सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
रामपुर: रामपुर विधानसभा उप चुनाव में आजम का गढ़ बचेगा या रामपुर पहली बार कमल खिलेगा यह तो आठ दिसंबर को तय होगा। लेकिन, मुस्लिम वोटों का नहीं पड़ना समाजवादी पार्टी प्रत्याशी को भारी पड़ सकता है। हिन्दू वोटों में उत्साह का लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिल सकता है। इसके अलावा मुस्लिम पसमांदा वोटों के रुख का भी भाजपा को फायदा मिल सकता है। सपा के लिए मुस्लिम वोटों का कम पड़ने के अलावा अन्य वोट बैंक का लाभ होता नहीं दिख रहा है।
उप चुनाव में आजम खां के लिए अपना गढ़ बचा पाना मुश्किल दिख रहा है। इस सीट पर आजम खां वर्ष 1980 से विधायक चुने जाते रहे हैं अलबत्ता, वर्ष 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अफरोज अली खां चुनाव जीत गए थे। वर्ष 2019 में आजम खां की पत्नी डा. तजीन फातिमा शहर विधायक चुनी गई थीं।
वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में आजम खां ने जीत दर्ज की। लेकिन, 27 अक्टूबर को एमपी-एमएलए कोर्ट ने भड़काऊ भाषण मामले में आजम खां को तीन साल की कैद की सजा सुना दी और उनकी विधायकी चली गई उनका मताधिकार भी छिन गया।
उन्होंने आए लेकिन, चुनाव के दौरान भाजपा सपा के शहराध्यक्ष आसिम राजा को ने उन्हें मंच पर जगह दी भाजपा की लोकसभा उप चुनाव लड़ाने के बाद इस चाल से आजम खां भी चकरा गए। एक बार विधानसभा उप चुनाव में भी उन्हें कहना पड़ा कि गो हत्यारों का टिकट दे दिया। लेकिन, आसिम राजा आजम का गढ़ बचा पाएंगे यह सवाल सभी को साल रहा है। क्योंकि, भाजपा ने रामपुर में मुस्लिम कार्ड खेलकर उप चुनाव को नया मोड़ दे दिया। इससे पहले पसमांदा वोट आजम खां के पक्ष में रहता था। लेकिन, भाजपा ने देश का दूसरा पसमांदा सम्मेलन रामपुर में करके पसमांदा मुस्लिम को अपने खेमे में करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी।
दूसरी ओर, आजम खां के करीबी भी मौके की नजाकत को भांपते हुए भाजपा के खेमे में शामिल हो गए। हालांकि, वे किसी बूथ पर नजर नहीं आए लेकिन चुनाव के दौरान भाजपा ने उन्हे मंच पर जगह दी भाजपा की इस चाल से आजम खान भी चकरा गए। उन्हें कहना पड़ा कि गो हत्यारों को मंच पर बैठाया जा रहा है। और जो असली भाजपाई हैं वह दरी बिछा रहे हैं।
उपचुनाव में भाजपा के रणनीतिकारों ने आजम खां पर मानसिक हमले भी किए जिसके कारण अंतिम जनसभाओं में अपनी जुबान पर काबू नहीं रख सके और अपने ऊपर दो मुकदमें दर्ज करा बैठे।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."