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“योग्यता प्रधान है अधिकारी प्रधान नहीं है”, कह गए स्व कल्याण सिंह

कल्याण सिंह का यह ब्रम्ह वाक्य आज सबके लिए अनुकरणीय है

अनिल अनूप की खास रिपोर्ट

लखनऊ। ‘कोई दोष नहीं, कोई कसूर नहीं, कोई कमी नहीं। सारी जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूं सीधा। कहीं कोई दंड देना हो तो किसी को ना देकर मुझे दिया जाए।’ 

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6 दिसंबर 1992 पर कल्याण सिंह का बेबाक बयान भला कौन भूल सकता है। एक ऐसी घटना जिसने देश की सियासत की धारा बदल दी। राम जन्मभूमि, बाबरी मस्जिद और 6 दिसंबर। इस कहानी के वैसे तो बहुत से किरदार हैं लेकिन इनमें से एक खास किरदार हैं कल्याण सिंह। उनके कुछ धटनाओ का चश्मदीद इन पंक्तियों का लेखक मैं भी रह चुका हूं।

‘पूरी यात्रा में लोग कल्याण की आरती उतार रहे थे’

6 दिसंबर की घटना और कल्याण सिंह से जुड़े एक किस्से के बारे में , ‘उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि विवादित ढांचे की मैं रक्षा करूंगा। उस समय उनके सामने कठिन चुनौती थी। 5 से 6 दिसंबर का जो समय बीता उस पर तो एक किताब लिखी जा सकती है। कल्याण सिंह ने यूपी के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री थे। उन्होंने कहा कि इनको बर्खास्त कर दिया गया है। शुरुआत में इनको भी कहीं लगा कि ऐसा होना नहीं चाहिए। लेकिन इन्होंने जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। उन्होंने कहा कि जो भी हुआ है उसके लिए मैं जिम्मेदार हूं और इस्तीफा देता हूं। 

6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस के एक महीने बाद कल्याण सिंह जब अयोध्या गए तो जगह-जगह पर लोग इकट्ठा होकर उनकी आरती उतार रहे थे। इतना जबरदस्त स्वागत हो रहा था कि लखनऊ से अयोध्या की तकरीबन सवा सौ किलोमीटर की दूरी तय करने में उनको 12-13 घंटे लगे थे।

‘ब्रह्मदत्त जी ये रास्ता अयोध्या नहीं दिल्ली को जाता है’

इस यात्रा में बीजेपी के कद्दावर नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी भी कल्याण सिंह के साथ थे। वही ब्रह्मदत्त द्विवेदी जिन्होंने स्टेट गेस्ट हाउस कांड के वक्त मायावती को बचाया था।  ‘उस समय ब्रह्मदत्त द्विवेदी जिंदा थे। हमारी गाड़ी उनकी गाड़ी के बगल रुक-रुककर चल रही थी। हम लोग बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे। मैंने कहा ब्रह्मदत्तजी ये रास्ता दिल्ली को जाता है। वो समझ नहीं पाए। मैंने कहा कि मैं राजनीतिक रास्ते की बात कर रहा हूं।

उतना भव्य स्वागत मैंने अपने पत्रकारिता जीवन में किसी का नहीं देखा है। लोगों ने पूरा भाव उड़ेल दिया और तभी कल्याण सिंह के मुंह से निकला कि 6 दिसंबर शर्म का नहीं गर्व का दिन है।

विपक्ष के लोग कहते थे कि भारतीय इतिहास में कलंक का दिन है। लोगों के रेस्पॉन्स से वह गदगद थे। उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी। उनका एक स्टाइल था, जब पब्लिक मीटिंग करते थे तो कई बार कहते थे कि रामजी से अभी मेरी हॉटलाइन पर बात हुई है।’

‘उस वक्त बीजेपी में तीन नेता एक ही कद के थे’

वरिष्ठ पत्रकार राकेश पांडेय ने कल्याण सिंह की लोकप्रियता का जिक्र करते हुए बताया, ‘मैं तो कई बार यह कहता था कि एक समय ऐसा था कि बीजेपी में तीन नेता एक ही कद के थे। तीनों की तासीर अलग-अलग थी। अटलजी की अपनी भूमिका थी, अपनी गरिमा थी। आडवाणी जी का प्रबंधन के क्षेत्र में कोई सानी नहीं था। राजनीति की समझ, लोगों से कैसे जुड़ना है और कैसै संगठन का विस्तार करना है। कल्याण सिंह को 1992 के पहले भी कई बार मैंने विधानसभा में उनको बोलते सुना है। राजनीति के उद्देश्यों और प्रशासन को लेकर वह एकदम क्लियर थे। यही वजह है कि उनके ऊपर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा पाता। राजनीति उनके लिए सेवा ही थी लेकिन अपनी शर्तों पर। राजनीति उनके लिए व्यवसाय नहीं थी।’

कल्याण सिंह के बारे में कहने-बताने को बहुत सारी चीजें हैं। बहुत सारा अखबारों में लिखा गया कहा गया। लेकिन कल्याण सिंह के बारे में एक बात की चर्चा होनी चाहिए पर हुई नहीं। वो यह है कि कल्याण सिंह को एडमिनिस्ट्रेशन की बहुत गहरी समझ थी।

उनका एक वाक्य मुझे बार-बार याद आता है जो प्रबंधन के विद्यार्थियों और राजनीति सीखने वालों को बताया जाना चाहिए। वह कहा करते थे कि मुझे अधिकारी के लिए पद नहीं चाहिए मुझे पद के लिए अधिकारी चाहिए। 

मतलब योग्यता प्रधान है अधिकारी प्रधान नहीं है। अधिकारी किस जाति का है किसके करीब है ये महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि उसकी योग्यता क्या है। एक वाक्य में अगर प्रशासन को बताना हो तो यह वाक्य काफी है। यह वो अकसर कहा करते थे।’

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