दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
कर्नलगंज/कटरा बाजार। योगी सरकार में जिम्मेदार आला अधिकारियों के कानों में भ्रष्टाचार का खूँट इस कदर भरा हुआ है कि अपनी बेबसी पर रो रहे दलित परिवारों की आवाज़ उन तक नही पहुंच रही है।
जनप्रतिनिधि होने के नाते कलमकार जनता की समस्याओं को समेटकर समाचार विभिन्न माध्यमों से प्रकाशित कर नेताओं व अधिकारियों तक पहुंचाते हैं, पर मजाल है कि जनता के खून पसीने की कमाई से मिलने वाले वेतनों पर मौज कर रहे अधिकारी व जनप्रतिनिधि खबरों का संज्ञान लेकर गरीब जनता की परेशानी हल करा पाएं।
मालूम हो कि पत्रकार एक जनप्रतिनिधि बनकर समाज के अंतिम पायदान पर बैठे शोषित वंचितों की आवाज़ को सक्षम अधिकारियों तक पहुंचाता है परन्तु उसकी आवाज़ को अनसुना कर दिया जाता है।
इसी तरह का एक मामला ग्राम पंचायत पहाड़ापुर के दयाराम पुरवा में सामने आया है। दयाराम पुरवा दलितोँ की बस्ती है और यहां के लोग मेहनत मजदूरी कर अपनी जीविका चलाते हैं। दयाराम पुरवा में निवास कर रहे दलितों की बदहाली की सूचना मिलने पर कुछ स्थानीय पत्रकारों द्वारा उक्त गांव का दौरा किया गया और वहां की दयनीय हालत को समाचार पत्रों एवं अन्य माध्यमों से जनप्रतिनिधि व सक्षम अधिकारियों तक पहुंचाया गया।
विगत 25 जून को पत्रकार संगठन के पदाधिकारियों द्वारा पत्र लिखकर उपजिलाधिकारी से मांग की गई कि दयाराम पुरवा गांव के ग्रामीणों की समस्या का समाधान शीघ्र कराया जाए, जिसमें एक सप्ताह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी उपजिलाधिकारी हीरालाल द्वारा न तो उक्त गांव का दौरा किया गया और न ही समस्या के समाधन हेतु दयाराम पुरवा गांव में किसी सक्षम अधिकारी को भेजा गया।
सोशल मीडिया के माध्यम से जिलाधिकारी को भी उपरोक्त मामले की सूचना दी गई परंतु कोई सुनवाई नही हुई। सरकारी दया का मोहताज दयाराम पुरवा गांव के लोगों ने कहा कि साहेब शायद हम लोग दलित बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं इसीलिए हमारी बदहाली पर कोई आंसू बहाने वाला नही है और जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों के कानों तक आवाज नही पहुंच रही है। जिससे वह लोग आजादी के कई दशक बाद भी बदहाली की जिंदगी जीने पर विवश होकर सरकारी मूलभूत सुविधाओं की बाट जोह रहे हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."