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November 23, 2024 4:18 pm

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“विरासत की पुनर्प्राप्ति: मूल्य एवं शिक्षा ” विषय पर आचार्य मिथिलेश नंदिनीशरण जी ने कही ये बातें

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इरफान अली लारी की रिपोर्ट 

देवरिया।  सेवाज्ञ संस्थानम द्वारा संत विनोबा पी0 जी0 कॉलेज देवरिया के सभागार में उत्तिष्ठ भारत कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें – “विरासत की पुनर्प्राप्ति: मूल्य एवं शिक्षा ” विषय पर आचार्य मिथिलेश नंदिनीशरण जी का पाथेय छात्रों एवं शिक्षकों को प्राप्त हुआ ।

आचार्य मिथिलेश नंदिनीशरण जी ने कहा कि संसार में जो कुछ निर्मित होता है वो अभाव से ही निर्मित होता है । हमारे पूर्वज परंपरा से जो हमें प्राप्त हुआ है उसे बचाए रखना हमारा उत्तरदायित्व है । विद्यार्थियों को तप करना चाहिए।विरासत की पुनर्प्राप्ति तब होगी जब हम चरित्र निष्ठ होकर अपना जीवन यापन करेंगे । हमें संसाधन केंद्रित जीवन नही संस्कार केंद्रित जीवन जीना है।

आचार्य मिथिलेश नंदिनीशरण जी ने कहा कि संसार में जो कुछ निर्मित होता है वो अभाव से ही निर्मित होता है । हमारे पूर्वज परंपरा से जो हमें प्राप्त हुआ है उसे बचाए रखना हमारा उत्तरदायित्व है । विद्यार्थियों को तप करना चाहिए।विरासत की पुनर्प्राप्ति तब होगी जब हम चरित्र निष्ठ होकर अपना जीवन यापन करेंगे । हमें संसाधन केंद्रित जीवन नही संस्कार केंद्रित जीवन जीना है।हमने अपनी विरासत को कैसे गवाया है यह जानना जरूरी है। प्रत्येक युवा को शौर्य और धैर्य से संसार के शत्रु भाव से बचना होगा।अक्सर होता क्या है कि हम जीवन की भागदौड मे हम कब अनैतिक हो जाते है और अपनी आदत का हिस्सा बना लेते है। एक पवित्र जीवन का अभ्यास करता व्यक्ति कब अपवित्र कार्य करने लगता है उससे बचना चाहिए पवित्रता का भाव बनाये रखना इसके लिए निरन्तर अभ्यास की जरूरत है तुम प्रतिदिन जीते जी कितने सावधान हो कि तुम अनैतिक ना हो।अपना कर्तव्य पालन करते हुए आने वाली कठिनाईयो को स्वीकार करना ही तप है।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्राचार्य अर्जुन मिश्र ने कहा की भारत के पास मूल्यों का एक शाश्वत ढांचा है, उसे तैयार करने में हमारे ऋषि-मुनियों समाज सुधारकों के हजारों वर्षों की तपस्या है । उसे चुनौती देना आसान नहीं है। सामाजिक पूर्वाग्रह के कारण उस ढांचे की निर्माण यात्रा में कुछ कु प्रसंग जुड़ गए। इन्हीं का सहारा लेकर कुछ लोग दिन रात शाश्वत मूल्यों की आलोचना में लगे रहते हैं । ढांचे को उखाड़ना चाहते हैं। उखाड़ तो नहीं पाए लेकिन दरार डालने में सफल हो गये।पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण करने वाले तथाकथित लोग सांस्कृतिक प्रदूषण फैला रहे है ।जहां अपनी परंपरा पर गर्व करना चाहिए वहां हीन भावना से ग्रस्त है । इससे भागने की जरूरत नहीं है इस पर विचार करना ही पड़ेगा कि किसे मूल्य माना जाय?जो बाजारवाद खड़ा कर रहा है या शाश्वत मूल्य जो हमारी परंपरा के हैं।

मूल्य के आदर्श इच्छा है जिसे पूरा करने के लिए मनुष्य जीता है, आजीवन प्रयास करता है। लक्ष्य प्राप्ति के आधार पर यह सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों हो सकता है। लेकिन शाश्वत मूल्य वह है जिसमें किसी कारण से परिवर्तन नहीं हो सकता_यह है सत्यम, शिवम सुंदरम्। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में सेवाज्ञ संस्थानम के राष्ट्रीय सचिव श्याम सिंह एवं महाविद्यालय के प्रबंधक अशोक मिश्र जी उपस्थित रहे कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य अर्जुन मिश्र जी ने किया एवं संचालन सहायक आचार्य प्रदीप दीक्षित ने किया ।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रो0 मंशा देवी, प्रो0 वाचस्पति द्विवेदी, प्रो0 अरविन्द कुमार, डाॅ0 भूपेश मणि, डाॅ0 विवेक मिश्र, डॉ0 प्रियंका राय, डॉ0 विद्यावती, अमित कुमार,अभिनव चौबे , उर्वशी पचेरिया, मंतोष मौर्य, पुनीत कुमार, सुजीत कुमार, डाॅ0 राजकुमार गुप्त, निखिल गौतम आदि उपस्थित रहें ।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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