दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
महोबा, हेडिंग की लाइन एक गीत का मुखड़ा है। ये गीत बुंदेलखंड में खासा प्रचलित है और इसके बोल सच भी हैं। जी हां, बुंदेलखंड के चरखारी में भी एक छोटा वृंदावन है, जिसे महारानी की जिद के आगे हारकर महाराज मलखान सिंह ने बनवाया था।
महारानी गुमान कुंवर के नाम पर चरखारी में गुमान बिहारी जू का मंदिर है। महारानी की इच्छा पूरी करने के लिए महाराजा मलखान सिंह ने सरोवर के किनारे मंदिर की स्थापना कराई थी। जन्माष्टमी पर भव्य सजावट होती है और दीपावली की परेवा को विशेष गोवर्धन पूजा होती है। भगवान कृष्ण के प्रतीकात्मक 108 मंदिरों के बाहर गोवर्धन विराजमान कराए जाते हैं।
बताया जाता है कि यहां की महारानी गुमान कुंवर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने वृंदावन गईं थीं और वहां की भव्यता देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं थी। उन्होंने महाराजा को संदेश भेजकर कहा था कि अपने नगर में भी कान्हा जी का ऐसा ही सुन्दर मंदिर होना चाहिए और शर्त रख दी थी कि जबतक वह हां नहीं करेंगे तबतक नहीं लौटेंगी और वृंदावन में बस जाएंगी।
महारानी की जिद के सामने महाराज मलखान सिंह हार गए थे और उनकी शर्त मानकर वापस बुलवाया था। इसके बाद चरखारी को वृंदावन के रूप में बसाने का फैसला किया। आसपास कोई नदी न होने पर उन्होंने करीब 1883 में रायनपुर क्षेत्र में सरोवर के किनारे गुमान बिहारी जू के नाम से मंदिर की स्थापना कराई। सरोवर को गुमान सरोवर का नाम दिया।
प्रचलित हो गया था गीत
महारानी की जिद के सामने हार मानकर महाराजा द्वारा चरखारी में वृंदावन बसाने पर एक लोकगीत भी प्रचलित हो गया था। “इतै भीर भई भारी, वृंदावन भई चरखारी”.. गीत बुंदेलखंड का प्रचलित लोकगीत बन चुका है।
चरखारी के गोवर्धन जू महाराज मंदिर और गुमान बिहारी मंदिर और सप्तसरोवर के कारण ही छोट वृंदावन कहा जाता है।
जन्माष्टमी पर होती सजावट कार्तिक मास में लगता मेला
गुमान बिहारी जू मंदिर के आसपास वृंदावनकी तरह 108 प्रतीकात्मक मंदिर रूप बने हैं। यहां जन्माष्टमी पर विशेष पूजन होता है। वहीं कार्तिक मास में दीपावली की परेवा पर गोवर्धन पूजन बेहद खास होती है और मेला लगता है। गाय के गोबर से बने गोवर्धन रूप पर्वत को सभी प्रतीकात्मक मंदिर के सामने रखा जाता है। इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ रहती है।
Author: samachar
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