दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
सुल्तानपुर: भारतीय जनता पार्टी की पूर्व केंद्रीय मंत्री और सुल्तानपुर सांसद मेनका गांधी (Maneka Gandhi) का एक वीडियो सामने आया है। इसमें वह “चौपाल को संबोधित करते हुए कह रही हैं कि गधे के बने दूध का साबुन (Donkey Milk Soap) औरत के शरीर को हमेशा सुंदर रखता है। एक बहुत मशहूर विदेशी रानी होती थी, ‘क्लियोपैट्रा’ वो गधे के दूध में नहाती थी। दिल्ली में गधे के दूध का साबुन 500 रुपए में बिकता है। क्यों नहीं हम लोग बकरे के दूध का साबुन बनाए। साथ में गधे के दूध का साबुन बनाए।
सुल्तानपुर के बल्दीराय में आयोजित एक कार्यक्रम का वीडियो बताया जा रहा है। इसमें मेनका गांधी लोगों से कह रही हैं कि लद्दाख में एक समूह है। उन्होंने देखा गधे बहुत कम हो रहे हैं। इसके बाद वे सवालिया अंदाज में कहती हैं, कितने दिन हो गए आप लोगों को गधे देखे हुए। कम हो गए हैं या खत्म हो गए हैं। धोबी का काम भी खत्म हो गया है। लेकिन लद्दाख में उन्होंने गधों से दूध निकालना शुरू किया और गधे के दूध से साबुन बनाया। मेनका गांधी ने किसी विशेषज्ञ की तरह कहा, गधे के दूध का साबुन औरत के शरीर को हमेशा सुंदर रखता है।
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अंतिम संस्कार में लकड़ी जगह गोबर के कंडे का करें इस्तेमाल
सांसद मेनका गांधी ने कहा पेड़ गायब हो रहे हैं। लकड़ी इतनी महंगी हो गई है कि आदमी के मरते वक्त भी अपने पूरे परिवार को कंगाल करता है। 15-20 हजार लकड़ी के लिए लगता है। इससे अच्छा है कि हम गोबर के लंबे कंडे बनाए, उसमें सामग्री खुशबूदार लगा दें। एक आदेश हो कि जो भी मरेगा उसका अंतिम संस्कार गोबर के कंड के साथ होगा। इसमें 1500 से 2000 के रस्म रिवाज होगा। आप लोग कंडे बेचोगे तो लाखों बिक जाएंगे।
बकरा पालन-गाय पालन के मैं हूं सख्त खिलाफ
मेनका गांधी यही नहीं रुकीं। उन्होंने कहा मैं नहीं चाहती आप जानवरो के ऊपर कुछ भी पैसा कमाए। आजतक कोई अमीर नहीं हुआ है, बकरी और गाय पालन करके। इसके बाद मेनका गांधी ने कहा, पूरे सुल्तानपुर में 25 लाख लोगों के बीच मुश्किल से 3 डॉक्टर होंगे। कभी-कभी वो भी नहीं। गाय बीमार हो गई, भैंस बीमार हो गया, बकरा बीमार हो गया तो वहीं आपके लाखों रुपए चले गए। इसीलिए मैं इसके सख्त खिलाफ हूं कि कोई बकरे पालन या गाय पालन में जाए। अब दस साल में कमाओगे और एक रात में मर जाएगा, जानवर के साथ सब खत्म हो जाएगा।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."