
मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
एक ही नारा एक ही नाम जय श्री राम जय श्री राम… देश के कोने-कोने से आज यही आवाज आई। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का देशभर में उत्सव मना। जगह-जगह झांकियां, हवन- यज्ञ, भंडारे और न जाने क्या-क्या।
सबकुछ भुला देशवासियों ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह को त्योहार की तरह मनाया। यह और बात है कि इस उत्सव से कांग्रेस सहित विपक्ष के ज्यादातर दलों ने दूरी बनाई। उन्होंने खुद यह विकल्प चुना।
समारोह में शामिल होने का न्योता मिलने के बावजूद वे इसमें नहीं गए। उन्होंने इसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का इवेंट बताकर न जाने का फैसला किया।
यह सही है कि राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी और संघ के संघर्ष को खारिज नहीं किया जा सकता है। लेकिन, भगवान राम न बीजेपी के हैं और न संघ के।
कांग्रेस और दूसरे दल शायद यह भूल गए कि देश ने बीजेपी के लिए नहीं, बल्कि राम के लिए उत्सव मनाया है। कहीं लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या से दूरी बनाकर विपक्ष ने बहुत बड़ा जोखिम तो नहीं ले लिया है?
समारोह में शामिल हों या नहीं, इसे लेकर विपक्षी दलों के नेताओं में कभी एकराय नहीं बन पाई। यहां तक एक ही पार्टी के नेताओं में इसे लेकर मतभेद थे।
कांग्रेस का उदाहरण लेते हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया। इन नेताओं में मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी शामिल रहे।
इसके उलट कर्ण सिंह सहित पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने साफ कहा कि समारोह में शामिल होने से गुरेज नहीं होना चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस चीफ ममता बनर्जी हों या सपा प्रमुख अखिलेश यादव, द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन और वाम दल … विपक्ष के तमाम नेताओं ने अध्योध्या समारोह में जाने से खुद अपने लिए लक्ष्मण रेखा खींच ली।
लोकसभा चुनाव से पहले यह फैसला लेना किसी बड़े जुए से कम नहीं है। यह जनभावनाओं के उलट लिया गया बड़ा निर्णय है।
अनजाने में ही सही, लेकिन इसने 2024 के लिए बीजेपी के चुनावी एजेंडे को हवा दे दी है। यह बीजेपी के हिंदुत्व के नैरेटिव को मजबूती देगा।
आगामी चुनावों में बीजेपी राम मंदिर को बड़ा मुद्दा बनाने वाली है। इसके सामने रोजगार और महंगाई जैसे दूसरे मुद्दे बौने साबित हो सकते हैं। बीजेपी यह साबित करने में जरा भी कसर नहीं छोड़ने वाली कि अध्योध्या समारोह में नहीं शामिल होने वाले दल सिर्फ राम विरोधी ही नहीं, बल्कि हिंदू विरोधी भी हैं।
शायद कांग्रेस और दूसरे दल यहां सेंटिमेंट्स को समझने में पूरी तरह से चूक गए हैं। आज पूरा देश जिस तरह से राममय दिख रहा है, उससे एक बात का तो जरूर पता लगता है। विपक्ष से अनुमान लगाने में गलती हो गई है।
विपक्ष के फैसले से मजबूत होगी बीजेपी
विपक्षी दलों का समारोह से दूरी बनाने का फैसला आगामी चुनावों में बीजेपी की स्थिति को मजबूत करेगा। पहले ही विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A तमाम तरह की खटपट से जूझ रहा है।
चुनाव में अब जब कुछ ही महीने बचे हैं, घटक दलों में सीट शेयिरिंग का फॉर्मूला तक नहीं तय हो पाया है। बैठकों के अलावा चुनाव के लिए दूसरे दलों की किसी तरह की कोई तैयारी नहीं दिख रही है।
आज भी एजेंडे के नाम पर विपक्ष खाली हाथ ही खड़ा है। उसने देश के सामने कोई रोडमैप पेश नहीं किया है कि कोई क्यों उन्हें सत्ता की चाबी सौंपे।