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18 January 2025 11:30 am

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इंडिया गठबंधन की बिखरी हुई एकता: दिल्ली विधानसभा चुनाव और आगे का संकट

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अनिल अनूप

देश की राजनीति में गठबंधन का खेल कभी भी स्थिर नहीं रहता। खासकर जब बात सत्ता की हो, तो इस संघर्ष में जोड़-तोड़, आरोप-प्रत्यारोप और स्वार्थ का खेल बढ़ जाता है। इंडिया गठबंधन, जिसे देश की विपक्षी ताकतों ने भाजपा के खिलाफ एकजुट होने के लिए बनाया था, अब अपनी ही आंतरिक जंग के कारण बिखरता नजर आ रहा है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन की हालिया स्थिति इस बात का गवाह है कि इन पार्टियों के बीच संघर्ष अब खुलकर सामने आ चुका है।

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच जो रिश्ते अभी तक गठबंधन की छांव में थे, अब वे सरेआम विरोध और हमलों में बदल गए हैं। दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पहले बार आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पर सीधा हमला बोलते हुए उनकी रणनीतियों को बीजेपी जैसी बताया। राहुल गांधी का कहना था कि केजरीवाल ने अपने वादों के नाम पर वही ढकोसला किया, जो नरेंद्र मोदी ने किया। इस बयान से यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच केवल नीतियों पर मतभेद नहीं हैं, बल्कि अब ये पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ भी खुलकर मैदान में आ चुकी हैं।

राहुल गांधी ने दिल्ली के प्रदूषण और केजरीवाल के कथित झूठे वादों को लेकर उन पर कटाक्ष किया और कहा कि दोनों ही नेता देश को गुमराह करने में एक जैसे हैं। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने इस हमले पर प्रतिक्रिया करते हुए राहुल गांधी पर व्यक्तिगत आरोप लगाए, यह कहकर कि वह बीजेपी की मदद कर रहे हैं। इस स्थिति में भाजपा को दोनों दलों के बीच चल रही घमासान का कोई विशेष नुकसान नहीं हो रहा है, क्योंकि भाजपा की रणनीति बस इस संघर्ष को और बढ़ावा देने की रही है।

दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए अपनी पकड़ मजबूत की है। 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरकर सिर्फ 4.26 प्रतिशत रह गया, जो इसके लिए एक बड़ा झटका था। वहीं, आम आदमी पार्टी की योजनाओं जैसे मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं गरीब और मध्यमवर्ग के मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रही हैं, जिससे कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति और भी कमजोर हुई है।

इस संघर्ष में भाजपा ने अपनी भूमिका को भी भली-भांति निभाया। भाजपा का मुख्य उद्देश्य इंडिया गठबंधन को कमजोर करना और कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच दरारें बढ़ाना है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं कि वे भाजपा के पक्ष में काम कर रहे हैं, और इसी रणनीति ने भाजपा को दिल्ली में अपना चुनावी अभियान आसान बना दिया है।

इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दलों ने भी कांग्रेस के खिलाफ तीखे आरोप लगाए हैं। तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दलों ने आम आदमी पार्टी का समर्थन किया है, जबकि कांग्रेस इन दलों के खिलाफ तीखी टिप्पणियाँ कर रही है। गठबंधन के घटक दलों के बीच यह आंतरिक संघर्ष और आरोप-प्रत्यारोप दर्शाते हैं कि गठबंधन की एकता अब केवल एक दिखावा बनकर रह गई है।

इंडिया गठबंधन के घटक दलों का अपने-अपने राज्यों में सत्ता की चुनौती से जूझना और कांग्रेस की बढ़ती ताकत से बचने की कोशिश ने इस गठबंधन को और भी कमजोर किया है। इसके अलावा, कांग्रेस की मुस्लिम वोटों को साधने की रणनीति भी इस गठबंधन के लिए कठिनाई पैदा कर रही है, क्योंकि कुछ घटक दल हिन्दुत्व विरोधी कदम उठाने से पीछे नहीं हटते। कांग्रेस की यह नीति गठबंधन के कुछ दलों के साथ मेल नहीं खाती, क्योंकि ये दल खुद अपनी सीमित सत्ता के दायरे में हिन्दुत्व से अलग अपनी राजनीतिक राह पर चल रहे हैं।

आखिरकार, दिल्ली विधानसभा चुनाव इंडिया गठबंधन की एकता की आखिरी परीक्षा साबित हो सकते हैं। क्या यह गठबंधन अपने बिखरते हुए रूप को फिर से एकजुट कर पाएगा, या फिर यह सत्ता के संघर्ष में अपनी ताकत खो देगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन फिलहाल, दिल्ली के चुनावों में जो तस्वीर उभर रही है, वह इंडिया गठबंधन के अस्तित्व के लिए एक बड़ा संकट बनकर सामने आ रही है।

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