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29 March 2025 2:14 pm

गंगा फिर हो गई मैली… ..?

145 पाठकों ने अब तक पढा

अनिल अनूप

भारत में राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, भले ही जनता के स्वास्थ्य पर इसका कितना भी प्रतिकूल प्रभाव पड़े। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार द्वारा प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में भी यही देखने को मिला। गंगा नदी का जल, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान कर रहे हैं, बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) के उच्च स्तर के कारण असुरक्षित घोषित किया गया है।

गंगा जल की वास्तविकता

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के अनुसार, संगम क्षेत्र में जल का बीओडी स्तर 5.09 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया, जो स्नान के लिए सुरक्षित सीमा से अधिक है। यदि बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक हो जाता है, तो वह जल स्नान के लिए अनुपयुक्त माना जाता है। जनवरी 2025 में शुरू हुए महाकुंभ के दौरान, 13 जनवरी को संगम पर बीओडी स्तर 3.94 मिलीग्राम प्रति लीटर था, जो 15 जनवरी तक घटकर 1 मिलीग्राम प्रति लीटर हुआ। लेकिन 24 जनवरी को यह पुनः 4.08 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया और 19 फरवरी को 5.29 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच गया।

सरकारी प्रयास और सच्चाई

उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा में 10,000 से 11,000 क्यूसेक पानी छोड़कर जल को स्वच्छ बनाने का प्रयास किया, और यह दावा किया कि 2019 के अर्धकुंभ के बाद जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। सरकार के अनुसार, खुले में शौच को रोकने के लिए 1.5 लाख व्यक्तिगत शौचालय और दो मल उपचार संयंत्र बनाए गए हैं। लेकिन हकीकत यह है कि सरकार को पहले से ही जल की गुणवत्ता की जानकारी थी, इसके बावजूद श्रद्धालुओं को गंगा स्नान के लिए प्रेरित किया गया।

नदी प्रदूषण की भयावह स्थिति

स्टेट ऑफ इंडिया एन्वायरनमेंट (एसओई) 2023 रिपोर्ट के अनुसार, देश की 279 प्रदूषित नदियों में गंगा समेत 33 नदियां ऐसी हैं, जहां 10 या उससे अधिक स्थानों पर बीओडी स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक है। गंगा के 49 स्थलों, यमुना के 35 स्थलों, गोदावरी के 31 स्थलों और घग्गर के 27 स्थलों में बीओडी का स्तर अत्यधिक पाया गया। रिपोर्ट के अनुसार, देश के 43% निगरानी स्थलों पर जल स्नान के लिए अनुपयुक्त है।

प्रदूषण की सबसे खराब स्थिति

देश में नदी प्रदूषण के मामले में उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे खराब है। यहां 20 निगरानी केंद्र ऐसे हैं जहां बीओडी 30 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है। पंजाब, गुजरात और तमिलनाडु भी प्रदूषित नदियों की सूची में शामिल हैं। दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी नदी जल की गुणवत्ता चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुकी है।

गंगा सफाई पर खर्च और विफलता

सरकार ने गंगा सफाई पर 13,000 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन यह प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं। क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा किनारे बसे 70% शहर अपना कचरा सीधे नदी में बहा रहे हैं, क्योंकि उचित नगरपालिका अपशिष्ट संयंत्र नहीं हैं। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का 75% सतही जल प्रदूषित है।

राजनीति और वोट बैंक का खेल

राजनीतिक दल सत्ता में आने से पहले नदियों की पवित्रता को बनाए रखने के दावे करते हैं, लेकिन सत्ता मिलते ही ये वादे हवा हो जाते हैं। गंगा, यमुना और अन्य नदियों का जल प्रदूषण लोगों की सेहत के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। खेतों में रासायनिक खादों का बढ़ता उपयोग और जल प्रदूषण हालात को और भयावह बना रहा है।

गंगा नदी में जल प्रदूषण

समाधान की आवश्यकता

यदि सरकारें प्रदूषण नियंत्रण की केंद्रीय एजेंसियों की रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लेंगी, तो आने वाले समय में यह समस्या नियंत्रण से बाहर हो सकती है। हमें हर हाल में नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाना होगा ताकि जल पुनः पीने योग्य हो सके। इसके लिए नदियों में कचरा डालने पर सख्त प्रतिबंध, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की संख्या बढ़ाना और औद्योगिक अपशिष्ट निपटान के लिए कठोर नियम लागू करने की आवश्यकता है। केवल नीतियों की घोषणा से नहीं, बल्कि उनके सख्त क्रियान्वयन से ही हमारी नदियां पुनः स्वच्छ हो सकती हैं।

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