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November 1, 2024 2:04 pm

राजस्थानी लोक कथा पर आधारित नाटक ‘नज़र लगी राम’ का शानदार मंचन

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जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट

आजमगढ़। 28 अगस्त 2024 को आज़मगढ़ के चक्रपानपुर स्थित श्री राहुल सांकृत्यायन बालिका इंटर कॉलेज के परिसर में केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली और सूत्रधार संस्थान, आज़मगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में एक शानदार नाटक का मंचन किया गया। इस नाटक का शीर्षक “नज़र लगी राम” था, जो राजस्थान की एक लोक कथा पर आधारित था। यह नाटक विजयदान देथा की कहानी “आशीष” पर आधारित था और इसे नाट्य दल सूत्रधार द्वारा प्रस्तुत किया गया।

नाटक की कहानी एक राज्य के राजा पर केंद्रित है, जो अपनी प्रजा के हित में दिन-रात लगा रहता है। उसे ऐसा लगता है कि विधाता ने इस संसार में बहुत सारी चीज़ों का फ़िज़ूल खर्च किया है, जैसे एक आदमी के लिए एक आंख ही काफ़ी है, तो उसे दो आंखें क्यों दी गईं? एक नाक में दो छेद क्यों हैं? राजा इन विसंगतियों के लिए विधाता को दोषी ठहराता है और उन्हें सुधारने के लिए कई तरह के नियम-कानून बनाता है।

एक दिन राजा अपने दरबार में सियारों की हुआँ-हुआँ की आवाज़ सुनता है। वह अपने मंत्री से पूछता है कि यह आवाज़ किसकी है। मंत्री बताता है कि यह सियारों की आवाज़ है और वे बहुत स्वामी भक्त होते हैं। राजा तुरंत आदेश देता है कि सियारों की तकलीफ़ का पता लगाकर उनकी समस्या का समाधान किया जाए। मंत्री बताता है कि ठंड के कारण सियार इस तरह की आवाज़ कर रहे हैं। राजा तुरंत खजांची को आदेश देता है कि सियारों के लिए कंबल, रजाई और गद्दे की व्यवस्था की जाए।

कुछ दिन बाद फिर से सियारों की हुआँ-हुआँ की आवाज़ सुनाई देती है। राजा पूछता है कि अब उन्हें क्या दिक्कत है। मंत्री बताता है कि कंबल और रजाई से ठंड नहीं जा रही है क्योंकि सियार खुले आसमान के नीचे रहते हैं। राजा तुरंत सियारों के लिए घर बनवाने का आदेश देता है।

कुछ दिन बाद राजा फिर से सियारों की आवाज़ सुनता है और पूछता है कि अब उन्हें क्या समस्या है। मंत्री बताता है कि अकेलेपन के कारण सियार बोर हो रहे हैं, इसलिए उनकी शादी करवाई जानी चाहिए। राजा तुरंत आदेश देता है कि सियारों की शादी की जाए। मंत्री बताता है कि राज्य में सियारिनें कम हैं, इसलिए सभी सियारों की शादी नहीं हो सकती। राजा आदेश देता है कि पड़ोसी राज्य से लड़कियां लाकर सियारों से ब्याही जाएं। मंत्री सुझाव देता है कि युद्ध के बजाय लड़कियां खरीदी जा सकती हैं, जिस पर राजा सहमति देता है।

फिर एक दिन सियारों की आवाज़ फिर से सुनाई देती है और राजा क्रोधित होकर मंत्री से पूछता है कि अब क्या दिक्कत है। मंत्री बताता है कि सियारिनें गर्भवती हैं, और उन्हें देखभाल की जरूरत है। राजा तुरंत गर्भवती सियारिनों के लिए दवाओं और दारू की व्यवस्था करने का आदेश देता है।

अंत में, सियारों की हुआँ-हुआँ की आवाज़ सुनकर राजा पूछता है कि अब क्या करना चाहिए। मंत्री बताता है कि सियार अपने राजा के प्रति आभार व्यक्त कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें एक कोमल हृदय और प्रजा हितैषी राजा मिला है। राजा प्रसन्न होता है, और नाटक यहीं समाप्त हो जाता है।

इस नाटक ने व्यंग्य के माध्यम से व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया और दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया। अभिषेक पंडित के निर्देशन में प्रस्तुत यह नाटक दर्शकों के दिलों-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ने में सफल रहा। इस नाटक में सूरज सहगल ने राजा, सत्यम कुमार ने मंत्री, बृजेश मौर्य ने सेनापति, गोपाल ने खजांची, आर्यन ने नागरजी, रौशन ने प्रमुखजी, शिवम ने राजपरोहित, अनिल ने मसखरा, हर्ष ने नट, और सुमन ने नटी की भूमिकाओं को बहुत प्रभावशाली ढंग से निभाया। अन्य कलाकारों में विवेक पांडे, ओजस्विनी पांडे, राजेश्वरी पांडे, सुधीर, अमित, और ममता पंडित ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। नाटक के वस्त्र विन्यास ममता पंडित द्वारा किया गया, सेठ व प्रॉपर्टी का प्रबंधन सुग्रीव विश्वकर्मा ने किया, जबकि प्रकाश परिकल्पना रंजीत कुमार, गोपाल मिश्रा और सूरज यादव द्वारा की गई। मंच व्यवस्था में आशुतोष पांडे का सहयोग रहा।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."