Explore

Search
Close this search box.

Search

November 22, 2024 11:38 pm

लेटेस्ट न्यूज़

रंगों की विविधता के साथ होली के रुप भी अलग अलग हैं : चिता की भस्म से होली का खेल…आइए जानते हैं….

15 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला के साथ चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

होली त्योहार (Holi) को जो बात दिलचस्प बनाती है, वह यह है कि भारत के हर राज्य, शहर और क्षेत्र में रंगों के अलावा इस त्योहार को मनाने का एक अलग तरीका है। मथुरा की प्रसिद्ध लट्ठमार होली (Mathura Lathmar Holi) से लेकर वाराणसी की मसान होली (Varanasi’s Masan Holi) तक, भारत में होली से पहले इस त्योहार को देश के अलग-अलग हिस्सों में कई तरह से मनाया जाने लगता है।

वृंदावन में होली उत्सव: वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर में भक्त होली सेलिब्रेट करने के लिए रंगभरी एकादशी को रंगों के साथ इसे मनाते हैं। इस उत्सव की भव्यता और खूबसूरती को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है।

मथुरा में लट्ठमार होली: मथुरा में होली खेलने का यह तरीका दुनिया भर में फेमस है। मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर में लट्ठमार होली मनाने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।

अयोध्या में संत मनाते हैं होली: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में ‘होली’ आने से पहले एकादशी के अवसर पर साधु एक-दूसरे पर रंग डालते हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर में होली: हिंदू भक्त उत्तर प्रदेश के वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में होली त्योहार से पहले ‘एकादशी’ के अवसर पर एक धार्मिक जुलूस के दौरान भगवान शिव और पार्वती की पालकी लेकर जाते हैं।

वाराणसी की मसान होली: उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के हरिश्चंद्र घाट पर ‘वाराणसी मसन होली’ मनाई जाती है। इसमें शिव भक्त धधकती चिताओं के बीच होली खेलते हैं। ये भग्त गण चिता भस्म से होली खेलते हैं।

होली का रंग एक बार फिर हवा में उड़ने लगा है। भारत के हर क्षेत्र में अलग अलग तरह से होली खेली जाती है। यह त्यौहार धार्मिक महत्व के साथ साथ आपसी भाईचारे और मेलजोल का भी है। रंगों से होली के साथ-साथ चिता की भस्म से भी होली खेली जाती है। वाराणसी के मणिकर्निका घाट पर शिव भक्त चिता की भस्म से होली खेलते हैं जिसे मसान होली (Masan Holi) कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ अपने भक्‍तों को महाश्‍मशान से आशीर्वाद देते हैं। वो मणिकर्णिका पहुंचते हैं और गुलाल के साथ ही चिता भस्‍म से होली खेलते हैं।

माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव मां गौरी का गौना कराकर अपने धाम लेकर जाते हैं। शिव देवताओं और मनुष्यों के साथ उस दिन होली खेलते हैं। लेकिन शिव के प्रिय माने जाने वाले भूत प्रेत इस उत्सव में शामिल नहीं हो पाती इसलिए अगले दिन शिव मरघट पर उनके साथ चिता की भस्म से मसान होली (Masan Holi) खेलते हैं। इसी मान्यता के साथ 16वी शताब्दी में जयपुर के राजा मान सिंह ने मसान मंदिर का निर्माण काशी में करवाया था, जहां भक्त हर साल मसान होली खेलते हैं।

सुबह से ही भक्त घाट पर इकट्ठा होना शुरु हो जाते हैं, इस दौरान सभी भस्म से होली (Masan Holi) खेलते हैं, बगल में जलती चिताओं के साथ होली का यह उत्सव रौंगटे खड़े कर देता है। लेकिन भक्तों के जोश के आगे डर बौना हो जाता है। मोक्ष नगरी वाराणसी का यह अद्भुत दृश्य हर देखने वाले को दंग कर देता है। दुनियाभर से लोग इस विशेष होली को देखने आते हैं।

पूरे देश में होली का त्यौहार भगवान कृष्ण से जोड़कर देखा जाता है लेकिन बनारस में इसे भगवान शिव के गौने के उत्सव में मनाया जाता है। बनारस में रंगों के त्यौहार होली की धूम एकादशी के कुछ दिन पहले से शुरु हो जाती है। यह त्यौहार माता गौरी के गौने की रस्म के साथ शुरु होता है। जिसमें वो अपने पिता का घर छोड़ शिव के धाम आती हैं। सबसे पहले श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में शिव पहुंचते हैं फिर अगले दिन गौने के पहले उनका रुद्राभिषेक किया जाता है। चांदी के पालकी में शिव और पार्वती को मुख्य मंदिर लाया जाता है। इस जुलूस में भक्त रंग और गुलाल उड़ाते चलते हैं। घरों की छत से भी लोग फूलों की पंखुड़ियां और रंग शिव बारात पर डालते हैं। ढोल नगाड़ों और डमरु की आवाज़ के बीच शिव मुख्य मंदिर में प्रवेश करते हैं। फिर गर्भगृह में पूजा अर्चना होती है। इसके बाद भगवान शिव वाराणसी को होली खेलने की आज्ञा देते हैं।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़