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बहराइच

किसी एक पर लोगों का भरोसा नहीं है टिका ; जानें इस यूनिक लोकसभा के बदलते परिदृश्य

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चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

बहराइच: बहराइच में जन्मे शायर मोहसिन जैदी का एक शेर है-‘जहां पे देखे कदम अपने कुछ भटकते हुए, वहीं ठहर के फरोजा चराग-ए-बादा किया।’ 

मतलब यह कि जब भी भटकाव की स्थिति आई तो ठहरकर आत्म मूल्यांकन किया। यहां की जनता का सियासी मिजाज भी कुछ ऐसा ही है। जनता कभी किसी सियासी लहर में नहीं बही। पार्टी और प्रत्याशी समझ नहीं आए तो सोच-विचार किया और फिर बदल दिया। यूं तो यहां से स्थानीय लोग भी जीते और बाहरी आए तो उनको भी संसद भेजा लेकिन लगातार कोई नहीं जीत सका। 

बहराइच लोकसभा सीट पर यूं तो कांग्रेस छह बार और भाजपा पांच बार जीत चुकी है लेकिन कोई भी पार्टी या प्रत्याशी कभी हैटट्रिक नहीं लगा सका है। इस बार भाजपा की कोशिश होगी कि इस रेकॉर्ड को तोड़कर हैटट्रिक लगाए और कांग्रेस के छह बार जीतने के रेकॉर्ड की भी बराबरी कर सके।

दो चुनाव बाद ही स्वतंत्र पार्टी की जीत

आजादी से पहले ही स्वतंत्रता आंदोलन और राजनीति में सक्रिय रहे रफी अहमद किदवई ने यहां से 1952 में हुए पहले चुनाव में जीत हासिल की। जब देश में अन्न का संकट था तो रफी अहमद किदवई खाद्य मंत्री बने। उस समय माना जा रहा था कि यह विभाग उनके लिए संकट खड़ा करेगा लेकिन उन्होंने अपने निर्णयों से काफी प्रशंसा हासिल की। उन्होंने जमाखोरों के द्वारा खड़े किए गए संकट को खत्म कर दिया। अनाज को नियंत्रण मुक्त कर दिया। उसके बाद 1957 में दूसरा चुनाव हुआ तो कांग्रेस ने सरदार जोगिंदर सिंह को प्रत्याशी बनाया और वह जीत गए।

सरदार जोगिंदर सिंह भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और बहराइच के ही रहने वाले थे। दो चुनाव के बाद ही यहां से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। 

चक्रवर्ती राज गोपालाचारी की बनाई गई स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े कुंवर राम सिंह ने 1962 में चुनाव जीता। उसके बाद 1967 में अगला चुनाव हुआ तो यहां से जनसंघ के प्रत्याशी केके नायर जीत गए। वह पहले प्रशासनिक अधिकारी रहे और फिर जनसंघ में शामिल हो गए। यहां से 1971 में फिर कांग्रेस ने वापसी की और बदलू राम शुक्ला विजयी हुए।

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इमरजेंसी के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के ओम प्रकाश त्यागी यहां से सांसद चुने गए। उसके बाद 1980 में ही कांग्रेस फिर से जीत गई। 

सैय्यद मुजफ्फर हुसैन यहां से सांसद चुने गए। यहां से 1984 में भी कांग्रेस जीती लेकिन सांसद का चेहरा बदल गया। यहां से आरिफ मोहम्मद खान चुनाव जीते। आरिफ मोहम्मद खान 1989 में भी सांसद बने लेकिन इस बार वह जनता दल के टिकट से जीतकर संसद पहुंचे।

1991 में हुई भाजपा की एंट्री

राम मंदिर आंदोलन की लहर में पहली बार यहां से भाजपा को जीत हासिल हुई। रुद्रसेन चौधरी यहां से 1991 में सांसद बने। उसके बाद 1996 में भी भाजपा जीती लेकिन सांसद पद्मसेन चौधरी बने। इसके बाद इस सीट पर बसपा और सपा का दखल शुरू हुआ। 

यहां हुए 1998 के चुनाव में आरिफ मोहम्मद खान बसपा से सांसद बने। एक साल बाद ही 1999 के चुनाव में फिर भाजपा के पद्मसेन चौधरी जीत गए।

2004 में यहां का मुस्लिम चेहरा बन चुके वकार अहमद शाह की पत्नी रुआब सईदा सपा के टिकट पर जीतकर सांसद बनीं। 

यहां 2009 में कांग्रेस के कमल किशोर जीते। उसके बाद 2014 में सावित्री बाई फुले भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतीं। उन्होंने 2019 में भाजपा से बगावत करके कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन कोई खास असर नहीं दिखा। भाजपा के अक्षयवर लाल सांसद बन गए।

बहराइच लोकसभा सीट एक नजर में:

कुल वोटर- 18.26 लाख

पुरुष- 9.82 लाख

महिला- 8.44 लाख

बाढ़ का कहर बड़ा मुद्दा

बहराइच तराई क्षेत्र में आता है और नेपाल से इसकी सीमा लगती है। नदियां और जंगल यहां की पहचान हैं। ऐसे में यहां की अर्थव्यवस्था कृषि और लकड़ी के कारोबार पर निर्भर है। 

यहां चीनी मिलें भी हैं। दालों का खासा उत्पादन होता है। दाल मिलें भी हैं। आज भी यहां का सबसे बड़ा मुद्दा बाढ़ है। 

शारदा, राप्ती और घाघरा यहां बाढ़ का प्रमुख कारण हैं। हर साल कई जिले बाढ़ में डूब जाते हैं। इससे खेती पर विपरीत असर पड़ता है। जान-माल का काफी नुकसान होता है।

अब भी कई इलाके ऐसे हैं, जो सड़क मार्ग से नहीं जुड़ सके हैं और परिवहन के साधन नहीं हैं। रेल और सड़क परिवहन के साधनों की जरूरत है। 

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यहां से 2022 में वाराणसी के लिए इंटरसिटी शुरू की गई थी लेकिन तकनीकी दिक्कतों के कारण अक्सर बंद कर दी जाती है। यहां से पिछले साल गोरखपुर के लिए एक ट्रेन चलाई गई थी, जो अब तक चल रही है।

इसी साल फरवरी में बहराइच रुपईडीहा मार्ग को बंद करके छोटी लाइन को बड़ी लाइन में तब्दील करने का काम शुरू किया गया है। शहर में शुद्ध पेयजल और सीवर लाइन बिछाने का काम चल रहा है।

बहराइच से पिछले चुनावों के परिणाम:

वर्ष     प्रत्याशी        दल         कुल वोट

2019 अक्षयवर लाल भाजपा 5,25,982

शब्बीर वाल्मीकि सपा 3,97,230

सावित्री बाई फुले कांग्रेस 34,454

2014 सावित्री बाई फुले भाजपा 4,32,392

शब्बीर अहमद सपा 3,36,747

डॉ. विजय कुमार बसपा 96,904

कमल किशोर कांग्रेस 24,421

2009 कमल किशोर कांग्रेस 1,60,005

लाल मणि प्रसाद बसपा 1,21,052

शब्बीर अहमद सपा 1,20,791

अक्षयवर लाल भाजपा 71,492

आसान नहीं जातीय समीकरण साधना

बहराइच की करीब एक तिहाई आबादी मुसलमान वोटरों की है। यही वजह कि यहां से छह बार मुस्लिम प्रत्याशी सांसद बन चुके हैं। हिंदुओं की यहां मिली-जुली आबादी है। 

सवर्ण, ओबीसी और एससी-एसटी की आबादी लगभग बराबर है लेकिन ये भी अलग-अलग जातियों में बंटे हैं। सवर्णों में ठाकुर, ब्राह्मण और कायस्थ सबसे ज्यादा हैं। वहीं, ओबीसी में यादव और कुर्मी की संख्या खासी है। 

इसी तरह दलितों और आदिवासियों की कई जातियां हैं। ऐसे में यहां जातीय समीकरण साधना भी आसान नहीं है क्योंकि किसी एक जाति का खासा वर्चस्व नहीं है।

सांसद पुत्र पर दांव

बहराइच से भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद अक्षयवर लाल गोंड के पुत्र आनंद गोंड को प्रत्याशी बनाया है। वहीं सपा ने पुराने रमेश गौतम को टिकट दिया है। 

रमेश गौतम पुराने बसपाई हैं। वह 2007 में बसपा से विधायक भी रह चुके हैं। उसके बाद दो बार वह चुनाव हार चुके हैं। वहीं बसपा ने अभी इस सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। भाजपा को यहां पर अपनी हैटट्रिक का इंतजार है। देखना होगा कि आनंद गौड़ उसकी उम्मीदों पर खरे उतरते हैं या नहीं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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