अरमान अली की रिपोर्ट
जम्मू-कश्मीर के सोपोर में ‘पीर बाबा’ के नाम से मशहूर अज़ाज़ अहमद शेख को बच्चों के यौन शोषण के मामले में दोषी ठहराते हुए 14 साल की सख्त सजा सुनाई गई है। सोपोर की चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (CJM) मीर वजाहत की अदालत ने उन्हें रणबीर पीनल कोड (RPC) की धारा 377 के तहत दोषी करार दिया है।
न्यायिक प्रक्रिया और सुनवाई में देरी
यह मामला अदालत में करीब नौ वर्षों तक चला। सुनवाई के दौरान छह अलग-अलग जजों ने इस मामले को सुना, लेकिन कोविड-19 महामारी, अदालत के अधिकारियों के तबादले और अन्य तकनीकी अड़चनों के कारण फैसला आने में विलंब हुआ।
अभियुक्त पर लगे गंभीर आरोप
अज़ाज़ अहमद शेख, जिन्हें ‘पीर बाबा’ कहा जाता था, पर छोटे बच्चों के साथ यौन शोषण का आरोप था। 2016 में एक सर्वाइवर के पिता की शिकायत के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था। हालांकि, एक महीने बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। 2017 में पुलिस ने इस मामले में आरोप पत्र दायर किया।
गवाहों के बयान और अदालत का निर्णय
अदालत ने आठ गवाहों के बयान दर्ज किए, लेकिन केवल दो गवाहों के बयानों को सजा का आधार बनाया गया। अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि अन्य सर्वाइवरों के लिए अलग से कानूनी सहायता प्रदान की जाए और उनके मामलों की जांच की जाए।
अभियुक्त के धार्मिक प्रभाव और न्याय में बाधाएं
सीनियर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर मिर्ज़ा ज़ाहिद के अनुसार, अभियुक्त के खिलाफ कार्रवाई में देरी का एक बड़ा कारण उनका धार्मिक प्रभाव था। उन्होंने कहा, “ऐसे लोग धर्म की आड़ में बड़ी संख्या में अनुयायियों को प्रभावित करते हैं। जब कानून ऐसे लोगों पर कार्रवाई करता है, तो उनके अनुयायी विरोध में उतर आते हैं।”
सर्वाइवर की प्रतिक्रिया
फैसले के बाद एक सर्वाइवर ने कहा, “यह न्याय बहुत पहले मिल जाना चाहिए था। इतने सालों तक मैं और अन्य पीड़ित दर्द और तकलीफ से गुजरे हैं। न्यायाधीश ने हमारे दर्द को समझा, इसके लिए मैं उनका आभारी हूं।”
परिवार की प्रतिक्रिया और अपील की योजना
अभियुक्त अज़ाज़ अहमद शेख के परिवार ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कही है। उनके बेटे समीउल्लाह ने कहा, “हमारे पिता के खिलाफ झूठा मामला बनाया गया है। अगर यह सब होता, तो हमें या हमारी मां को पता नहीं चलता?”
अदालत द्वारा सुनाई गई सजा
धारा 377 RPC के तहत दोषी व्यक्ति को उम्रकैद या 10 साल तक की सजा हो सकती है। इस मामले में, अदालत ने अभियुक्त को दो सर्वाइवरों के लिए सात-सात साल की सजा सुनाई, जो एक साथ काटी जाएगी।
पुलिस की भूमिका और आगे की कार्रवाई
इस केस की विशेष जांच टीम (SIT) ने गहराई से पड़ताल की, जिसके दौरान कई अन्य पीड़ित सामने आए। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि धार्मिक प्रभाव के कारण जांच चुनौतीपूर्ण थी, लेकिन न्याय मिलने से यह साबित हो गया कि हमारी जांच सही थी।
यह मामला न्याय के प्रति समाज की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालांकि, इस तरह के गंभीर अपराधों में तेजी से न्याय सुनिश्चित करना आवश्यक है। यह फैसला समाज में एक मजबूत संदेश देता है कि अपराधी चाहे किसी भी प्रभाव में हों, उन्हें न्यायिक प्रक्रिया से बचाया नहीं जा सकता।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की