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बात बेबाक

‘400 पार’ की धमक के साथ शुरू हुआ “चुनाव2024” अब मझधार में करवटें बदल रहा है

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मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट

तीसरे चरण के मतदान के बाद देश में आधी से ज्यादा यानी 293 सीटों पर चुनाव सम्पन्न हो गया। अब तक मिले सभी संकेतों से यह स्पष्ट हो रहा है कि हर दिन इस चुनाव का रुझान बदल रहा है। विपक्ष से ज्यादा भाजपा का मुकाबला जनता कर रही है। 400 पार की खुमारी उतरने के बाद अब सवाल 300 पार का भी नहीं बचा। सवाल यह है कि क्या भाजपा अपने दम पर 272 पार कर सकती है। अब तो सवाल यह भी उठने लगा है कि अपने चुनावी सहयोगियों सहित भी क्या भाजपा पूर्ण बहुमत प्राप्त कर सकती है?

चुनाव की घोषणा होने से पहले ही मैंने लिखा था कि सत्ता के दावों पर ध्यान न दीजिए। इस चुनाव में भाजपा को 272 सीट के आंकड़े से नीचे उतारना संभव है। उस वक्त जो माहौल था उसमें ज्यादा लोगों ने इस तर्क की तरफ ध्यान नहीं दिया था। देश को तीन चुनावी पट्टियों में बांटते हुए मैंने कहा था कि ओडिशा से केरल तक की तटीय पट्टी में भाजपा को वोट का फायदा हो सकता है लेकिन उसे सीटों के फायदे से रोकना कठिन नहीं है। इस इलाके में भी भाजपा को ज्यादा से ज़्यादा 10 सीट का फायदा हो सकता है।

उधर उत्तर और पश्चिम की हिन्दी पट्टी जिसमें गुजरात भी शामिल है, में भाजपा को पूरी तरह झाड़ू लगाने से रोका जा सकता है। हर राज्य में समझदार रणनीति बनाकर भाजपा से दो-चार सीटें  छीनी जा सकती हैं। तीसरी यानी कि बीच की पट्टी में चार ऐसे बड़े राज्य चिन्हित किए जा सकते हैं जहां भाजपा और उसके सहयोगियों को बड़ा नुकसान होना अवश्यंभावी है। कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार और बंगाल जैसे इन 4 राज्यों में भाजपा को 10-10 सीट का भी नुकसान होता है तो कुल मिलाकर भाजपा 272 से नीचे आ सकती है। यह मेरा शुरूआती अनुमान था।

तीन चरणों का चुनाव प्रचार पूरा होने के बाद अब उस चुनावी गणित की समीक्षा करना जरूरी है। अब तक मिले संकेतों के आधार पर बड़े उलटफेर वाले प्रदेशों की सूची से पश्चिम बंगाल का नाम कट जाएगा। बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस का गठबंधन न होने, मुस्लिम वोट के बिखराव की संभावना और संदेशखाली जैसी घटनाओं के चलते भाजपा को बड़े घाटे की संभावना से उबरने का मौका मिला है। विधानसभा चुनाव की बड़ी हार और उसके बाद पार्टी में बिखराव के बावजूद भाजपा फिर पिछली बार की तरह 18 सीट के नजदीक पहुंच सकती है। फिलहाल यहां किसी बड़े उलटफेर की गुंजाइश दिखाई नहीं पड़ती।

लेकिन बाकी चुनावी अखाड़ों में भाजपा की हालत पहले से भी पतली दिखाई देती है। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी भाजपा लोकसभा में बहुत शानदार प्रदर्शन किया करती थी। मगर इस बार वैसा नहीं हो रहा। सिद्धारमैया सरकार की गारंटियों, कांग्रेस के बड़े नेताओं द्वारा चुनाव में दांव खेलने और भाजपा के आंतरिक बिखराव के चलते यहां इस बार कांग्रेस आधी सीटों की दावेदार दिखाई दे रही थी। रही-सही कसर प्रज्वल रेवन्ना कांड ने पूरी कर दी है। महाराष्ट्र में भाजपा तो मुकाबले में है, लेकिन शिवसेना का वोटर मुख्यमंत्री शिंदे की पार्टी को शिवसेना मानने के लिए तैयार नहीं है और न ही राष्ट्रवादी कांग्रेस का वोटर शरद पवार को छोडऩे को तैयार दिखता है।

यहां पिछली बार 48 में से भाजपा और सहयोगियों को 42 सीटें मिली थीं। सभी पर्यवेक्षकों के अनुसार इस बार यहां कम से कम 12 से 15 सीटों के  नुकसान का अनुमान है। बिहार में भी भाजपा से ज्यादा उसके सहयोगियों को नुकसान होता दिख रहा है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन ज्यादा संगठित है और नीतीश कुमार की राजनीति ढलान पर है। पिछली बार प्रदेश की 40 में से 39 सीटों को जीतने वाला एन.डी.ए. इस बार 25 या 30 के पार जाता दिखाई नहीं देता।

आधे देश में चुनाव प्रचार सम्पन्न होने के बाद बड़े उलटफेर की संभावना वाले इन प्रदेशों की सूची में अब ङ्क्षहदी पट्टी के 2 राज्यों को भी जोडऩा होगा। पिछले दो चुनावों में राजस्थान में भाजपा ने सभी 25 सीटें जीती हैं ; पिछली बार एक सीट भाजपा के सहयोगी को मिली थी, लेकिन इस बार प्रदेश के उत्तर और पूर्व के इलाकों में कांटे की लड़ाई है। इस बार कांग्रेस ने भाजपा की तुलना में टिकट  भी समझदारी से बांटे हैं और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, सी.पी.एम. और भारत आदिवासी पार्टी के साथ चुनावी समझौते कर समझदारी का परिचय दिया है। यहां भी भाजपा को 8-10 सीट का नुकसान होता दिख रहा है।

इस सूची में अब उत्तर प्रदेश भी जुड़ गया है। जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन के बावजूद भाजपा पहले दो चरणों में आशा अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई है। भाजपा के गढ़ उत्तर प्रदेश में मतदान में भी भारी गिरावट आई है। कुल मिलाकर पिछली बार 62 और सहयोगियों समेत 64 सीट जीतने वाली भाजपा इस बार अपना आंकड़ा बढ़ाने की बजाय नीचे जाती दिखाई पड़ रही है। यानी कि सात चरण की इस चुनावी यात्रा के मंझधार में इन 5 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों को कम से कम 10-10 सीट का नुकसान होता दिख रहा है। इसमें कम से कम 10 सीट गुजरात, मध्य प्रदेश, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली जैसे उन राज्यों की भी जोड़ दें जहां भाजपा को छुटपुट नुकसान होने की संभावना है। इन राज्यों में भाजपा को हुआ नुकसान तटीय पट्टी में हुए किसी फायदे को बराबर कर देगा। अगर यह गणित सही है तो भाजपा अपने दम पर किसी भी तरह 272 का आंकड़ा छूती दिखाई नहीं दे रही।

अगर आने वाले चरणों में यह हवा इसी तरह चलती रही तो यह भी संभव है कि भाजपा के चुनावी सहयोगी और भाजपा मिलकर भी बहुमत से नीचे रह जाएं। 

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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