दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
इस्लामिक स्कूल मदरसा के बारे में आतंकवादियों और कट्टरपंथियों के पैदा किए जाने की बातें होती हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर गाजियाबाद के लोनी में एक ऐसा मदरसा है, जिसके प्रिंसिपल पंडित राम खिलाड़ी हैं। पंडित राम खिलाड़ी पिछले 15 साल से यहां पढ़ा रहे हैं।
राम खिलाड़ी कहते हैं, ‘मदरसे में पढ़ने और पढ़ाने में कुछ भी गलत नहीं है। मैं इसका उदाहरण हूं। हम मदरसे में वही शिक्षा देते हैं, जो दूसरे स्कूलों में दी जाती है। हमारे बच्चे यहां नकाब पहनते हैं, हम नमाज के लिए कलमा पढ़ते हैं। हर स्कूल की तरह हमारे भी नियम हैं।”
मदरसा जामिया रशीदिया की स्थापना वर्ष 1999 में 59 छात्रों के साथ की गई थी, जिनमें ज्यादातर आर्थिक रूप से गरीब मुस्लिम परिवारों के बच्चे थे।राम खिलाड़ी करीब 800 छात्रों और 22 शिक्षकों के प्रधानाध्यापक हैं। एक शिक्षक के रूप में वह बच्चों को हिंदी पढ़ाते हैं। उनका कहना है कि यहां आने से पहले उन्होंने दस साल तक कई स्कूलों में काम किया अध्यापन का कार्य किया, लेकिन यहीं पर उन्हें पढ़ाने के लिए अनुकूल माहौल मिला और नई नौकरी के लिए जाने का कभी मन नहीं किया। छात्र उन्हें “पंडित प्रिंसिपल सर” कहते हैं।
राम खिलाड़ी का कहना है कि उनको कभी यह महसूस नहीं हुआ कि धर्म उनके काम में बाधा है। वह छात्रों और कर्मचारियों के साथ एक परिवार की तरह रहते हैं। राम खिलाड़ी का मानना है कि भारतीयों को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा पर ध्यान देना जरूरी है। मदरसों के बारे में बुरा बोलने वाले सभी लोगों के लिए उनकी कुछ सलाह है। वो कहते है कि शिक्षा हमें सही और गलत के बीच का अंतर बताती है। हम जो सुनते हैं वह झूठ हो सकता है और जो हम देखते हैं वह झूठ भी हो सकता है। इसके लिए सुनी सुनाई बातों को जज करना चाहिए। मदरसे में कुरान के अलावा हिंदी और अंग्रेजी जैसी भाषाएं और विज्ञान विषय भी पढ़ाए जाते हैं।
वह बताते हैं कि तत्कालीन प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा 1994 में शुरू की गई मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत गणित, सामाजिक अध्ययन और विज्ञान जैसे विषयों की शुरूआत ने छात्रों को प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं और नौकरियों की तैयारी में मदद की है। मदरसे के हेड इमाम नवाब अली कहते हैं कि पहले माता-पिता अपने बच्चों को मदरसे में भेजने से हिचकते थे। अब हमारी क्लास फुल हो गई हैं। हम नए छात्रों के बैठाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। जिससे उनको भी शिक्षा मिल सके।
स्कूल के प्रवेश द्वार पर वर्ष 2019 के टॉपर्स की तस्वीरों वाला एक पोस्टर है, जिसमें सभी लड़कियां हैं। राम खिलाड़ी और स्कूल के अन्य शिक्षक यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के बारे में गर्व से बात करते हैं। यहां से निकलने वाले कुछ छात्र पुलिस सेवा में शामिल हो गए हैं। कई डॉक्टर बन गए हैं। एक छात्र स्थानीय अस्पताल का प्रबंधक है।
मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत नियुक्त राम खिलाड़ी व अन्य शिक्षकों को पिछले पांच साल से वेतन नहीं मिला है। उनको केवल पारिश्रमिक के रूप में 3,000 रुपये मिलता है। वो अपने दो बच्चों के साथ रहते हैं। दोनों ने इसी मदरसे से सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की है। वह मानते हैं कि इतने कम वेतन से गुजारा करना मुश्किल है। कभी-कभी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करना भी मुश्किल हो जाता है। आर्थिक तंगी के बावजूद राम खिलाड़ी हमेशा स्कूल में मौजूद रहते हैं। उनके चेहरे पर मुस्कान रहती है। वह कहते हैं, ‘मैं लोनी में जहां भी जाता हूं, लोग मेरा बहुत सम्मान करते हैं, बच्चे मुझे अपने घर ले जाते हैं।’
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."