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अजब-गजब

‘जो भयंकरता से परे हो’ उसके जीवन की खास बातें हम आपको बता रहे हैं….

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की खास रिपोर्ट 

अध्यात्म और अनुभव की दुनिया में तर्क नहीं होते, अगर कोई भी सिर्फ़ तथ्य और तर्क के जाल में उलझा हुआ है, तो यह तर्क उसे जीवन का जादू नहीं देखने देगा। जीवन का जादू आख़िर है क्या? अगर आपने ध्यान दिया तो आपको हर जगह जादू दिखेगा; एक बीज का पौधा होना; एक फूल का फल हो जाना और दो कोशिकाओं के मिलने से नए जीवन की शुरुआत- यह सब अद्भुत जादू ही तो है।

भारत केवल भूगोल का हिस्सा ही नहीं, यह एक जीवंत स्पंदन है। यह उन लोगों की धरती है, जो तर्क के जटिलतम रूप को समझने और समझाने के बावजूद कभी उसमें उलझे नहीं। वे तर्क को उस बिंदु तक ले गए जो अस्तित्व के रहस्यवादी और जादुई आयामों तक जाने की राह बन गया।

आदियोगी शिव इन दो विपरीत दिखने वाले आयामों के उच्चतम प्रतिनिधि हैं। वे इन दोनों आयामों में बिना किसी परेशानी के रहते हैं। संकीर्ण तर्कों में बंधे लोग इसे नहीं जान पाते। बेशक, तर्क हमें खड़े होने का आधार देता है। यह हमारा चुनाव होगा कि तर्क को सराहें, उससे चकित हों या इसे अस्तित्व से परे जाने के लिए पंखों की तरह इस्तेमाल करें। हम सब तर्कों के पंखों पर उड़ सकते हैं पर यह याद रखिए कि हर किसी को वापस अग्नि के पास आना ही होता है। चाहे वह श्मशान की अग्नि हो या फिर जीती-जागती चेतना की अग्नि।

शिव अर्थात एक महायोगी, गृहस्थ, तपस्वी, अघोरी, नर्तक और भी कई अन्य अलग-अलग नाम और रूप। क्या कभी आपने सोचा कि क्यों इतने सारे विविध रूप धारण किए थे भगवान शिव ने?

शिव पुराण में भयावह और सुंदर दोनों हैं शिव

आमतौर पर पूरी दुनिया में लोग जिसे भी दैवीय या दिव्य मानते हैं, उसका वर्णन हमेशा अच्छे रूप में ही करते हैं। लेकिन अगर आप शिव पुराण को पूरा पढ़ें तो आपको उसमें कहीं भी शिव का उल्लेख अच्छे या बुरे के तौर पर नहीं मिलेगा। उनका जिक्र सुंदरमूर्ति के तौर पर हुआ है, जिसका मतलब ‘सबसे सुंदर’ है। लेकिन इसी के साथ शिव से ज्यादा भयावह भी कोई और नहीं हो सकता।

इंसान के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष यह चुनने की कोशिश है कि क्या सुंदर है और क्या भद्दा, क्या अच्छा है और क्या बुरा? लेकिन अगर आप हर चीज के इस भयंकर संगम वाली शख्सियत को केवल स्वीकार कर लेते हैं तो फिर आपको कोई समस्या नहीं रहेगी।

योगी, नशेड़ी और अघोरी शिव

वह सबसे सुंदर हैं तो सबसे भद्दे और बदसूरत भी। अगर वो सबसे बड़े योगी व तपस्वी हैं तो सबसे बड़े गृहस्थ भी। वह सबसे अनुशासित भी हैं, सबसे बड़े पियक्कड़ और नशेड़ी भी। वे महान नर्तक हैं तो पूर्णत: स्थिर भी। इस दुनिया में देवता, दानव, राक्षस सहित हर तरह के प्राणी उनकी उपासना करते हैं। शिव के बारे में तमाम हजम न होने वाली कहानियों व तथ्यों को तथाकथित मानव सभ्यता ने अपनी सुविधा से हटा दिया, लेकिन इन्हीं में शिव का सार निहित है। उनके लिए कुछ भी घिनौना व अरुचिकर नहीं है। शिव ने मृत शरीर पर बैठ कर अघोरियों की तरह साधना की है। घोर का मतलब है भयंकर। अघोरी का मतलब है कि ‘जो भयंकरता से परे हो’। शिव एक अघोरी हैं, वह भयंकरता से परे हैं। भयंकरता उन्हें छू भी नहीं सकती।

शिव स्वयं जीवन हैं

कोई भी चीज उनमें घृणा नहीं पैदा कर सकती। शिव हर चीज को, सबको अपनाते हैं। ऐसा वह किसी सहानुभूति, करुणा या भावनाओं के कारण नहीं करते, जैसा कि आप सोचते होंगे। वे सहज रूप से ऐसा करते हैं, क्योंकि वो जीवन की तरह हैं। जीवन सहज ही हरेक को गले लगाता व अपनाता है।

रहस्यमयी है अघोरियों की साधना विधि

अघोरियों की साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी है। अघोरी सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं, जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है। अघोरी तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना।

मुर्दे को मांस—मदिरा चढ़ाकर साधना करते हैं अघोरी

बताया जाता है कि शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।

श्मशाम साधना भी करते हैं अघोरी

शव और शिव साधना के अलावा तीसरी साधना श्मशान साधना होती है। इसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह जिस स्थान पर शवों का दाह संस्कार किया जाता है उसकी पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

शवों को ढूंढकर तंत्र सिद्धि के लिए करते हैं प्रयोग

जो लोग शव को जलाते नहीं उसे दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया जाता है। पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं। अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं।

मुर्दे से कर सकते हैं बात

ऐसा कहा जाता है कि अघोरियों की साधना में इतना दम होता है कि वो मुर्दे से भी बात कर सकते हैं। ये बातें सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। उनकी साधना को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती। अघोरी गाय का मांस छोड़कर मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक खाते हैं। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है। इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है। वे अधिकांश समय दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते।

प्रेम और करुणा से भी परे

सद्गुरु कहते हैं कि एक अघोरी कभी भी प्रेम की अवस्था में नहीं रहता है। दुनिया के इस हिस्से की आध्यात्मिक प्रक्रिया ने कभी भी आपको प्रेम करना, दयालु या करुणामय होना नहीं सिखाया। यहाँ इन भावों को आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक माना जाता है। दयालु होना और अपने आसपास के लोगों को देखकर मुस्कुराना, पारिवारिक व सामाजिक शिष्टाचार है। एक इंसान में इतनी समझ तो होनी ही चाहिए, इसलिए यहाँ किसी ने सोचा ही नहीं कि ये चीजें भी सिखानी जरूरी हैं।

एक अघोरी जब इस अस्तित्व को अपनाता है तो वह उससे प्रेम के चलते नहीं अपनाता, वह इतना सतही या कहें उथला नहीं है, बल्कि वह जीवन को अपनाता है। वह अपने भोजन और मल को एक ही तरह से देखता है। उसके लिए जिंदा और मरे हुए शरीर में कोई अंतर नहीं है। वह एक सजी-सँवरी देह और व्यक्ति को उसी भाव से देखता है, जैसे एक सड़े हुए शरीर को। इसकी सीधी सी वजह है कि वह पूरी तरह से जीवन बन जाना चाहता है। वह अपनी दिमागी या मानसिक सोचों के जाल में नहीं फँसना चाहता।

अघोरी साधू को समाज का कुछ हिस्सा औघड़ भी कहता है। जो कि दिखने में बहुत ही डरावना होता है। लेकिन वास्तविकता तो यह है की अघोर कर अर्थ है : अ + घोर यानि जो डरावना न हो। इसका अर्थ है कि अघोर साधक बहुत ही सरल होते है। ये बिना किसी लोभ या लालच के अपने कार्य करते है । लोभ, मोह, काम, क्रीडा आदि सभी से परे ये साधक सिर्फ और सिर्फ भगवान शिव के प्रति समर्पित रहते है और अपना सम्पूर्ण ध्यान साधना पर देते है।

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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