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22 February 2025 3:09 pm

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अदम गोंडवी: जनकवि और सामाजिक चेतना के स्वर जिन्होंने ‘भूख के एहसास’ को ‘शेरोसुखन’ का आह्वान किया

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नौशाद अली की रिपोर्ट

हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए।

अपनी कुर्सी के लिए जज्बात को मत छेड़िए

हममें कोई हूण कोई शक कोई मंगोल है

दफ्न है जो बात अब उस बात को मत छेड़िए

अदम गोंडवी की यह गजल आज के समय में पूरी तरह मौजू है। यही नहीं, अपनी रचनाओं के माध्यम से वे हमारे समय की उन चुनौतियों से दो-चार होते हैं, जो आने वाले समय में मानवता के भविष्य को तय करेंगी।

दुष्यंत कुमार के बाद अदम गोंडवी पहले ऐसे शायर हैं, जिन्होंने जनता से सीधा संवाद स्थापित किया। वे कबीर की परंपरा के कवि हैं, फक्कड़ और अलमस्त। शयरी उनके लिए खेती-किसानी जैसा ही सहज कर्म रहा।

अदम गोंडवी उन जनकवियों और शायरों में अग्रणी हैं, जिन्होंने कभी प्रतिष्ठान की परवाह नहीं की और साहित्य के बड़े केंद्रों से दूर रहकर जनता के दुख-दर्द को स्वर देते रहे। अन्याय और शोषण पर आधारित व्यवस्था पर प्रहार करते रहे। राजनीति के अपराधीकरण को लेकर उन्होंने शेर कहा, उसके सब कायल हो गए।

हिंदी गजल में यह एक नया ही स्वर था। सीधी-सीधी खरी बात, शोषक सत्ताधारियों पर सीधा प्रहार।

अदम गोंडवी हिंदी और अवधी भाषा के सुप्रसिद्ध जनकवि थे, जिन्होंने अपनी कविता के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक विडंबनाओं को उजागर किया। वे किसानों, मजदूरों और शोषित वर्गों की आवाज़ बने और उनकी कविताएँ अन्याय और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक सशक्त हथियार साबित हुईं। अदम गोंडवी का असली नाम रामनाथ सिंह था, और वे उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के निवासी थे। उनकी रचनाएँ आम जनता की पीड़ा और संघर्षों को व्यक्त करने वाली हैं, जिन्हें पढ़कर समाज की सच्चाई से आँखें चुराना मुश्किल हो जाता है।

जीवन परिचय और पारिवारिक पृष्ठभूमि

अदम गोंडवी का जन्म 22 अक्टूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के आटा गाँव में हुआ था। एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेने के कारण उन्होंने गरीबी और समाज की असमानताओं को नज़दीक से देखा और समझा। उनका असली नाम रामनाथ सिंह था।

उनके परिवार में माता-पिता और भाई-बहन थे, लेकिन उनका जीवन संघर्षों से भरा था। उनके पिता एक किसान थे और परिवार का गुजारा खेती पर निर्भर था। वे बचपन से ही सामाजिक अन्याय को महसूस करते थे, जिसने आगे चलकर उनके साहित्यिक विचारों को आकार दिया। अदम गोंडवी ने औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं की, लेकिन अपनी कविताओं और विचारों के माध्यम से वे एक सशक्त बुद्धिजीवी के रूप में उभरे। उनका अधिकांश जीवन गाँव में ही बीता और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से ग्रामीण भारत की वास्तविकता को दुनिया के सामने रखा।

महज प्रायमरी तक शिक्षा प्राप्त और जीवन भर खेती-किसानी में लगे अदम गोंडवी ने जो भी लिखा तो वही जनता की जबान पर चढ़ गया। प्रसिद्ध आलोचक मैनेजर पांडेय ने उनके बारे में लिखा है कि कविता की दुनिया में अदम एक अचरज की तरह हैं। अचरज की तरह इसलिए कि हिंदी कविता में ऐसा बेलौस स्वर तब सुनाई पड़ा था, जब कविता मजदूरों-किसानों के दुख-दर्द और उनके संघर्षों से अलग-थलग पड़ती जा रही थी। नागार्जुन-त्रिलोचन-केदार जैसे जनकवियों ने जो अलख जगाई थी, उस परंपरा को आगे बढ़ाने का काम अदम गोंडवी और गोरख पांडेय जैसे कवियों ने ही किया।

साहित्यिक यात्रा

अदम गोंडवी का साहित्यिक जीवन संघर्षों से भरा रहा। उनकी कविताएँ मंचीय कविता की परंपरा में बेजोड़ थीं। वे मंचीय कवि होते हुए भी बाजारवाद और उपभोक्तावादी प्रवृत्तियों से दूर रहे। उन्होंने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, जातिवाद, सामंतवाद और पूंजीवाद की कठोर आलोचना की। उनकी कविताएँ सरल, सहज और प्रभावशाली होती थीं, जो सीधे जनता के दिलों में उतरती थीं।

उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं:

धरती की सतह पर (कविता संग्रह)

समय से मुठभेड़ (कविता संग्रह)

इन संग्रहों में उनकी कविताएँ आम आदमी की पीड़ा को व्यक्त करने के साथ-साथ शोषकों के खिलाफ तीखा प्रहार भी करती हैं।

कविता और समाज

अदम गोंडवी की कविताएँ समाज के सबसे निचले तबके की आवाज़ बनकर उभरीं। उन्होंने कभी भी अपनी रचनाओं में कृत्रिमता या आडंबर नहीं अपनाया। उनकी कविताएँ सीधे दिल और दिमाग़ पर असर करती हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से कुछ इस प्रकार हैं:

1. ‘जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे’

यह कविता सत्ता के अत्याचारों और आम जनता की दुर्दशा को उजागर करती है। उन्होंने वर्तमान व्यवस्था की क्रूरता को ब्रिटिश हुकूमत से भी अधिक घातक बताया।

2. ‘काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में’

इस कविता के माध्यम से उन्होंने भारतीय राजनीति में फैले भ्रष्टाचार और नेताओं की विलासिता का तीखा चित्रण किया। उन्होंने दिखाया कि कैसे राजनेता आम जनता के पैसे से ऐश कर रहे हैं, जबकि गरीब जनता भूख से मर रही है।

3. ‘तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है’

इस कविता में उन्होंने नौकरशाही और सरकारी तंत्र की असंवेदनशीलता को उजागर किया, जहाँ फाइलों में सब कुछ ठीक-ठाक दिखाया जाता है, लेकिन हकीकत में गरीब किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं।

राजनीतिक चेतना और प्रभाव

अदम गोंडवी की कविताएँ सिर्फ साहित्यिक नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतना से भी भरपूर थीं। उन्होंने उन विषयों पर लिखा, जिनसे तथाकथित मुख्यधारा के कवि और लेखक बचते थे। उन्होंने न सिर्फ सामाजिक असमानता पर प्रहार किया, बल्कि भारतीय राजनीति के खोखलेपन को भी बेनकाब किया। उनकी कविताएँ भारतीय लोकतंत्र के पाखंड और गरीबों के शोषण को दर्शाती हैं।

अदम के लिए कविता एक ऐसे अनिवार्य कर्म की तरह थी जो मनुष्य होने की अर्थवत्ता का अहसास करा सके। खास बात यह है कि जनता के शोषण के तंत्र को उन्होंने मार्क्सवाद की किताबों के माध्यम से नहीं समझा था, बल्कि अपने आसपास महसूस किया था। छोटी जातियों पर सामंती अत्याचारों को उन्होंने स्वयं देखा था। जो आज भी रोज ही गांवों-कस्बों में वंचित लोग झेल रहे हैं। तभी उनकी एक प्रसिद्ध नज्म ने साहित्य की दुनिया में हलचल पैदा कर दी। आज भी निम्न जातियों के लोगों को रोज ही अपमान का सामना करना पड़ रहा है। स्त्रियों को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा है, भूख और बेबसी उनकी नियति बन चुकी है। ऐसे में अदम गोंडवी ने लिखा-

भूख के अहसास को शेरोसुखन तक ले चलो

या अदब को मुफलिसों की अंजुमन तक ले चलो।

अदम ने वक्त की चुनौती को साफ-साफ पहचाना और कहा-

गजल को ले चलो अब गांव के दिलकश नजारों में

मुसलसल फन का दम घुटता है इन अदबी इदारों में।

अदीबों, ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ

मुल्लमे के सिवा क्या है फलक के चांद-तारों में।

व्यक्तित्व और विचारधारा

अदम गोंडवी एक सादगीपूर्ण जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। वे न किसी पुरस्कार की लालसा रखते थे और न ही किसी मंचीय लोकप्रियता के पीछे भागते थे। उनके लिए कविता, समाज और जनता की सेवा का माध्यम थी। वे किसी भी राजनीतिक विचारधारा से बंधे नहीं थे, बल्कि उन्होंने हर उस सत्ता को चुनौती दी, जो आम आदमी का शोषण कर रही थी।

अदम गोंडवी को जो नजर मिली थी और उनका जो वर्ग-बोध था, वह किताबी नहीं, वास्तविक जीवन की स्थितियों से उत्पन्न था। उन्होंने अभाव, वंचना, भूख की पीड़ा और गरीबों पर धनिकों द्वारा किए जाने वाले जुल्म को अपनी आंखों से देखा और महसूस किया था। उनका सच कबीर की तरह आंखिन देखी था, कागद की लेखी नहीं। आज की राजनीतिक व्यवस्था के छल-छद्म को समझना उनके लिए कठिन नहीं था। सत्ता के लिए होने वाली साजिशों और वंचित वर्ग के संघर्षों को भटकाने वाली ताकतों की दुरभिसंधियों का उन्होंने खुलकर पर्दाफाश किया।

ये अमीरों से हमारी फैसलाकुन जंग थी

फिर कहां से बीच में मस्जिद व मंदर आ गए

आज की राजनीतिक परिस्थितियों में ये पंक्तियां पूरी तरह सच का बयान है। यह सच अदम गोंडवी के समग्र लेखन में बिखरा हुआ है, जो जनता को आगाह करता है और शोषक सत्ताधारियों को खुली चुनौती देता है। अदम की राजनीतिक चेतना अत्यंत ही प्रखर है। सत्ता में बैठे लोगों का चरित्र वे खोलकर सामने रखते हैं। उन्होंने लिखा-

जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे

कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे।

ये वंदेमातरम् का गीत गाते हैं सुबह उठकर

मगर बाजार में चीजों का दुगना दाम कर देंगे

उनका मानना था कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाना भी होना चाहिए। वे मानते थे कि यदि कविता समाज की पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकती, तो वह कविता नहीं, बल्कि मात्र शब्दों का खेल है।

अदम गोंडवी सही मायनों में इंकलाब के कवि हैं। पाश की तरह ही इनके लिए कोई ‘बीच का रास्ता’ नहीं है। तभी तो उन्होंने कहा-

जनता के पास एक ही चारा है बगावत

ये बात कह रहा हूं मैं होशो हवास में।

अंतिम समय और निधन

अदम गोंडवी का जीवन संघर्षों से भरा रहा, और उनकी मृत्यु भी आर्थिक तंगी के बीच हुई। वे लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती थे, जहाँ 18 दिसंबर 2011 को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी कविताएँ और विचार आज भी समाज में प्रासंगिक हैं।

अदम गोंडवी की प्रासंगिकता

आज के समय में, जब समाज में असमानता, भ्रष्टाचार और राजनीतिक पाखंड चरम पर है, अदम गोंडवी की कविताएँ और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती हैं। वे उन गिने-चुने कवियों में से थे, जिन्होंने सत्ता की चकाचौंध से दूर रहकर वास्तविकता को जिया और अपनी कविताओं में उतारा। उनकी रचनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या सच में हमारा लोकतंत्र आम आदमी के लिए काम कर रहा है?

अदम गोंडवी एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता और शोषण के खिलाफ जंग लड़ी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से न केवल आम जनता को जागरूक किया, बल्कि सत्ताधारी वर्ग के पाखंड को भी उजागर किया। वे सचमुच जनकवि थे, जिनकी रचनाएँ आज भी गरीब, किसान और मजदूरों की आवाज़ बनी हुई हैं। अदम गोंडवी का साहित्य न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।

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