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लखनऊ

मुसलमानों को मुख्य धारा से अलग करने की साजिश बताते हुए मुस्लिम विद्वानों ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बयान को खारिज किया

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जीशान मेंहदी की रिपोर्ट

लखनऊ । आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड (एआइएमपीएलबी) के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी के बयान को मुस्लिम विद्वानों ने खारिज कर दिया है। उनका मानना है कि यह मुस्लिमों को मुख्य धारा से अलग करने की साजिश है। हमारा देश संविधान से चलता है, किसी को कोई दिक्कत है तो वह न्यायालय की शरण में जा सकता है। भाजपा ने भी इसे दुष्प्रचार बताया है। रहमानी ने कहा था कि देश में मुसलमानों के लिए 1857 व 1947 से भी मुश्किल हालात हैं।

इस्लामिक विद्वान मौलाना सलमान हुसैनी नदवी ने कहा कि 1857 और 1947 की परिस्थितियां बिल्कुल अलग थीं। आज देश संविधान से चल रहा है, कोर्ट और कानून अपना काम कर रहे हैं। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के महासचिव का बयान पूरी तरह गलत है। कुछ लोग अपने खास एजेंडे पर काम कर रहे हैं। यदि कहीं कुछ गलत हो रहा है तो उसके लिए देश में न्यायालय हैं।

इस्लामिक विद्वान मौलाना सज्जाद नोमानी भी बोर्ड के महासचिव के बयान से असहमत हैं। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि जबसे केंद्र में भाजपा की सरकार बनी, तबसे देश की धर्मनिरपेक्षता और संप्रभुता को खोखला करने का प्रयास किया जा रहा है।

अध्यक्ष डा. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा- ‘आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड देश के चंद लोगों द्वारा बनाया हुआ एक गिरोह है। इस बोर्ड का मकसद मुसलमानों को भड़काना, उलझाना व उन्हें हाशिये पर धकेलना है। बोर्ड खासकर पिछड़े मुसलमानों व महिलाओं को मुख्यधारा से अलग-थलग करने की एक सुनियोजित साजिश रच रहा है।’

उत्तर प्रदेश राज्य हज समिति के चेयरमैन मोहसिन रजा कहते हैं कि ‘आज आम मुसलमानों के हालात तो बेहतर हुए हैं, किंतु उनके ठेकेदारों के जरूर खराब हुए हैं। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का असली नाम आल इंडिया मुल्ला पर्सनल ला बोर्ड रख देना चाहिए। भाजपा सरकार में मुसलमानों के ठेकेदारों की दुकानें बंद हो गईं हैं, इसलिए वे इस तरह की बातें कर रहे हैं।

पूर्व आइएएस डा. अनीस अंसारी ने कहा कि 1857 में पहली क्रांति हुई और नाकामी का सामना करना पड़ा, उस वक्त गांव के गांव जला दिए गए, जमींदारी छीन ली गई। 1947 में कत्लेआम हुआ। ऐतिहासिक तौर पर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के महासचिव का बयान पूरी तरह से गलत है। भारत के संविधान ने हमें धार्मिक रूप से पूरी आजादी दी है। हमें अपने अधिकारों की मांग भारतीय नागरिक के रूप में करनी चाहिए।

सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद तारिक सिद्दीकी ने कहा कि 1857 व 1947 के हालात अलग थे। हालांकि मुस्लिम समुदाय को यह भी सोचना होगा तो उससे कहां गलती हुई। वहीं, भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि भाजपा के विरुद्ध यह दुष्प्रचार करने का लंबे समय से प्रयास होता रहा है। भाजपा सरकार बनने के बाद मुस्लिमों के लिए जितना काम हुआ है, उतना कभी नहीं हुआ। इस कारण से ही मौलानाओं ने अपना प्रभाव समाज में खो दिया है। उसी खीझ में इस तरह के बयान और फतवे जारी करते रहते हैं।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बिरादरी भी आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी केबयान से इत्तेफाक नहीं रखती। एएमयू के पूर्व मीडिया सलाहकार व फोरम आफ मुस्लिम स्टडीज एंड एनालिसिस (एफएमएसए) के महासचिव प्रो. जसीम मोहम्मद ने कहा है कि पर्सनल ला बोर्ड मुसलमानों में डर पैदा न करे। भारत में हर तरह के लोग हैं। एक राष्ट्र के रूप में भारत आंतरिक मामलों से निपटने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत है।

एएमयू के सुन्नी थियोलोजी विभाग के प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद अली खान का भी कहना है, आमतौर पर मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी का बयान सही नहीं है। ये भी सच है कि अंग्रेजों के समय में मजहबी मामलों में दखल नहीं दिया जाता था। अब अक्सर बयान आते हैं कि खुले में नमाज नहीं पढ़ने दी जाएगी। लेकिन, हमारे पास आज कानून है। अंग्रेजों के समय हमें अपनी बात रखने की आजादी नहीं थी।

एएमयू के सुन्नी थियोलोजी विभाग में सहायक प्रोफेसर रेहान अख्तर का कहना है कि अपने देश में मुसलमान हर तरीके से महफूज हैं। सरकार को ऐसे लोगों पर बंदिश लगानी चाहिए। ऐसे लोग किसी भी समाज में हो सकते हैं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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