नौशाद अली की रिपोर्ट
बलरामपुर : जिले का अधिकांश हिस्सा तराई क्षेत्र है। बावजूद इसके भू-गर्भ जल का दोहन रोकने की पहल कागज पर ही होती रही। चार ब्लाक हर्रैया सतघरवा, तुलसीपुर, गैंसड़ी व पचपेड़वा हार्ड एरिया में आते हैं। यहां कम गहराई की बोरिग सफल नहीं है। क्योंकि जलस्तर काफी नीचे है। जल दोहन रोकना तो दूर, वर्षा जल सहेजने की कवायद भी फाइलों में दम तोड़ रही है। सरकारी मशीनरी अभियान तो चलाती है, लेकिन असर शून्य है।
गिरते भूगर्भ जल स्तर को दुरुस्त करने के लिए लोगों को खुद जल संचयन के लिए कदम उठाने होंगे। जल संकट की स्थिति उत्पन्न न होने पाए, इसके लिए बारिश की हर बूंद को सहेजना होगा। भूजल का स्तर जिस तेजी से गिर रहा है, उससे जल संकट तय है। यही कारण है कि 200-300 वर्ग मीटर से अधिक के भूखंड पर रेन वाटर हार्वेस्टिग प्लांट को अनिवार्य कर दिया गया है। बावजूद इसके अब तक आमजन व बिल्डर इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।
जिले के नौ विकास खंडों की 800 ग्राम पंचायतों व चार नगर निकायों में करीब 24 लाख लोग आबाद हैं। ऐसे में यदि लोग अभी से वर्षा जल संचयन को जागरूक नहीं हुए, तो स्थिति गंभीर होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। यदि सरकारी मशीनरी के साथ निजी भवनों के बिल्डर व आमजन रेन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम लगवाने में दिलचस्पी दिखाएं, तो जल संकट को काफी हद तक टाला सकता है। मनरेगा से आदर्श तालाबों का निर्माण कर जल संचयन का दावा किया गया था। इस बार गांवों में 75 अमृत सरोवर बनाकर वर्षा जल संचयन करने की तैयारी है।
क्या है रेन वाटर हार्वेस्टिग :
वर्षा जल बहकर नष्ट हो जाने से पहले सतह पर संचित किए जाने की तकनीक को रेन वाटर हार्वेस्टिग कहा जाता है। भूमि जल का कृत्रिम रिचार्ज वह प्रक्रिया है, जिससे भूमि जल और जलाशय का प्राकृतिक स्थिति की दर से ज्यादा भंडारण होता है।
यह है प्रक्रिया :
यदि कोई सरकारी विभाग, निजी भवनों के बिल्डर या व्यक्तिगत रूप से कोई रेन वाटर हार्वेस्टिग प्लांट लगवाना चाहता है, तो उससे सबसे पहले जल निगम में आवेदन करना होगा। इसके बाद अभियंता भूमि के क्षेत्रफल की जांच करेंगे। बोरिग मशीन व फिल्टर पाइप लगाने के लिए स्टीमेट तैयार किया जाएगा। इसके आधार पर प्लांट की लागत तय की जाएगी। लोगों में जागरुकता आई है। कुछ लोगों ने जानकारी ली है।
Author: samachar
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