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जम्मू

जेल से संसद तक का सफर ; इंजीनियर रशीद की चुनावी जीत

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अरमान अली की रिपोर्ट

कश्मीर की तीन लोकसभा सीटों में से एक पर निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल रशीद शेख़, जिन्हें आम तौर पर इंजीनियर रशीद के नाम से जाना जाता है, ने जेल में रहते हुए जीत हासिल की है। यह जीत इसलिए और भी महत्वपूर्ण बन जाती है क्योंकि उन्होंने जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस के उमर अब्दुल्ला को दो लाख से भी ज़्यादा वोटों से हराया है।

बारामुला सीट पर रशीद को चार लाख 72 हज़ार वोट मिले, जबकि उमर अब्दुल्ला को दो लाख 68 हज़ार वोट मिले। तीसरे स्थान पर जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ़्रेंस के सज्जाद लोन रहे, जिन्हें एक लाख 73 हज़ार वोट मिले।

जीत के बाद इंजीनियर रशीद के घर पर उनके समर्थक और आम लोग उनके परिजनों को मुबारक़बाद देने के लिए आ रहे हैं। कश्मीर में सोशल मीडिया पर भी इंजीनियर रशीद की जीत पर काफी चर्चा हो रही है। लोग उनकी इस ऐतिहासिक जीत को सराह रहे हैं और इसे लोकतंत्र की बड़ी जीत मान रहे हैं। रशीद की जीत ने क्षेत्रीय राजनीति में नया मोड़ लाया है और इसे जनता की आवाज़ के रूप में देखा जा रहा है।

इंजीनियर रशीद की जीत पर उनके एक स्थानीय समर्थक, अब्दुल माजिद, का कहना है कि साल 2019 के बाद कश्मीर में जो कुछ भी हुआ, यह जीत उसी का जवाब है। अब्दुल माजिद ने कहा कि कश्मीर के युवाओं ने जिस तरह से इंजीनियर रशीद का समर्थन किया है, वह इस बात को दर्शाता है कि नई पीढ़ी नए चेहरों की तलाश में है और पारंपरिक राजनीति से तंग आ चुकी है। 

माजिद ने इंजीनियर रशीद की चुनावी मुहिम का समर्थन किया था और उनकी जीत को युवाओं की सोच और अपेक्षाओं का प्रतीक माना है। यह जीत न केवल इंजीनियर रशीद के लिए बल्कि उन सभी लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो कश्मीर में बदलाव और नई दिशा की उम्मीद कर रहे हैं।

इंजीनियर रशीद को ‘आतंकवाद की फंडिंग’ के आरोप में यूएपीए के तहत 2019 में गिरफ्तार किया गया था और इस समय वे दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद हैं। यूएपीए (Unlawful Activities Prevention Act) कानून 1967 में भारत में गैरकानूनी गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए लाया गया था, जिसका उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती देने वाली गतिविधियों पर रोक लगाना था। 2019 में केंद्र सरकार ने इस कानून में संशोधन कर सरकार को यह ताकत दी कि वह किसी भी व्यक्ति को अदालती कार्रवाई के बिना चरमपंथी या देशविरोधी घोषित कर सकती है।

इंजीनियर रशीद की गिरफ्तारी के बाद, अवामी इत्तेहाद पार्टी ने उन पर लगे आरोपों को खारिज किया है और इसे राजनीतिक साजिश बताया है। रशीद, अवामी इत्तेहाद पार्टी के संस्थापकों में से एक हैं और 2019 में भी उन्होंने बारामुला से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और तीसरे स्थान पर रहे थे। इस बार उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 

उनकी जीत को उनके समर्थकों और आम लोगों ने एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश के रूप में देखा है, खासकर कश्मीर के युवाओं ने इसे पारंपरिक राजनीति के खिलाफ एक नई आवाज के रूप में माना है।

अब्दुल रशीद शेख़, जिन्हें इंजीनियर रशीद के नाम से जाना जाता है, का जन्म हंदवाड़ा कस्बे के लाछ, मावर में हुआ था। श्रीनगर पॉलिटेक्निक से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले रशीद ने एक सरकारी विभाग में इंजीनियर के पद पर करीब 25 साल तक नौकरी की थी।

साल 2003 के आसपास, उन्होंने कश्मीर के मशहूर उर्दू साप्ताहिक अखबार ‘चट्टान’ में राजनीतिक मुद्दों पर लिखना शुरू किया, जिससे उन्हें काफी शोहरत मिली। इसी दौरान, उन्होंने कश्मीर में भारतीय सेना के कथित मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ भी आवाज उठानी शुरू की और धरनों व प्रदर्शनों के जरिए अपनी बात रखते थे।

इंजीनियर रशीद का परिवार राजनीति में सक्रिय नहीं था और वे एक साधारण परिवार से आते हैं। तीन बच्चों के पिता रशीद शांतिपूर्ण तरीके से कश्मीर समस्या को हल करने की वकालत करते रहे हैं। वे जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने के सख्त खिलाफ थे और इस मुद्दे पर उन्होंने कई धरने भी दिए हैं।

साल 2008 में, रशीद ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कुपवाड़ा के लंगेट विधानसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2013 में, उन्होंने अवामी इत्तेहाद पार्टी की स्थापना की। 2014 के विधानसभा चुनाव में वे दोबारा विधायक बने, लेकिन बारामुला से लोकसभा चुनाव हार गए। 

2015 में, जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अंदर बीजेपी के कुछ विधायकों ने बीफ पार्टी बुलाने के आरोप में उनके साथ धक्का-मुक्की की थी। दिल्ली के प्रेस क्लब में भी उन पर काली स्याही फेंकी गई थी।

अपने अनोखे अंदाज के लिए मशहूर इंजीनियर रशीद विधायक बनने के बाद भी बिना किसी सुरक्षा के अपनी छोटी-सी निजी कार में आना-जाना करते थे। उनकी इस सादगी और जनता के साथ जुड़े रहने की शैली ने उन्हें कश्मीर में एक लोकप्रिय नेता बना दिया।

इस चुनाव के दौरान इंजीनियर रशीद जेल में थे, इसलिए उनके चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी उनके बेटे अबरार रशीद ने संभाली। अबरार के मुताबिक, उनके पास चुनाव प्रचार के लिए पैसे नहीं थे। यहां तक कि प्रचार के लिए चुनावी पोस्टर्स कैसे बन जाते थे, कौन बना देता था, उन्हें यह भी नहीं पता था।

इंजीनियर रशीद के समर्थकों ने इस चुनाव में ‘जेल का बदला वोट से’ का नारा दिया था। नतीजे आने के बाद इंजीनियर रशीद के छोटे भाई खुर्शीद अहमद ने बीबीसी से बात की। उन्होंने कहा, “आखिरकार जनता ने रशीद साहब को संसद भेजा। लेकिन तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने जनवरी से अभी तक परिवारवालों को उनसे बात करने तक की इजाज़त नहीं दी है। वे अपने बुजुर्ग माता-पिता से भी बात नहीं कर पा रहे हैं।”

खुर्शीद अहमद ने कहा, “जिस देश का संविधान इतना आज़ाद है कि रशीद साहब को चुनाव लड़ने की इजाज़त दी, उसी देश के कुछ गिने-चुने व्यक्तियों ने उनके बुनियादी अधिकार उनसे छिन लिए हैं।”

उन्हें उम्मीद थी कि जिस तरह से इंजीनियर रशीद ने अपने इलाके में विकास का काम किया है और लोगों के अधिकारों की बात करते आ रहे हैं, उसका फल उन्हें ज़रूर मिलेगा। वे कहते हैं, “अब उन्होंने चुनाव जीत लिया है और हमें उनके बाहर आने का इंतजार है। परिवार से ज़्यादा अब जनता को उनका इंतजार है, जिन्होंने उन्हें चुना है।”

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samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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