रश्मि प्रभा की रिपोर्ट
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में औसतन 16 फीसदी लड़के और 10 फीसदी लड़कियों की शादी तय उम्र से पहले की जा रही है। इसमें भी चौंकाने वाली बात यह है कि गांवों के मुकाबले शहरों में यह अनदेखी ज्यादा हो रही है। गांवों में जहां 9.8 फीसदी लड़कियों और 13.8 फीसदी लड़कों की शादी कम उम्र में की जा रही है।
वहीं शहरों में यह आंकड़ा क्रमश: 10 और 21 फीसदी है। उत्तराखंड में लड़कियों के विवाह की उम्र फिलहाल 18 वर्ष है, जबकि लड़के 21 साल के बाद ही शादी कर सकते हैं। ऐसे में सर्वे रिपोर्ट में हुआ खुलासा हैरान करने वाला है। जिस उम्र में युवाओं को पढ़-लिखकर भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।
उसी उम्र में अभिभावक उन्हें शादी के बंधन में बांध रहे हैं। इससे युवाओं के सामने बेरोजगारी का संकट भी पैदा होने लगता है। जल्द शादी की वजह से लड़कियां कम उम्र में ही मां भी बन रही हैं। ग्रामीण इलाकों में 15 से 19 वर्ष आयु वर्ग की 2.6 फीसदी लड़कियां मां बन चुकी हैं, जबकि शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 2.1 फीसदी है।
हल्द्वानी स्थित एमबीपीजी कॉलेज में समाज शास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. कमरूद्दीन का मानना है कि बाल विवाह का मुख्य कारण सोशल मीडिया का बढ़ता असर है। जागरूक अभिभावक इस तरह से बाल विवाह कराने में झिझकते हैं। हालांकि कई परिवार गरीबी के कारण भी बाल विवाह कराने को मजबूर होते हैं।
सामाजिक बदलाव व सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के चलते किशोर व किशोरियों के जल्द विवाह के मामले बढ़ रहे हैं। हर जिले में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। बाल कल्याण विभाग को इन्हें गंभीरता से लेते हुए जनजागरूकता व काउंसलिंग के कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए। नीरज चिलकोटी, पूर्व सहायक निदेशक समाज कल्याण
Author: samachar
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