल भेजने के केंद्र सरकार के आग्रह को भी ठुकरा दिया था। लेकिन अब, जब पंजाब में ‘आप’ की सरकार है, तो भगवंत मान सरकार ने व्यापारियों और उद्योगपतियों के दबाव में आकर आंदोलन को सख्ती से समाप्त करने का निर्णय लिया। यह विरोधाभास ध्यान देने योग्य है।
राजनीतिक समीकरण और चुनावी गणित
पंजाब में लुधियाना उपचुनाव की चुनौती ‘आप’ सरकार के सामने है। ऐसे में, यह माना जा रहा है कि उद्योगपतियों और व्यापारियों के दबाव में आकर सरकार ने यह कड़ा कदम उठाया। इसके अलावा, 2027 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि किसानों का एक बड़ा तबका ‘आप’ के खिलाफ मतदान कर सकता है। हालांकि, यह भी सच है कि किसान संगठनों में अब एकता की कमी है। आंदोलन के दौरान कई गुट अलग-अलग हो चुके हैं, जिससे किसी भी वार्ता का सार्थक नतीजा नहीं निकल पा रहा है।
एमएसपी की कानूनी गारंटी: हकीकत या जुमला?
एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों की प्रमुख मांग रही है, लेकिन सरकार के लिए इसे लागू करना आसान नहीं है। चंडीगढ़ में हुई सातवीं बैठक के दौरान किसान संगठनों ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए 25,000 से 30,000 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान लगाया गया था। इस पर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने नाराजगी जाहिर की और स्पष्ट किया कि यदि एमएसपी की गारंटी दी गई तो पंजाब से गेहूं और धान की सरकारी खरीद का कोटा अन्य राज्यों में भी बांटना पड़ेगा। इससे पंजाब की कृषि अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा। किसानों ने इस बात पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे भी इस जटिलता को समझ रहे हैं।
आर्थिक नुकसान और आंदोलन का असर
इस आंदोलन के चलते औद्योगिक संगठनों का आकलन है कि पंजाब-हरियाणा क्षेत्र को करीब 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। टोल टैक्स के जरिए जो राजस्व आता था, उसमें भी हर दिन लगभग 72 लाख रुपये की हानि हुई। इसके अलावा, पंजाब की अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर पड़ा, जिससे लगभग 70 लाख लोगों के रोजगार प्रभावित हुए।
अब आगे क्या?
अब जब शंभू और खनौरी बॉर्डर पूरी तरह से खाली हो चुके हैं, सवाल यह उठता है कि किसान अब क्या करेंगे? एमएसपी की कानूनी गारंटी का मुद्दा फिलहाल अधर में लटकता नजर आ रहा है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि देशभर के किसान इस मुद्दे पर एकमत नहीं हैं। कई कृषि विशेषज्ञ भी मानते हैं कि एमएसपी की कानूनी गारंटी व्यावहारिक नहीं है।
किसान आंदोलन का इस तरह समापन होना, राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। सरकार ने इसे कुचलने में कामयाबी हासिल की, लेकिन इससे किसानों की असंतुष्टि खत्म नहीं होगी। एमएसपी का मुद्दा अब भी अनसुलझा है, और जब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकलेगा, किसानों का असंतोष आगे भी किसी न किसी रूप में उभर सकता है। सवाल यह भी है कि क्या एमएसपी की कानूनी गारंटी सिर्फ एक चुनावी ‘जुमला’ थी, या इसे लागू करने की कोई वास्तविक योजना थी? फिलहाल, स्थिति यह संकेत देती है कि सरकार इस मुद्दे पर पीछे हट रही है और किसान संगठन अपने भविष्य की रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर हैं।
➡️अनिल अनूप
