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गोरखपुर

सुहागिनों की आखिरी सांस और हमसफ़र बन चिता तक साथ देनेवाला ‘सिंहोरा’ गोरक्षनगरी की पहचान है

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राकेश तिवारी की रिपोर्ट 

गोरखपुर। टेराकोटा अगर गोरक्षनगरी की पहचान है तो सिंहोरा को भी पूरा हक है पहचान की इस कतार में खड़ा होने का। वजह यह है कि गोरखपुर और सिंहोरा का रिश्ता 100 वर्ष से भी पुराना है। मांग के सिंदूर का साज है सिन्होरा। यह ऐसा अकेला प्रतीक है, जो सुहागिन की सांस टूटने पर भी उसका साथ नहीं छोड़ता, हमसफर बन चिता पर भी साथ होता। शायद पति के सात जन्मों के सफर का वादा निभाने के लिए। यही वजह है कि सौंदर्य प्रसाधन को लेकर हुए तमाम प्रयोगों बीच जैसे सिंदूर की अहमियत कभी कम नहीं हुई, वैसे ही सिंहोरा की भी।

सिंहोरा सिंदूर रखने का पात्र मात्र नहीं है बल्कि हर सुहागिन का सौभाग्य है। मांग में सिंदूर पड़ने से लेकर अंतिम सांस तक सुहागिनों का साथ निभाने की आस्थापरक जरूरत की वजह से ही वह आधुनिकता की दौड़ में भी पीछे नहीं छूटा। इसे लेकर किसी भी संदेह को पांडेयहाता गोरखपुर के खराद टोला में दूर किया जा सकता है।

यह टोला 100 वर्ष से भी अधिक समय से जिले या प्रदेश ही नहीं देश के कई राज्यों में सिंहोरा की डिमांड को पूरा कर रहा है।

जिले के पांडेयहाता मोहल्ले का एक टोला ही इसे समर्पित है। यहां के 100 से अधिक परिवारों की रोजीरोटी का जरिया है सिंहोरा। एक पीढ़ी नहीं बल्कि तीन से चार पीढ़ी से। सुहाग के इस प्रतीक के प्रति कारीगरों और दुकानदारों प्रतिबद्धता से ही यहां के बने सिंहोरा का डंका देशभर में बजता है।

आधुनिकता और परंपरा के संतुलन ने गोरखपुर के सिंहोरा को लंबे समय तक बाजार में कायम रखा है। समय के साथ सिंहोरा के निर्माण में मशीन की भूमिका जरूर बढ़ी है लेकिन मान्यता और आस्था को लेकर कारीगरों ने कभी समझौता नहीं किया। आज भी ज्यादातर कार्य हाथ से किए जाते हैं। सिंहोरा की सजावट तो पूरी तरह हाथ से ही की जाती है।

सुहाग के प्रतीक चिन्ह स्वास्तिक, ओम, शुभ लाभ, चुनरी, कमल का फूल आदि को सिंहोरा पर उकेरने के लिए भी कलाकारों की एक टीम है। यह मांग के मुताबिक सिन्होंने का गोटे से भी सजाती है। आजकल गोटेदार सिंहोरा की काफी मांग रहती है। बहुत से लोग सिंहोरा पर दूल्हा-दुल्हन की फोटो और नाम भी भी पेस्ट कराते हैं। ऐसे में सिंहोरा की सजावट भी रोजगार का एक जरिया बना हुआ है।

तीन पीढ़ी से सिंहोरा बनाने वाले एक अन्य कारीगर गजेंद्र सिंह बताते हैं कि समय के साथ अलग-अलग आकार में सिंहोरा की डिमांड होने लगी है। पहले केवल एक और आकार में बनता था। कारीगर ही नहीं सिंहोरा बेचने वाले दुकानदारों की सोच भी इसे लेकर आस्थापरक है। उनका कहना है कि वह व्यवसाय ही नहीं करते, ग्राहकों की मांगलिक आस्था पर भी खरा उतरने का प्रयास करते हैं।

गोरखपुर के सिंहोरा की डिमांड दुनिया भर में बसे भारतीयों के बीच है। कई बार लोग यह कहकर भी इसे खरीदते हैं कि उन्हें उसे विदेश भेजना है।

अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, त्रिनिदाद, मारिशस, सिंगापुर, बैंकाक जैसे देशों में बसे भारतीय हर वर्ष लग्न में यहां से सिंहोरा जाता है। नेपाल तो इसे लेकर पूरी तरह गोरखपुर पर ही निर्भर है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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