बाप के निधन पर ढोल ताशे के साथ नाच गान की बात सुनकर आप चौंकिए मत, पूरी खबर पढिए 👇

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कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में एक अनोखा और चर्चा में आने वाला मामला सामने आया है। जहां आमतौर पर किसी के निधन पर गमगीन माहौल होता है, वहीं नगर कोतवाली क्षेत्र के नारायणपुर वार्ड में एक बेटे ने अपने पिता की अंतिम विदाई को उत्सव की तरह मनाया। इस घटना ने पूरे इलाके और सोशल मीडिया पर लोगों का ध्यान खींच लिया है।

बैंड-बाजे के साथ निकाली अंतिम यात्रा

80 वर्षीय रामकिशोर मिश्रा का निधन होने के बाद उनके बेटे श्रीराम ने अपने पिता की अंतिम यात्रा को पूरी तरह से अलग अंदाज में मनाया। ढोल-नगाड़ों और बैंड-बाजे का इंतजाम कर, श्रीराम ने न केवल अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जश्न मनाया, बल्कि श्मशान घाट तक पहुंचते ही जमकर डांस भी किया।

श्मशान घाट पर ढोल-नगाड़ों की धुन पर श्रीराम और उनके दोस्तों ने नृत्य किया। डांस के दौरान श्रीराम ने नोटों की गड्डियां उड़ाईं। श्मशान घाट का यह नजारा देखने वालों के लिए अद्भुत और चौंकाने वाला था।

तेरहवीं पर भी जश्न का आयोजन

श्रीराम ने सिर्फ अंतिम यात्रा ही नहीं, बल्कि तेरहवीं पर भी खास आयोजन किया। उन्होंने बैंड-बाजे के साथ तेरहवीं का भोज रखा और परिवार व परिचितों के साथ खुशी-खुशी इसे मनाया। परिवार के अन्य सदस्य भी इस मौके पर नाचते-गाते देखे गए।

श्रीराम का अनोखा दृष्टिकोण

जब श्रीराम से इस अनोखे अंतिम संस्कार के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अंतिम विदाई रोते हुए नहीं, बल्कि खुशी-खुशी मनानी चाहिए। इससे जाने वाले की आत्मा को शांति मिलती है। रोने-धोने से आत्मा को दुख होता है। यह भी जीवन का एक उत्सव है, और मैंने इसे इसी तरह मनाने का फैसला किया।”

लोगों के बीच चर्चाओं का विषय

यह घटना पूरे इलाके और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई है। जहां कुछ लोग इसे एक नई सोच और परंपरा का नाम दे रहे हैं, वहीं कुछ इसे पारंपरिक संस्कारों के खिलाफ मानकर आलोचना भी कर रहे हैं।

श्रीराम के इस दृष्टिकोण ने अंतिम संस्कार के प्रति समाज की सोच में एक नई बहस को जन्म दिया है। उनके अनुसार, मृत्यु के बाद भी जीवन को उत्सव की तरह मनाना चाहिए।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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