सौम्या अवस्थी की रिपोर्ट
मैं मणिपुर हूं। भारत के सुदूर उत्तर-पूरब की बेटी। भारत की विविधता और प्राकृतिक सुंदरता को ऊंची पहाड़ियों के बीच समेटे हुए पूरब का स्विटजरलैंड हूं। गौरवशाली अतीत और पर्यटन की थाती पर लोटती विहंगम दृश्यों की जननी हूं, पर आज शर्मिंदा हूं।
मेरा सिर शर्म से झुका है और झुकता ही जा रहा है। मेरे अपने ही संतान एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं। मेरी बेटियों की आबरू सरे-आम नीलाम हो गई। हां, मैं वही मणिपुर हूं।
तिनके-तिनके में बिखर गई है मेरी सुंदर काया और सभी को सम्मोहित कर लेने की अपार नैसर्गिक क्षमता। अब मैं जीर्ण-शीर्ण मणिपुर हूं। अपने ही बेटों की मौत पर विधवा-विलाप करने वाली लाचार, फटेहाल मां हूं। बेटी के नग्न शरीर पर अट्टाहास कर रहे लोगों की जीती जागती गवाह हूं। हां, मैं वही रोती-बिलखती मणिपुर हूं।
अतीत में 108 राजा-महाराजाओं के शासन में भी इतनी नहीं रौंदी गई, जितनी मेरी ही संतानों ने मुझे रौंदा है। मेरी ही छाती से लिपटे और मेरे ही स्तन से खेलते मेरे ही दुधमुंहे राक्षस हो गए। मेरी ही बेटियों से बलात्कार करने लग गए। अपने के ही माथे पर अपनों के कलंक का टीका थोपे बैठी हूं। मैं वही अभागिन मणिपुर हूं।
मैं 30 से ज्यादा जन जातियों को समाहित कर रखने वाली मां हूं। धार्मिक विविधता को अक्षुण्ण बनाए रखने वाली पहचान हूं। राधा और कृष्ण की रासलीला को बचाए रखने वाली प्राण हूं। लोक संगीत और पारंपरिक गीत-संगीत का खजाना हूं। गौरवशाली सांस्कृतिक महोत्सवों और वैविध्य खान-पान की अमिट कहानी हूं लेकिन शर्म से पानी-पानी हूं। हां,मैं वही शर्मसार मणिपुर हूं।
मेरी ही छाती पर हो रहा रोज नंगा नाच, पसर रही राजनीति की विष बेला। एक अधजली सूखी रोटी ने करा दिया है मेरी ही संतानों के बीच खेला। कैसे समझाऊं- तुम दोनों (कूकी-मैतेयी) ही मेरी जान हो। तुम बिन मैं निष्प्राण हूं। दस नदियों की धारा समेटे हुए भी मैं बेजान हूं क्योंकि अपनों के ही खंजर से लहू-लुहान हूं। हां, मैं वही जीर्ण-शीर्ण मणिपुर हूं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."