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आज का मुद्दा

‘कांवड़ियों के लिए जगह लेकिन सड़क पर ईद की नमाज़ नहीं’, चंद्रशेखर का यह बयान क्यों है चर्चा में……

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शहबाज़ अनवर

आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर का एक बयान सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बयान में उन्होंने धार्मिक आस्थाओं और उनके सम्मान पर सवाल उठाए हैं। चंद्रशेखर ने बताया कि 23 जून को जब वह नजीबाबाद इलाके में गए थे, तब वहां की जनता ने उनके सामने एक महत्वपूर्ण मसला उठाया। 

उन्होंने कहा कि हर साल कांवड़ यात्रा के दौरान 10-12 दिनों के लिए कई रूट बंद हो जाते हैं जिससे आम जनता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचने में भी दिक्कत होती है। फिर भी सभी धर्मों के लोग अपनी परेशानियों को दरकिनार कर कांवड़ यात्रा की आस्था का सम्मान करते हैं और योगदान देते हैं।

चंद्रशेखर का कहना है कि जब हिंदू धर्म की आस्थाओं का सम्मान किया जाता है और लोग इसमें सहयोग करते हैं, तो फिर मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी अपनी धार्मिक आस्थाओं को मानने का पूरा अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर साल में दो बार ईद की नमाज़ के लिए 20-20 मिनट का समय दिया जाता है, तो इसमें किसी का नुकसान नहीं होता है और मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आस्थाओं का भी सम्मान किया जाना चाहिए।

उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर सत्ता पक्ष यह दावा करता है कि वह सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करता है, तो यह दायित्व बनता है कि सभी की धार्मिक भावनाओं का सम्मान हो। उन्होंने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अनुसार धार्मिक स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं और किसी भी तरह की धार्मिक असमानता या अन्याय को चुपचाप सहन नहीं करेंगे।

चंद्रशेखर ने यह भी कहा कि अगर सत्ता पक्ष के लोग यह दावा करते हैं कि सत्ता सभी की है और सभी के लिए चिंतित हैं, तो उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी धर्म की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे। उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान की मर्यादा के अनुसार सभी धर्मों को समान अधिकार मिलना चाहिए और वह हमेशा इसके लिए आवाज उठाएंगे।

हर साल सावन के महीने में लाखों लोग गंगा जल लेने के लिए हरिद्वार रवाना होते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग समूहों में पैदल यात्रा करते हैं जबकि कुछ लोग वाहनों का भी इस्तेमाल करते हैं। ये लोग गंगा जल लाने के लिए कंधों पर कांवड़ लेकर चलते हैं। 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों से कांवड़ मार्ग गुजरते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कई रास्ते बंद रहते हैं, मार्ग के आसपास मांस-मछली की बिक्री बंद करवा दी जाती है और मांसाहारी ढाबे भी बंद करवा दिए जाते हैं। बिजनौर के एक मुसलमान ढाबा संचालक कहते हैं, “लंबे समय तक हमारा काम बंद रहता है, हमें हर साल नुकसान उठाना पड़ता है।”

सड़क मार्ग पर पैदल चल रहे कांवड़ यात्रियों की सुरक्षा के लिए प्रशासन खास इंतजाम करता है। हैवी ट्रैफिक के लिए या तो रास्ते बंद कर दिए जाते हैं या रूट डायवर्ट कर दिया जाता है। 

धार्मिक आजादी को लेकर बहस और मुकदमे भी होते रहते हैं। सड़क पर नमाज पढ़ने को लेकर अगस्त 2019 में यूपी पुलिस का एक आदेश जारी हुआ था। तत्कालीन यूपी पुलिस प्रमुख (डीजीपी) ओमप्रकाश सिंह ने मीडिया से जानकारी साझा कर बताया था कि प्रदेश में सड़कों पर नमाज पढ़ने पर रोक लगाई गई है और शांति-समिति की बैठक बुलाकर आपसी सौहार्द का वातावरण बनाकर इस प्रकार की कार्रवाई की जाए।

साल 2019 में आए इन आदेशों के बाद पांच वर्षों में यूपी के मेरठ, बदायूं, कानपुर, हापुड़ और आगरा सहित कई जिलों में आदेश की अवहेलना और मार्ग अवरुद्ध कर नमाज पढ़ने के मामले में सैकड़ों लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई। इसी साल मार्च में सड़क पर नमाज पढ़ते लोगों को दिल्ली पुलिस के जवान द्वारा लात मारने का वीडियो वायरल होने के बाद हंगामा हुआ था। 

मेरठ में भी 11 अप्रैल, 2024 को ईद-उल-फितर की नमाज सड़क पर पढ़े जाने के मामले में 100-200 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई थी।

इस बारे में मेरठ के रेलवे रोड थाना कोतवाली प्रभारी निरीक्षक आनंद कुमार गौतम ने बीबीसी से कहा, “11 अप्रैल को थाना क्षेत्र की शाही ईदगाह में कई लोगों ने सड़क पर नमाज अदा की, इस मामले में 100-200 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई थी, जिसमें अभी जांच जारी है।”

हालांकि, इस प्रकार के मुकदमों के सवाल पर उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष और भाजपा नेता मुफ्ती शमून कासमी बीबीसी से कहते हैं, “सांसद चंद्रशेखर का बयान गैर जिम्मेदाराना है। मुसलमानों को चाहिए कि वे नमाज मस्जिद में पढ़ें, सड़कों पर ना पढ़ें। कानून का अनुपालन नहीं होगा तो कार्रवाई तो नियम के मुताबिक मजबूरी है।”

बिजनौर का अफ़ज़लगढ़ क्षेत्र उत्तराखंड के पहाड़ और कुमाऊं को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग है, जिससे होकर बड़ी संख्या में हजारों कांवड़िए हरिद्वार के लिए गुजरते हैं। इस क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या भी काफी अधिक है।

अफ़ज़लगढ़ सर्किल की पुलिस उपाधीक्षक अर्चना सिंह ने बीबीसी से कहा कि होली, दीपावली, कांवड़ यात्रा या ईद जैसे त्योहारों पर क्षेत्र की थाना चौकियों में शांति समितियों की बैठक होती है। इन बैठकों में क्षेत्र के हर वर्ग के बुद्धिजीवी और गणमान्य लोग शामिल होते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान रूट मैप तैयार किया जाता है, जिससे कांवड़ियों का मार्ग बाधित न हो और ट्रैफिक संचालन भी सरल बना रहे।

अर्चना सिंह ने कहा कि कांवड़ यात्रा तो सड़कों पर निकलेगी ही, इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है। लेकिन समस्या ना हो, इसके लिए सड़क को वन वे किया जाता है, जिससे एक तरफ वाहन चलते हैं और दूसरी तरफ कांवड़िए पैदल चलते हैं।

ईद के मौके पर सड़क पर नमाज पढ़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ईद के मौके पर निर्देश दिए जाते हैं कि कोई भी नमाज सड़क पर न पढ़े। यदि जगह की तंगी हो तो आसपास जगह की व्यवस्था कराई जाती है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद (अरशद मदनी गुट) के सदर मौलाना अरशद मदनी ने चंद्रशेखर के बयान पर कहा कि पहले इस तरह की कोई पाबंदी नहीं थी, लेकिन अब इस सरकार ने पाबंदी लगा दी है। मुसलमानों को भी कोशिश करनी चाहिए कि लोगों के लिए परेशानी का सबब न बनें। अगर रास्ते रुक जाते हैं नमाज की वजह से, तो यह भी गलत है। 

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से नहीं उठाना चाहिए। उन्होंने देखा है कि राजनीतिक लोगों ने इसे चुनाव में मुद्दा बनाया है, जो कि सही नहीं है। 

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के उत्तर प्रदेश के सदर मौलाना अशहद रशीदी ने कहा कि हमें किसी के बयान से कोई लेना-देना नहीं है। जमीयत हमेशा से कहती आई है कि यह देश सेक्युलर है। जब भी लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाले लोग सत्ता में आएंगे और धर्म के आधार पर लोगों को बांटने की कोशिश करेंगे, तो देश की शांति खतरे में पड़ेगी।

मौलाना अशहद रशीदी ने कहा कि हमने अपने लोगों को समझाया है कि उनके खिलाफ कोई केस न बने, अदालतों के चक्कर न काटने पड़ें, इसलिए मस्जिदों के अंदर ही नमाज पढ़ें। जहां तक सरकार की बात है, तो सभी जानते हैं कि उनका नजरिया हमारे नजरिए से अलग है। उनसे बात करने या लिखित में देने से कोई लाभ नहीं है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद (अरशद मदनी गुट) के शेरकोट के सदर क़ाज़ी शहज़ाद ने सांसद चंद्रशेखर के बयान से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि यह बात सिर्फ चंद्रशेखर ही नहीं, बल्कि अन्य लोग भी कहते हैं। हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश है, यहां सभी को बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए।

क़ाज़ी शहज़ाद ने कहा कि चंद्रशेखर की बात सही है। एक समुदाय को पांच-दस मिनट की नमाज की भी इजाजत नहीं है और दूसरी तरफ के आयोजन पर सब कुछ बंद कर देना, खाने-पीने तक की पाबंदियां, यह इंसाफ की बात नहीं कही जा सकती।

भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा नगीना के संयोजक महेंद्र धनोरिया ने बीबीसी से कहा कि इस तरह के बयान अभी तक किसी ने दिए हैं। चंद्रशेखर की पार्टी का सिंबल अभी क्षेत्रीय पार्टी की श्रेणी में भी नहीं है। रही बात सौहार्द की तो जब रमज़ान आता है तो हिंदू समाज भी रोज़ा इफ्तार पार्टी कराता है, यह प्यार-मोहब्बत की बात पहले से ही है। 15-20 मिनट नमाज पढ़ी जाए या नहीं, यह मेरे स्तर का सवाल नहीं है और मैं इसका जवाब नहीं दे सकता।

हिंदू युवा वाहिनी के मुरादाबाद मंडल के पूर्व प्रभारी डॉक्टर एनपी सिंह ने कहा कि चंद्रशेखर का बयान न्यायसंगत नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िए चलते रहते हैं, जिससे जाम नहीं होता है। जबकि नमाज सड़क पर होने पर मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिससे आम लोगों को परेशानी होती है। एनपी सिंह ने कहा कि ऐसे बयानों के संदेश समाज में अच्छे नहीं जाते हैं। यदि ईदगाह में स्थान की कमी हो तो प्रशासन को उचित जगह की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि किसी को भी असुविधा न हो।

[इस मुद्दे पर हमारी टिप्पणी यह है कि धर्मिक और सामाजिक समग्रता को बनाए रखने के लिए हमें समझौता और समरस्थता के माध्यमों की तलाश करनी चाहिए। एक समाज में हर धर्मीय समुदाय के अधिकार और स्वतंत्रता को समान रूप से माना जाना चाहिए, और साथ ही साथ, व्यक्तिगत और सामाजिक जरूरतों को भी मधुरता से समझा जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि धार्मिक कार्यों और सार्वजनिक हालातों के बीच संतुलन बना रहे, प्रशासनिक अधिकारियों और सामाजिक नेताओं के बीच सकारात्मक संवाद को बढ़ावा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है -समाचार दर्पण]

(साभार- बीबीसी हिंदी) 

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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