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प्रयागराज

27 साल पहले ऐसा तो नहीं था मुस्लिम हॉस्‍टल…सद्भावनाएं थी, प्यार था, एक दूसरे के लिए सम्मान था और आज…

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट 

प्रयागराज: इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (Allahabad University) का मुस्लिम हॉस्‍टल (Muslim Hostel) आजकल चर्चा में है। राजू पाल मर्डर के मुख्‍य गवाह उमेश पाल की दिनदहाडे़ हत्‍या की साजिश के तार यहां से जुडे़ बताए गए हैं।

प्रयागराज पुलिस कमिश्‍नर ने बताया कि मुस्लिम हॉस्‍टल में रहने वाले सदाकत खान के कमरे में इस हत्‍या की साजिश रची गई। मुझे याद आता है साल 1996 जब मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीएससी थर्ड ईयर का स्‍टूडेंट था। हमारे सेक्‍शन में एक सहपाठी इसी हॉस्‍टल से था।

मुझे क्‍लास, लाइब्रेरी, खाली वक्‍त में स्‍टेडियम और बाद में अपने कमरे के सिवा किसी दूसरी चीज में दिलचस्‍पी नहीं थी। दो साल ऐसे ही बीते। तीसरे साल किसी मुद्दे पर बौद्धिक बहस के दौरान मुस्लिम हॉस्‍टल में रहने वाले क्‍लासमेट से बातचीत हुई। मुस्लिम हॉस्‍टल साइंस फैकल्‍टी के साथ सटा हुआ था।

1996 की गर्मियों में ऐसा चक्रवात आया जिसका असर इलाहाबाद में भी हुआ। करीब 120 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से हवाएं चलीं। अगले दिन पता चला कि शहर भर में भारीभरकम पेड़ उखडे़ पडे़ थे, बिजली के खंभों की तो बिसात क्‍या। लड़कों को याद है डब्‍लूएच (विमिन हॉस्‍टल) के बाहर प्रेमियों को छांव देने वाला विशाल पेड़ भी औंधे मुंह पसर गया था।

फाइनल इयर के एग्‍जाम सिर पर थे। मई का महीना था, इलाहाबाद की गर्मी शायद इलाहाबाद में रहने वाले ही समझ सकते हैं। तूफान के नुकसान की वजह से 15 दिन बिजली बहाल नहीं हो पाई। ऐसे में मुस्लिम हॉस्‍टल के उस सहपाठी के जोर देने पर यह तय हुआ कि रात में सोने और एक वक्‍त खाना खाने के लिए मैं हॉस्‍टल चला आऊंगा। सुबह का खाना और पढ़ाई अपने रूम पर ही करूंगा।

रूम भी बस मुश्किल से दो सौ मीटर की दूरी पर था। मैं शाकाहारी था, मुस्लिम हॉस्‍टल (जिसे मुस्लिम बोर्डिंग या मुस्लिम बोर्डिंग हाउस भी बोलते थे) में मुझे शाकाहारी भोजन की उम्‍मीद नहीं थी। लेकिन सौभाग्‍य से मेरा सहपाठी उस समय मेस मैनेजर था सो मेरे लिए नेनुआ, लौकी या आलू की सब्‍जी बन जाती। हम साथ बैठकर मेस में खाते। फिर हॉस्‍टल की छत पर तारों को देखते हुए कुछ भूत-प्रेत की बातें होतीं, सब सो जाते। मैं सुबह 4 बजे उठकर हॉस्‍टल के हैंडपंप से नहाता, फिर अपने रूम पर चला जाता, एग्‍जाम की तैयारी करता। शाम को फिर वापस लौटता।

मैं बचपन से ही मुस्लिम परिवारों के परिचय में रहा हूं। लेकिन मुस्लिम हॉस्‍टल में इस तरह रहने के बाद कुछ अनोखी बातें पता चलीं। वहां सीनियर मोस्‍ट छात्र जब भी मिलते मेरे नमस्‍ते करने से पहले ही सलाम करते। मैं झेंप जाता। एक दिन दोस्‍त ने बताया कि इस्‍लाम में जो पहले सलाम करता है उसे सबाब या पुण्‍य मिलता है। वहां ढेरों लड़के थे। अधिकतर गरीब मुस्लिम परिवारों से आए थे, जिनका मकसद इलाहाबाद में जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करके एक अदद सरकारी नौकरी हासिल करना था।

एक बार भारत पाकिस्‍तान का मैच था। दोस्‍त के साथ पहली-पहली बार कॉमन हॉल में गया। वहां देखा एक कोने में दो बेंच पड़ी हैं, जिन पर दो-तीन लोग बैठै हैं। बाकी पूरा हॉल ठसा-ठस भरा है और उनको गालियां दे रहा है। बाद में पता चला कि वे दो-तीन लोग पाकिस्‍तान को सपोर्ट करते थे इसीलिए साल भर गाली खाते थे। धीरे-धीरे मेरे साथ दूसरे दोस्‍त मुस्लिम हॉस्‍टल जाने लगे। ये सभी गैर मुस्लिम थे। फिर कुछ दिनों में हालत यह हो गई कि रमजान के रोजे हों तो इफ्तार पार्टी का आयोजन हिंदू लड़के करते और नवरात्र हों तो माता के दर्शन को मुस्लिम हॉस्‍टल से लड़के भी जाते।

इस सब को लगभग 27 साल हो गए… एक पूरी पीढ़ी जितना अंतराल। इस दौरान ना इलाहाबाद जाना हुआ ना मुस्लिम हॉस्‍टल की कोई खोज खबर मिली। अचानक जब उमेश पाल मर्डर में यूपी एटीएस की छापेमारी हुई तो मन में सवाल उठा, 27 साल में इतना बदल गया मुस्लिम हॉस्‍टल?

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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