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November 26, 2024 2:22 am

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याद न रह जाए ; घोड़ों के अस्तबल में “नाल” ठोंकते ठोंकते फिल्मी दुनिया में “ताल” ठोकने वाले इस शख्स की अजीब है दास्तान

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अनिल अनूप की खास रिपोर्ट

भारतीय सिनेमा को मदर इंडिया जैसी कालजयी फिल्म देने वाले महबूब खान की आज 68वीं पुण्यतिथि है। महबूब खान पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनके सीखने का जज्बा और समय से आगे कुछ कर दिखाने की ललक ने उन्हें वाकई सबसे अलग पहचान दिलाई। महबूब खान बचपन से ही हीरो बनने का सपना देखा करते थे, लेकिन घरवाले इसके खिलाफ थे तो सपने की कुर्बानी देनी पड़ी। अस्तबल में घोड़े की नाल की मरम्मत करते हुए एक शख्स से हुई मुलाकात उन्हें बॉम्बे ले आई। आज यही महबूब भारतीय सिनेमा के सबसे कामयाब डायरेक्टर कहे जाते हैं। इनकी बनाई फिल्में लोगों के लिए मिसाल बनीं, वहीं 1954 में इनका बनाया महबूब स्टूडियो आज भी शूटिंग केंद्र है।

9 सितंबर 1907 को महबूब खान का जन्म बिलिमोरा, गुजरात में पुलिस कॉन्स्टेबल के घर हुआ। बचपन से ही महबूब को एक्टर बनने का शौक था, लेकिन पिता इसके सख्त खिलाफ थे। फिल्मों से इनका लगाव ऐसा था कि अक्सर ये ट्रेन का सफर का सिर्फ फिल्में देखने के लिए करते थे। 16 साल की उम्र में महबूब खान घर से भागकर हीरो बनने बॉम्बे पहुंच गए, लेकिन यहां उन्हें काम नहीं मिला। जैसे ही पिता को उनकी जानकारी मिली, तो वो उन्हें बॉम्बे से वापस गांव ले आए। दोबारा महबूब घर से ना भाग सकें, इसलिए पिता ने एक बेहद छोटी लड़की से कम उम्र में ही उनकी शादी करवा दी। महबूब ने हीरो बनने का सपना छोड़ घर बसा लिया, लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था।

3 रुपए लेकर फिर किस्मत आजमाने पहुंचे बॉम्बे

हिंदी सिनेमा के प्रोड्यूसर और फिल्मों में घोड़ा सप्लाई करने वाले नूर मोहम्मद से महबूब खान की मुलाकात उन्हें दोबारा मुंबई ले आई। जब नूर ने उन्हें अपने अस्तबल में घोड़े की नाल ठोकने का काम दिया तो महबूब महज 3 रुपए जेब में लेकर सफर पर निकल पड़े।

कैसे मिला फिल्मों में पहला काम

एक दिन घोड़े की नाल ठीक करने वाले महबूब खान का साउथ फिल्म की शूटिंग के सेट पर जाना हुआ। इस फिल्म का निर्देशन चंद्रशेखर कर रहे थे। शूटिंग देखकर महबूब का एक्टर बनने का सपना फिर ताजा हो गया। उन्होंने चंद्रशेखर के साथ ये बात शेयर की तो वो भी उनकी दिलचस्पी और अनुभव से इंप्रेस हो गए। चंद्रशेखर ने तुरंत अस्तबल के मालिक नूर मोहम्मद से महबूब को अपने साथ ले जाने की इजाजत ले ली।

चंद्रशेखर ने महबूब को बॉम्बे फिल्म स्टूडियो में छोटा सा काम दे दिया। चंद छोटे-मोटे काम करने के बाद महबूब को साइलेंट फिल्मों के दौर में फिल्में असिस्ट करने का मौका मिला। कभी जब फिल्में नहीं मिलीं तो महबूब ने इंपीरियल फिल्म कंपनी में एक्स्ट्रा बनकर भी काम किया। जब पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनने वाली थी तो आर्देशिर ईरानी ने महबूब खान को हीरो बनाया, लेकिन साथियों के बहकावे में आकर उन्होंने फैसला बदल दिया और फिल्म विट्ठल को मिल गई।

महबूब समझ चुके थे कि फिल्मों में उन्हें लीड रोल मिलना लगभग नामुमकिन है, तो वो फिल्में लिखने में जुट गए। महबूब अपनी स्क्रिप्ट लेकर स्टूडियो और प्रोड्यूसर्स के चक्कर काटा करते थे। लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार महबूब को पहली फिल्म अल हिलाल- 1935 (जजमेंट ऑफ अल्लाह) डायरेक्टर करने का मौका मिला। इसके बाद महबूब को सागर फिल्म कंपनी में काम करने का मौका मिला, जिसके लिए उन्होंने डेक्कन क्वीन (1936), एक ही रास्ता (1939), अलीबाबा (1940), औरत (1940) जैसी बेहतरीन फिल्में कीं।

सागर फिल्म्स के लिए महबूब खान ने 1940 में फिल्म औरत बनाई थी। दो साल बाद महबूब खान ने पहली पत्नी को तलाक देकर इसी फिल्म की एक्ट्रेस सरदार अख्तर से शादी कर ली। पहली पत्नी से पहले ही महबूब को तीन बेटे थे, लेकिन जब उन्होंने दूसरी शादी की तो खुद के बच्चे करने की बजाय उन्होंने बेटे को गोद ले लिया। इनके बेटे का नाम साजिद खान था।

अपनी ही फिल्म का रीमेक बनाकर रच दिया इतिहास

औरत फिल्म हिट थी। इसके बावजूद महबूब ने जब 1945 में खुद का प्रोडक्शन हाउस महबूब प्रोडक्शन शुरू किया तो उन्होंने ये फिल्म दोबारा मदर इंडिया टाइटल के साथ बनाई। ये फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास की और महबूब के करियर की सबसे बेहतरीन फिल्म मानी जाती है।

मदर इंडिया भारत की पहली फिल्म है, जिसे एकेडमी अवॉर्ड (ऑस्कर) में भेजा गया था। इस फिल्म को खूब तारीफें भी मिलीं, लेकिन महज एक वोट से फिल्म ऑस्कर जीतने से चूक गई। ये वोट फिल्म को इसलिए नहीं मिला, क्योंकि फिल्म की लीड एक्ट्रेस राधा (नरगिस) ने लाला सुखीराम (कन्हैयालाल) से शादी नहीं की।

1954 में महबूब खान द्वारा शुरू किया गया महबूब स्टूडियो भारत का सबसे लोकप्रिय स्टूडियो है। यहां मदर इंडिया से लेकर, ब्लैक, चेन्नई एक्सप्रेस, हाउसफुल-2 जैसी कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।

इन अभिनेताओं को दिलाई इंडस्ट्री में पहचान

महबूब खान ने ना सिर्फ फिल्में बनाईं, बल्कि कई ऐसे कलाकारों का परिचय इंडस्ट्री से करवाया जो स्टार बन गए। इनमें सुरेंद्र, अरुण कुमार आहूजा, दिलीप कुमार, राज कपूर, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार, राज कुमार, नरगिस, निम्मी और नादिरा शामिल हैं।

बुरी तरह फ्लॉप हो गई थी आखिरी फिल्म

मदर इंडिया की बेहतरीन कामयाबी के बाद महबूब खान ने 1962 में सन ऑफ इंडिया बनाई। फिल्म में महबूब ने बेटे साजिद खान, कमलजीत, सिमी गरेवाल को लीड रोल दिया। ये फिल्म एक बड़ी फ्लॉप साबित हुई। दुर्भाग्य से ये महबूब की आखिरी फिल्म थी।

जवाहरलाल नेहरु की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर सके महबूब

27 मई 1964 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया। उनकी मौत की खबर से महबूब को इतना गहरा सदमा पहुंचा कि अगले ही दिन उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई। इस समय महबूब अपनी अगली फिल्म की तैयारी कर रहे थे। जो बन ना सकी।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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