चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
अदम गोंडवी का स्थान उन महत्वपूर्ण कवियों में हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हर सच को कहने की हिम्मत दिखाई है। वे एक ऐसे कवि हैं, जिन्होंने अपने समकालीन परिवेश में जो कुछ भी घटते हुए देखा उस पर करारा प्रहार किया।
उनकी गज़लें सौंदर्य और कल्पनाओं की बात नहीं करतीं, बल्कि मेहनतकश की भुखमरी और जलालत में ज़िंदगी बसरने करने की कहानी कहती हैं। उनका काव्य विचार प्रधान है, जो दुख और पीड़ा की सघन अनुभूतियों से उपजा है। एक तरह से देखा जाए तो अदम शायरी की उस परंपरा को आगे बढ़ाते हैं, जिसकी शुरुआत दुष्यंत कुमार ने की थी।
छायावादी कवि स्त्री तो पूज्यभाव से देखते हैं। वे स्त्री को देवी/मां/सहचरी का स्वरूप प्रदान करते हैं। जिस तरह कवि निराला ने ‘वह तोड़ती पत्थर’ में श्रम करती स्त्री का चित्रण किया, उसी तरह अदम गोंडवी ने उनसे दो कदम आगे बढ़कर सामाजिक रीतियों व परंपराओं के बीच पिसती हुई विधवा स्त्री के जीवन और उसकी समस्याओं को अपनी गज़लों के माध्यम से प्रकाश में लाने का प्रयास किया। उन्होंने स्त्रियों की दशा पर काफी कुछ लिखा।
‘चमारों की गली’ कविता में उन्होंने दलित-स्त्री के जीवन को भी बयां किया है, इसके अलावा उन्होंने कई कविताओं के माध्यम से स्त्रियों की दीन-हीन दशा बनाने के जिम्मेदार देश व समाज की व्यवस्था पर भी व्यंग्य किया है।
गौरतलब है कि अदम की रचना ‘चमारों की गली’ उनके ही गांव में घटी एक सच्ची घटना पर आधारित है, जिसे अमृत-प्रभात के रविवारीय ने प्रकाशित किया था।
अदम गोंडवी का चिंतन कहीं से भी सतही नहीं जान पड़ता, उसमें देश में व्याप्त अराजकता और अनैतिकता के खिलाफ बगावती तेवर है। उन्होंने संस्कृति के नाम पर घिनौना नाच करने वाले बाबाओं पर, संसद में बैठकर नदियों का पानी, पहाड़ों की हरियाली खा-पी जाने वाले नेताओं एवं विदेशी रंग में रंगे काले अंग्रेज़ों और धन्नासेठों पर साहसिक तरीके से लिखा। आज के समय में उनकी प्रासंगिकता इस मायने में और भी बढ़ जाती है, क्योंकि सामाजिक कुरीतियों ने अब पूरी तरह से पैर पसार लिया है, जो देश और समाज के लिए बेहद खतरनाक है। ऐसे में अदम की गज़लें और कविताएं आज भी जन-जागृति का काम करती हैं।
अदम गोंडवी का मूल्यांकन यदि कुछ शब्दों में किया जाए, तो यह बात समझ आती है कि वे उस सभ्याता और संस्कृति पर सवाल उठाते हैं, जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के ऊपर शासन करता है या फिर किसी कमज़ोर का शोषण करता है। वे सदियों से चली आ रही उस घृणित प्रथा का विरोध करते हैं, जिसमें जाति या वर्ण के आधार पर किसी भी मनुष्य को अछूत की श्रेणी में रख दिया जाता है। उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता पर खुलकर लिखा। वे अपनी तबीयत के शायर थे, उन्होंने जितनी बेबाकी से समाज के ठेकेदारों को ललकारा ऐसा बहुत कम शायर कर पाए। आज के समय में साहित्य ने जिस धारा की ओर रुख किया है, अदम गोंडवी उसमें पूरी तरह फिट बैठते हैं।
महेज़ तनख़्वाह से निपटेंगे क्या नखरे लुगाइ के,
हज़ारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के,
ये सूखे की निशानी उनके ड्राइंगरूम में देखो,
जो टीवी का नया सेट है रखा ऊपर तिपाई के।
मिसेज़ सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं,
पिछली बाढ़ के तोहफ़े हैं, ये कंगन कलाई के।
ये ‘मैकाले’ के बेटे ख़ुद को जाने क्या समझते हैं,
कि इनके सामने हम लोग ‘थारू’ हैं तराई के।
भारत मां की एक तस्वीर मैंने यूं बनाई है,
बंधी है एक बेबस गाय खूंटे में कसाई के।
यह कविता गोंडा के तत्कालीन जिलाधिकारी पर लिखी गई थी।
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहां की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूं मैं होशो-हवास में।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."