-मोहन द्विवेदी
कश्मीर के बिजबेहरा में आगामी चुनाव को लेकर इल्तिजा मुफ्ती चर्चा में हैं। वह इस चुनाव में अपने गृह क्षेत्र से पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) की उम्मीदवार हैं। उनके नाना, मुफ़्ती मोहम्मद सईद, इसी क्षेत्र से संबंध रखते थे और उनका राजनीतिक जीवन भी यहीं से शुरू हुआ था। इल्तिजा पहली बार चुनावी मैदान में उतरी हैं और उनका मुकाबला नेशनल कॉन्फ़्रेंस के डॉ. बशीर अहमद वीरी से है, जिनकी यहां मजबूत पकड़ मानी जाती है।
इल्तिजा का चुनाव प्रचार जोरों पर है, लेकिन इसमें कुछ घटनाएं और मुद्दे भी उठे हैं। हाल ही में, चुनाव प्रचार के दौरान इल्तिजा ने कश्मीरी भाषा में एक नारा लगाया जिसका मतलब था, “हम जीत गए, हम जीत गए।” हालांकि, उनका उच्चारण सही नहीं था, जिस पर लोगों ने तुरंत ध्यान दिया। दिलचस्प बात यह है कि उनकी मां, महबूबा मुफ्ती, जो कश्मीरियत और स्थानीय भाषा पर जोर देती हैं, इस संदर्भ में इल्तिजा के गलत उच्चारण को कश्मीरी पहचान के प्रति जागरूकता के रूप में देखा गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब घाटी का दौरा किया, तो उन्होंने भी कुछ कश्मीरी शब्द बोले, और कई लोग कहने लगे कि उनका उच्चारण इल्तिजा और उमर अब्दुल्ला से भी बेहतर था। यह बात स्थानीय लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी रही।
इल्तिजा का बिजबेहरा से चुनाव लड़ना खास इसलिए भी है क्योंकि यह इलाका उनके नाना का गृह क्षेत्र है और यहां उनकी मां महबूबा मुफ्ती भी सक्रिय रही हैं। 2008 से पीडीपी के नेता अब्दुल रहमान वीरी यहां से लगातार जीतते आए हैं, लेकिन इस बार पार्टी ने इल्तिजा को उम्मीदवार बनाया है। उनका मुकाबला नेशनल कॉन्फ़्रेंस के डॉ. बशीर अहमद वीरी से हो रहा है, जो एक प्रतिष्ठित उम्मीदवार माने जाते हैं।
इल्तिजा की सभाओं में भारी भीड़ जुट रही है। उन्होंने अपने भाषणों में केवल राजनीतिक मुद्दों पर ही नहीं, बल्कि साफ पानी, रोजगार, और बिजली बिल में छूट जैसे जनहित के मुद्दों पर भी चर्चा की। एक खास बात यह है कि जब भी सभा के दौरान अजान होती, इल्तिजा अपना भाषण रोक देतीं। यह उनकी संवेदनशीलता और स्थानीय रीति-रिवाजों के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
बिजबेहरा में एक बड़ी सभा के पहले एक मशहूर बैंड ने कार्यक्रम किया। इस सभा में इल्तिजा की बातचीत और उनका व्यवहार लोगों के बीच चर्चा का विषय बना। एक नाबालिग लड़की ने कहा, “मुझे उनकी बातचीत का तरीका बहुत पसंद है।” हालांकि वह खुद नहीं जानती थी कि उसके परिवार वाले किसे वोट देंगे।
इल्तिजा के प्रचार अभियान के दौरान उनकी मुख्य चिंता यह थी कि जो भीड़ उनकी सभाओं में आ रही है, वह वोट में तब्दील हो पाएगी या नहीं। स्थानीय बुजुर्ग गुलाम मोहम्मद ने कहा, “इल्तिजा को वोट देने में कोई हिचक नहीं है, लेकिन मैं यह नहीं कह सकता कि उनका दरवाजा अब भी उतना खुला है जितना वीरी साहब का था।”
अपनी चुनावी यात्रा के बारे में इल्तिजा ने कहा, “शुरुआत में मुझे लगा कि मैं कहां फंस गई हूं। मुझे राजनीति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन यह मेरा नाना का घर है और यह ख्याल मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत देता है।” उन्होंने यह भी माना कि इस चुनाव में उतरने का फैसला उनकी मां और पार्टी का था।
इल्तिजा पिछले छह साल से अपनी मां की मीडिया और राजनीतिक सलाहकार रही हैं। उन्होंने 370 हटाने जैसे बड़े मुद्दों पर मुखर होकर अपनी राय दी है। कई स्थानीय लोगों ने कहा कि वे इल्तिजा को इसलिए वोट दे रहे हैं क्योंकि उन्होंने 370 हटाए जाने के बाद भी कश्मीर की आवाज को बुलंद रखा है।
प्रचार के दौरान इल्तिजा ने कई गांवों का दौरा किया और लोगों से सीधे संवाद किया। कई महिलाओं ने अपनी परेशानियां साझा कीं, जिनमें उनके परिवारजनों की गिरफ्तारी का मुद्दा भी शामिल था। इल्तिजा ने माना कि घाटी में लोगों को कई मुश्किलें झेलनी पड़ी हैं और इन समस्याओं का रातों-रात समाधान नहीं हो सकता।
भाषा की बात करें तो इल्तिजा का मानना है कि कश्मीरी बोलने में भले ही वे पूरी तरह निपुण न हों, लेकिन लोग उन्हें पसंद करते हैं क्योंकि वे इसे बोलने की कोशिश करती हैं।
इल्तिजा का यह चुनावी अभियान उनके राजनीतिक करियर के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि बिजबेहरा की जनता उनके प्रति क्या प्रतिक्रिया देती है।
Author: samachar
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