संभल, उत्तर प्रदेश से उजागर हुए एक बीमा घोटाले ने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है। आधार, बैंक, अस्पताल और बीमा कंपनियों की मिलीभगत से बना यह गोरखधंधा लाशों के नाम पर करोड़ों की लूट कर रहा था। पढ़िए एक ऐसी जांच रिपोर्ट, जो सिस्टम के सड़ांध की गवाही है।
संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
जनवरी 2025 में यूपी के संभल ज़िले में एक सामान्य सी लगने वाली पुलिस कार्रवाई ने देश के सबसे संगठित और क्रूर बीमा घोटालों की चादर खींच दी। पुलिस ने एक रोड चेज़ के बाद दो संदिग्धों को पकड़ा। उनके मोबाइल और दस्तावेज़ों की जांच करते ही परतें खुलनी शुरू हुईं – परत दर परत, एक ऐसी साज़िश सामने आई जिसमें जान भी ली गई, और मृतकों को भी ज़िंदा कर दिया गया।
अब तक 60 से ज़्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। इस पूरे रैकेट का नेतृत्व संभल की तेज़तर्रार एएसपी अनुकृति शर्मा कर रही हैं, जिनके मुताबिक यह स्कैम 100 करोड़ रुपये से कहीं बड़ा है और देश के कई राज्यों में फैला हुआ है।
जब बीमारी पर बनी उम्मीद, मौत पर हो गई कमाई
भीमपुर, बुलंदशहर की सुनीता देवी का दर्द शब्दों से परे है। उनके पति सुभाष गंभीर रूप से बीमार थे, जब एक आशा वर्कर उनके पास पहुंची। “सरकार इलाज में मदद करेगी,” कहकर दस्तावेज़ लिए गए, आधार कार्ड की फोटो ली गई, साइन कराए गए – और सुनीता को लगा कि मदद मिलेगी।
लेकिन जून 2024 में जब सुभाष की मृत्यु हो गई, तब सुनीता को कोई पैसा नहीं मिला – न सरकार की ओर से, न बीमा की ओर से। उन्हें पता भी नहीं था कि उनके नाम पर बीमा हुआ था। बैंक खाता खुला और बीमा की राशि निकल गई – उनके बिना बैंक गए, बिना कुछ किए।
यह सब संभव हुआ बैंक और बीमा जांचकर्ताओं की मिलीभगत से। पुलिस ने यस बैंक के दो डिप्टी मैनेजर तक को गिरफ्तार किया है।
“आपके हसबैंड को दो बार मारा गया…”
दिल्ली की सपना को यह वाक्य सुनने में लगा, जैसे ज़िंदगी से कोई चुटकी भरकर उनका वजूद चुरा ले गया हो। उनके पति त्रिलोक की कैंसर से जून 2024 में मौत हो गई थी। लेकिन कुछ महीनों बाद उन्हें पता चला – उनके पति को दस्तावेज़ों में “ज़िंदा” किया गया, उनके नाम पर बीमा कराया गया, और फिर उन्हें काग़ज़ पर दोबारा “मरा” हुआ दिखाकर पैसा निकालने की साज़िश हुई।
पुलिस की जांच से पता चला – श्मशान घाट की अंतिम संस्कार पर्ची के बावजूद दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल से मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया गया। अस्पताल से जुड़े दो कर्मचारियों को पुलिस ने गिरफ़्तार किया। सपना का डर इतना गहरा था कि जब पुलिस पहली बार उनसे मिलने आई, उन्होंने खुद को दोषी मान लिया।
जब मौत हादसा नहीं, योजना थी
संभल पुलिस के अनुसार, बीमा राशि हड़पने के लिए कई बार हत्याएं भी की गईं। नवंबर 2023 में अमरोहा- संभल सीमा पर एक युवक अमन की सड़क हादसे में मौत दिखाई गई थी। लेकिन जांच में पाया गया कि उसके शरीर पर कहीं भी खरोंच नहीं थी – सिर्फ सिर पर चार गहरी चोटें थीं।
पूछताछ में जब अभियुक्तों ने कबूल किया कि उन्होंने अमन को मारा है और पहले से बीमा करवा रखा था, तब यह स्पष्ट हुआ कि ये “हादसे” नहीं, योजनाबद्ध हत्याएं थीं। एक और युवक सलीम की हत्या भी इसी तरह हुई थी। इन मामलों में बीमा से 78 लाख रुपए निकाले गए।
ज़िंदा भी बेच दिए गए और मर चुके भी इस्तेमाल हो गए
इस घोटाले की जड़ें केवल बीमा कंपनियों तक नहीं रुकतीं। इसमें शामिल थे:
- आशा वर्कर
- ग्राम प्रधान
- बैंक कर्मचारी
- बीमा एजेंट
- आधार केंद्र संचालक
- अस्पताल कर्मचारी
- और फ्रॉड वेरिफिकेशन अधिकारी
आधार डेटा से छेड़छाड़ करके किसी की उम्र बदल दी जाती, पता फर्ज़ी डाल दिया जाता, नया केवाईसी बना दिया जाता और फिर उस पर बीमा करवाकर मौत के बाद क्लेम ले लिया जाता।
सिस्टम की चूक या सिस्टम की साज़िश?
बीमा की रकम निकालने में सबसे अहम दस्तावेज़ होता है मृत्यु प्रमाण पत्र। परंतु जब यह प्रमाणपत्र ही पैसे के लिए बना दिया जाए, तो कौन है सुरक्षित?
दिल्ली हाईकोर्ट में वकील प्रवीण पाठक ने जनहित याचिका दायर कर मांग की है कि मृत्यु प्रमाणपत्र की प्रक्रिया डिजिटल और पारदर्शी होनी चाहिए – ताकि “दूसरी बार मारे जाने” से किसी को बचाया जा सके।
‘फ्रॉड इकोनॉमी’ के पीछे का जटिल जाल
इस बीमा फ्रॉड की खास बात यह है कि इसमें समाज का हर तबका शामिल था – और सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि असली पीड़ित भी जांच के दायरे में आ जाते हैं।
एएसपी अनुकृति शर्मा कहती हैं, “ये पूरी एक फ्रॉड इकोनॉमी है। जिसमें असली ज़रूरतमंदों के नाम, दस्तावेज़ और पहचान का इस्तेमाल करके भ्रष्ट लोग करोड़ों कमा रहे हैं। और बीमा कंपनी के भरोसे बैठे लोग, ज़िंदगी की दूसरी सबसे बड़ी चोट खा रहे हैं।”
बीमा कंपनियों की चिंता और ख़ामोशी
बीमा कंपनियाँ भी अब आशंकित हैं। एसबीआई लाइफ़ के सीओओ रजनीश मधुकर कहते हैं, “हम आसान प्रोसेस रखते हैं ताकि मृतक के परिजनों को परेशानी न हो – लेकिन इसका फायदा स्कैमर्स उठा लेते हैं।” वहीं IRDAI यानी बीमा नियामक संस्था पहले ही कह चुकी है कि बीमा फ्रॉड तेजी से बढ़ रहे हैं।
अंतिम सवाल: क्या कोई ज़िंदा है?
संभल से शुरू हुआ यह खुलासा सिर्फ एक बीमा घोटाला नहीं है, यह पूरे सिस्टम की नैतिकता पर सवाल है।
जब कोई पहले ही ग़रीबी, बीमारी और मृत्यु से टूटा हो, तब उसे कानूनी शिकंजे में डालना इंसाफ नहीं, अत्याचार है।
सवाल सिर्फ पैसे का नहीं है – सवाल यह है कि जिनके नाम, जिनकी पहचान, जिनकी मृत्यु तक को बेचा गया, उन्हें अब कैसे बचाया जाएगा?