सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाल ही में हुए दिल्ली और लखनऊ विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की हार और अयोध्या के मिल्कीपुर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की शिकस्त ने नया मोड़ ला दिया है। इन नतीजों के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के हौसले बुलंद दिख रहे हैं, वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए नए सवाल खड़े हो गए हैं।
क्या पीडीए गठबंधन पर भरोसा करना सही?
समाजवादी पार्टी ने 2022 के चुनाव के बाद से पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) फार्मूले को अपनाया था। अखिलेश यादव का मानना था कि अगर यह गठबंधन मजबूत रहा तो 2024 और 2027 के चुनावों में पार्टी को जबरदस्त फायदा मिलेगा। लेकिन मिल्कीपुर की हार ने इस समीकरण को झकझोर दिया है।
मिल्कीपुर में करीब 65,000 यादव वोटर हैं, लेकिन इस चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी से दूरी बना ली। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि पीडीए गठबंधन के साथ-साथ यादव वोटर भी सपा के खिलाफ चले गए।
यादव वोटर क्यों हुए सपा से नाराज?
माना जा रहा है कि यादवों के सपा से दूर होने के पीछे अखिलेश यादव से ज्यादा अवधेश प्रसाद जिम्मेदार हैं।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पहले मित्रसेन यादव का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन 2012 में इसे अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित कर दिया गया।
इसके बाद यहां यादव नेताओं की जगह दलित नेता उभरने लगे।
अवधेश प्रसाद पासी समाज से आते हैं और उन्होंने कभी भी यादव वोटरों को खास तवज्जो नहीं दी।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मित्रसेन यादव और उनके पुत्र से अवधेश प्रसाद के रिश्ते हमेशा खराब रहे।
बीजेपी की रणनीति ने पलट दिया खेल
मिल्कीपुर में बीजेपी के लिए जीत आसान नहीं लग रही थी, लेकिन उसने अपनी राजनीतिक चतुराई से बाजी पलट दी।
1. बीजेपी ने अवधेश प्रसाद के खिलाफ उन्हीं की बिरादरी के चंद्रभानु पासवान को टिकट दिया, जिससे पासी वोट सीधे बीजेपी के खाते में चले गए।
2. बीजेपी ने यह संदेश देने में सफलता हासिल की कि समाजवादी पार्टी एक पारिवारिक पार्टी है।
3. यह प्रचारित किया गया कि अवधेश प्रसाद के बेटे के अलावा किसी और को टिकट नहीं दिया गया, जिससे यादव वोटर नाराज हो गए।
4. सपा के टिकट के कई दावेदारों में कुछ यादव नेता भी शामिल थे, लेकिन जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने भीतरघात कर दिया।
5. नतीजा यह हुआ कि यादवों और दलितों का बड़ा हिस्सा बीजेपी की तरफ चला गया और समाजवादी पार्टी के पीडीए समीकरण की हवा निकल गई।
क्या समाजवादी पार्टी 2027 के चुनाव में रणनीति बदलेगी?
मिल्कीपुर की हार से सबक लेते हुए अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश दिया है कि पार्टी पीडीए फार्मूले से पीछे नहीं हटेगी। उन्होंने कहा कि 2027 के विधानसभा चुनाव भी इसी रणनीति पर लड़े जाएंगे।
हालांकि, सपा को अब इस बात की चिंता सताने लगी है कि अगर यादव और दलित वोटर खिसकते रहे, तो पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है।
इसी वजह से समाजवादी पार्टी अब छोटे दलों के कद्दावर नेताओं को साथ जोड़ने की योजना बना रही है, जिनकी अपनी बिरादरी पर मजबूत पकड़ हो।
इसके अलावा, अखिलेश यादव मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने के लिए उनके मुद्दों को संसद और सड़कों पर उठाने की तैयारी कर रहे हैं।
लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर सपा सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर रही तो 80% हिंदू वोटर पूरी तरह बीजेपी की तरफ जा सकते हैं।
अयोध्या में दलित बच्चियों के मामले पर सपा का दोहरा रवैया
अयोध्या में हाल ही में दो दलित बच्चियों के साथ हुई अमानवीय घटनाओं ने भी समाजवादी पार्टी के रुख को कटघरे में खड़ा कर दिया।
1. पहली घटना में आरोपी मुस्लिम समुदाय से जुड़ा एक सपा नेता था, इसलिए सपा के सांसद अवधेश प्रसाद और पार्टी के अन्य नेता आरोपी का बचाव करते नजर आए।
2. दूसरी घटना में जब आरोपी किसी विशेष समुदाय से नहीं था, तो सपा पीड़ित बच्ची के लिए सार्वजनिक मंच से सहानुभूति जताने लगी।
इस दोहरे रवैये से दलित समुदाय के बीच सपा की विश्वसनीयता और ज्यादा कमज़ोर हो गई।
महाकुंभ को लेकर अखिलेश की बेचैनी क्यों बढ़ी?
अखिलेश यादव की एक और बड़ी चिंता महाकुंभ 2025 है।
प्रयागराज में करोड़ों श्रद्धालु जाति-धर्म से ऊपर उठकर सनातन संस्कृति को मजबूत कर रहे हैं, जिससे हिंदुत्व की विचारधारा और मजबूत हो रही है।
अखिलेश को लगता है कि महाकुंभ का यह माहौल सपा के पीडीए फार्मूले को कमजोर कर सकता है।
इसीलिए, अखिलेश यादव महाकुंभ की व्यवस्थाओं को बदहाल बताने और सरकार को बदनाम करने में जुटे हैं।
मौनी अमावस्या के दिन भगदड़ में कुछ लोगों की मौत हो गई, तो अखिलेश ने सरकार पर झूठे आरोप लगाने शुरू कर दिए।
अखिलेश यादव की सियासी रणनीति बनी समस्या?
समाजवादी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अखिलेश यादव की छवि एक बड़बोले नेता की बनती जा रही है।
वह जहां चुप रहकर अपनी पार्टी को फायदा पहुंचा सकते हैं, वहां भी वह बयानबाजी कर देते हैं।
उनकी राजनीति अब सिर्फ योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के खिलाफ हमले तक सीमित रह गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर अखिलेश इसी राह पर चलते रहे, तो 2027 के चुनाव में सपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
समाजवादी पार्टी के लिए चेतावनी की घंटी
मिल्कीपुर की हार और यूपी में पीडीए गठबंधन का कमजोर पड़ना समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी है।
यादव वोटर के खिसकने और दलितों के बीजेपी की तरफ जाने से सपा को बड़ा झटका लग सकता है।
अगर सपा सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर रही, तो उसे 2027 के चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति और योगी आदित्यनाथ की आक्रामक रणनीति ने सपा के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की