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गुस्ताख़ प्रवेश शुक्ला ; आदिवासी के मुंह पर पेशाब कर भाजपा के लिए परेशानी बन गए हैं

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट 

जिसने धरोहर बचाई, पर्यावरण का सम्मान किया, जो टिका रहा आदिम, मगर ना तथाकथित उत्थान किया, देकर अमरत्व जगत को, बन रक्षक वह विष को पिया रहा, वह नहीं विलासी है, वह आदिवासी है। ये कविता निर्मल, निश्छल आदिवासी समाज के महज एक हिस्से की दास्तां है। विकास के साथ कदम ताल मिलाने की इनकी जद्दोजहद जारी है। ये उन्हें आगे भी बढ़ाता है और शोषण का शिकार भी बनाता है। मध्य प्रदेश के सीधी में दशमत रावत के साथ भी यही हुआ। उस शैतान का वीडियो आपने भी देखा होगा। कैसे दशमत निर्जीव बैठा हुआ है और शैतान प्रवेश शुक्ला अपनी जींस की जिप खोल उसके माथे पर, मुंह पर पेशाब कर रहा है। आजादी के अमृतकाल का ये दृश्य सिहरन पैदा करता है। सभ्य समाज के कलंकित कालखंड की याद दिलाता है। जिस अभय मुद्रा में प्रवेश शुक्ला जघन्यता की सीमा लांघता है उससे लगता है कि दंभ, अहंकार और दशमत जैसे भोले भाले आदिवासी को दास समझने की विलासी-सामंती कुंठा की इंतहा बाकी है। मानो आजादी के अमृतकाल में ही इंतहा के आखिरी छोर को छू लिया जाएगा। आज वो जेल में है लेकिन उसकी कारस्तानी भारी पड़ने वाली है। सत्ता की हनक और दशमत पर दबिश की कहानी पांच दिनों तक चली तब जाकर वो जेल में है। शिवराज सिंह चौहान ने तो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा दिया। क्यों भाई। जब अनुसूचित जाति-जनजाति उत्पीड़न निरोधक कानून से ही काम चल जाता तो एनएसए लगाने की क्या जरूरत थी? वो इसलिए कि एससी-एसटी एक्ट लगाने से तो गाहे बगाहे सरकार मान लेती न कि एक आदिवासी का शोषण हुआ है। शिवराज चुनाव के सीजन में ये जोखिम क्यों लेते तो सुनने में भारी भरकम लगने वाला एनएसए लगा दिया।

गुस्ताख प्रवेश शुक्ला

उधर गुस्ताख प्रवेश शुक्ला भगवा गमछे में चेहरा छुपाए लेकिन सीना ताने थाने में दाखिल होता है। चेहरे पर कोई शिकन नहीं। मानो जीत का उन्माद अभी भी कुलांचे मार रहा हो। उधर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में होड़ मच गई। जैसे ही खबर आई कि वो सीधी के भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला का करीबी है, भाजपा नेताओं ने डिलीट बटन दबाना शुरू कर दिया। केदार भी मुकर गए। लेकिन कुछ तस्वीरें आ ही गईं। केदार के साथ तस्वीर, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के साथ तस्वीर और कुछ बिलबोर्ड जो बताने के लिए काफी है कि मध्य प्रदेश का ये कलंक किस पार्टी से जुड़ा हुआ है। पूरे पांच दिनों तक प्रवेश शुक्ला ने दशमत को सताया। क्योंकि अब जो आप शपथ पत्र देख रहे हैं वो तीन जुलाई का है। दशमत के शरीर पर पेशाब करने के बाद उसने किस कदर शपथ पत्र पर हस्ताक्षर के लिए सताया होगा, उसी की बानगी है दो पेज का ये शपथ पत्र। मैं बस पहला पॉइंट पढ़ता हूं, बाकी आप खुद समझ जाएंगे – मैं दशमत रावत, निवासी ग्राम- करौदी, पोस्ट-कुबरी, थाना-बहरी, जिला- सीधी का रहने वाला हूं। यह कि मैं शपथ पूर्वक कहता हूं कि मेरे और प्रवेश शुक्ला पिता रमाकांत शुक्ला, ग्राम-कुबरी का नशा के हालत का वीडियो आदर्श शुक्ला पिता सुशील शुक्ला और उनके साथियों द्वारा वायरल किया जा रहा है, वह वीडियो झूठा और फर्जी है। मेरे साथ प्रवेश शुक्ला द्वारा कोई कभी भी ऐसा कृत्य नहीं किया गया है।

झूठ का शपथ पत्र

अब क्या कहूं। इस नोटरी को भी अरेस्ट क्यों नहीं करना चाहिए? कुछ तो कानून की पढ़ाई की होगी। लेकिन हमारा देश ही ऐसा है। 100 रुपए के स्टांप पर कोई भी मुहर लगाने को तैयार। और फिर प्रवेश शुक्ला की हैसियत भी देखी होगी उसने। कौन जहमत उठाएगा। वो तो भला हो फेसबुक, ट्विटर का। नहीं होते तो पता नहीं ऐसे कुकर्मियों का पर्दाफाश होता भी या नहीं। ये तो हमारा आपका गुस्सा है और लोकतंत्र में हार जाने का डर जिसने एमपी पुलिस की लाठी में जान ला दी। उधर सियासी तूफान लाने वाली इस घटना को कांग्रेस ने भी लपक लिया। कमलनाथ ने शिवराज पर भावुक हमला बोल दिया।

ठक्कर बापा के आदिवासी

दशमत उन 1.5 करोड़ आदिवासियों में से एक है जो मध्य प्रदेश में रहते हैं। देश में सबसे ज्यादा। मध्य प्रदेश की आबादी का 21 प्रतिशत। अनुसूचित जनजाति के तौर पर पहली पहचान इन्हें 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट से मिली। फिर हमारे संविधान में भी यही अपना लिया गया। लेकिन आदिवासी शब्द की बात करें तो श्रेय अमृतलाल विठ्ठलदास ठक्कर यानी ठक्कर बापा को जाता है। मध्य प्रदेश में 46 जनजातियां हैं। राज्य के 53 जिलों में से 30 में आदिवासियों का वास है। झाबुआ, बड़वानी, डिंडोरी , मंडला, बस्तर, धार, खरगौन में अच्छी खासी आदिवासी आबादी है। कोल, गोंड, भील, सहरिया जैसी जनजातियां रहती हैं। मांडला पिछले साल ही सौ प्रतिशत साक्षर जिला बना है। शिवराज सिंह चौहान को इन आदिवासियों की सख्त जरूरत है। खासकर तब जब प्रदेश में चुनाव की आहट सुनाई देने लगी है। तो बजट में भी सुनाई दी। तीन लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के बजट में लगभग 37 हजार करोड़ रुपए मामा ने आदिवासियों के लिए रखा। पिछले साल से 37 परसेंट ज्यादा। आदिवासी जिलों में कितना काम हो रहा है उसकी मॉनिटरिंग के लिए अलग ट्राइबल सेल भी बना दिया। शिवराज की मदद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी लगा है। वो खुद वनवासी कल्याण परिषद और आश्रम के काम को बताते-बताते थक जाते हैं।

कोल कुंभ

शिवराज सरकार ने इसी साल फरवरी में कोल महाकुंभ का आयोजन किया। अमित शाह भी आए और बता गए कि मोदी सरकार ने 2014 के बाद से अब तक जनजातियों के लिए 89000 करोड़ रुपए दिए हैं। मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में टॉयलेट्स बनाए गए हैं। पीएम आवास योजना के तहत घर बनाए जा रहे हैं। सन 1831 के कोल विद्रोह का जिक्र भी हो रहा है। पूरे देश में 200 करोड़ रुपए लगाकर म्यूजियम बन रहे हैं जहां आजादी की लड़ाई में आदिवासियों की भूमिका दिखाई देगी। चाहे मोदी हों शाह या शिवराज, इन सबने आदिवासियों को रिझाने के लिए इनके पौराणिक हीरो का इस्तेमाल किया है। मौकों पर गोंड महारानी दुर्गावती, रानी कमलापति का बलिदान, बुद्ध भगत और जोवा भगत की बहादुरी की कहानियां बताई जाती है। हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति के नाम पर कर दिया जाता है। एकलव्य मॉडल स्कूलों की संख्या भी बढ़ा दी गई है।

अगर मध्य प्रदेश जीतना है तो भाजपा आदिवासी सीटों को इग्नोर कर ही नहीं सकती। इसीलिए अमित शाह बार-बार एमपी आते हैं और आदिवासी कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं। 2022 में वन समिति सम्मेलन में अमित शाह आए और उन्होंने तेंदु पत्ता बटोरने वालों को खुद बोनस दिया। इसके साथ-साथ जंगलों में बसे 827 गांवों को रेवन्यू विलेज का दर्जा भी दिया गया ताकि सरकारी विकास के काम वहां हो सकें। जम शिवराज ने 2013 में जीत की हैटट्रिक बनाई थी तब उसे आदिवासी बहुत 47 में से 37 सीटें मिली थीं। लेकिन कमलनाथ ने 2019 में पासा पलट दिया और 31 सीटें कांग्रेस की झोली में आ गई। चुनाव पास है तो जबलपुर के विंध्य रीजन में पांच लाख उज्जवला सिलेंडर भी बांट दिए गए हैं। छिंदवाड़ा यूनिवर्सिटी का नाम स्वतंत्रता आंदोलन के योद्धा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के नाम पर रख दिया गया है। पीएम मोदी ने खुद जनजाति गौरव दिवस में हिस्सा लिया और अपने काम गिनाए। लेकिन सीधी की एक घटना इन दसियों प्रयासों पर भारी पड़ सकती है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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