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लखनऊ

राजनीति के बाहुबली ; सियासत में बाहुबलियों की कमजोर होती नब्ज

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सियासी पारा बढ़ा हुआ है। इसकी वजह लोकसभा चुनाव को माना जा रहा है। यूपी की राजनीति जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। हालांकि एक समय हुआ करता था, जब जातीय समीकरणों के साथ साथ बाहुबलियों का भी प्रदेश की राजनीति में बोल बाला हुआ करता है या यूं कहें तो एक दौर में माफिया और बाहुबलियों का सिक्का चलता था। बाहुबली चुनाव जीतने-हरवाने से लेकर सरकार बनाने और गिराने तक की ताकत रखते थे। पिछले कुछ दशकों की बात करें तो 2024 का लोकसभा चुनाव पहला चुनाव होगा, जब कोई बाहुबली चुनावी मैदान में नहीं है। हालांकि बाहुबलियों के परिवार वाले जरूर इस चुनाव में किस्मत अजमा रहे हैं।

दरअसल कोई ऐसा राजनीतिक दल नहीं है जिसने आपराधिक रिकार्ड वाले लोगों को टिकट न दिया हो। जानबूझकर की गई इस गलती को कोई स्वीकारता भी नहीं है। सभी दल यही दावा करते हैं कि दूसरी पार्टियां अपराधियों को टिकट देती हैं। वहीं उनके खुद के दल में जो बाहुबली हैं, उन पर जवाब होता है कि अपराध साबित नहीं हुआ हैं। राजनीतिक मुकदमा था, वगैरह-वगैरह। यहीं नहीं अपराधीकरण का ठीकरा अक्सर मतदाताओं के सिर पर फोड़ जाता रहा है कि वो ही इन्हें जिताते हैं। लेकिन यूपी में सत्ता परिवर्तन होने के बाद से बीते कुछ सालों से सूबे के हालात जरूर बदले हैं। उधर अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी की मौत के बाद माफिया से माननीय बने बाहुबलियों को मौत का डर सताने लगा है।

मुख्तार अंसारी के भाई की किस्मत दांव पर

इस समय बड़े-बड़े माफिया या तो जेल में बंद है या फिर सन्नाटे में पड़े हैं। यहीं कारण है कि इस बार लोकसभा चुनाव में भी इसका साफ असर दिखाई दे रहा है। कुछ चंद सीटों पर बाहुबलियों के परिवार वाले जरूर चुनावी मैदान में ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी चुनाव मैदान में हैं। लेकिन अफजाल कई बार के सांसद और विधायक रह चुके हैं। इस बार समाजवादी पार्टी ने अफजाल अंसारी को गाजीपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। मुख्तार की मौत के बाद अफजाल अपना पहला चुनाव लड़ने जा रहे हैं। लेकिन मुख्तार के जनाजे में जिस तरह से बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे उससे कहीं न कही गाजीपुर सीट पर अफजाल का पलड़ा भारी है। फिर भी अफजाल के पीछे मुख्तार अंसारी का टैग लगने से गाजीपुर सीट का चुनाव रोमांचक बना हुआ है।

जौनपुर में धनंजय की पत्नी चुनावी मैदान में

ऐसे ही जौनपुर सीट पर भी राजनीति गरमाई हुई है। ‘जीतेगा जौनपुर जीतेंगे हम’ धनंजय सिंह के नारे के बाद जौनपुर सीट हाई प्रोफाइल बन चुकी है। कोर्ट से झटका लगने के बाद धनंजय सिंह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, उनकी जगह पत्नी श्रीकला रेड्डी चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है। श्रीकला रेड्डी को बहुजन समाज पार्टी ने टिकट दे दिया है। उधर बुधवार को पूर्व सांसद धनंजय सिंह भी बरेली जेल से रिहा हो चुके हैं। जेल से छूटने के बाद धनंजय ने फर्जी केस में फंसाये जाने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही उन्होंने पत्नी के लिए चुनाव प्रचार में जुटने की बात कहीं है। वहीं जिगरी कभी दोस्त रहे अभय सिंह ने धनंजय सिंह को उत्तर भारत का डॉन बताकर धनंजय सिंह को सुर्खियों में ला दिया है।

बृजभूषण के टिकट पर लटकी तलवार

कुछ बाहुबली टिकट की आस में पलकें बिछाए बैठे हैं। इस लिस्ट में बृजभूषण शरण सिंह का नाम भी शामिल है। बृजभूषण को अभी तक बीजेपी ने टिकट नहीं थमाया है। लेकिन बृजभूषण चुनाव प्रचार में जुट कर अपनी दावेदारी कर रहे हैं। अगर बृजभूषण शरण सिंह को टिकट मिलता है तो वो एकलौते ऐसे उम्मीदवार होंगे जो बाहुबलियों की लिस्ट में शामिल है। जानकारों की माने तो कैसरगंज सीट से बीजेपी बृजभूषण शरण सिंह की जगह उनके परिवार वालों को टिकट दे सकती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि इस बार कोई दागी चुनाव नहीं लड़ रहा है। सभी दलों ने दागियों को टिकट दिया है।

समाजवादी पार्टी ने तीसरे चरण में सबसे ज्यादा दागी कैंडिडेट उतारे हैं। जबकि बीजेपी और बसपा ने भी आपराधिक केस दर्ज वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया है। कांग्रेस कैंडिडेट पर सबसे ज्यादा मामले दर्ज है। तीसरे चरण में 25 फीसदी आपराधिक मामले वाले उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। इसमें से 20 फीसदी उम्मीदवारों पर गंभीर मामलों में केस दर्ज हैं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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