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18 January 2025 10:32 am

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उस्ताद जाकिर हुसैन : अनहद नाद का विराम

138 पाठकों ने अब तक पढा

— अनिल अनूप

संगीत की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं, जिनकी मौजूदगी समय के हर पैमाने को तोड़कर एक अमर धरोहर बन जाती है। उस्ताद जाकिर हुसैन का नाम इसी शिखर पर विराजमान था। उनका तबला वादन मानो धरती और आकाश के बीच संवाद की भाषा हो। उनके निधन के साथ ही न केवल एक युग का अंत हुआ है, बल्कि सुरों और तालों का एक पूरा संसार जैसे मौन हो गया है।

उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। वे तबला सम्राट उस्ताद अल्ला रक्खा के सुपुत्र थे। कला का संस्कार उन्हें विरासत में मिला, लेकिन उनकी साधना और तपस्या ने इस परंपरा को नए आयाम दिए। जब वे तबले पर अपनी उंगलियां फेरते, तो मानो समय ठहर जाता और श्रोता किसी अदृश्य लोक में खो जाते।

तबले का जादूगर

जाकिर हुसैन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान दिलाई। उन्होंने पश्चिमी और भारतीय संगीत के बीच एक सेतु का निर्माण किया। उनकी जोड़ी जॉन मैकलॉफलिन के साथ ‘शक्ति’ बैंड में हो या फिर मिकी हार्ट के साथ ‘प्लेनेट ड्रम’ में, उनका तबला हर संगीत शैली में अपना जादू बिखेरता रहा। उनकी प्रस्तुतियों ने यह सिद्ध कर दिया कि संगीत किसी एक देश या भाषा का नहीं होता — वह समूची मानवता का है।

जाकिर हुसैन का तबला वादन केवल एक कला नहीं, एक संवाद था। उनकी थाप में जीवन का उत्सव, करुणा, प्रेम और आवेग — सब कुछ समाया रहता था। मंच पर उनकी ऊर्जा, उनकी मुस्कान और तबले पर नाचती उंगलियां किसी कविता की भांति श्रोताओं के दिलों पर उतरती थीं।

परंपरा और प्रयोग का संगम

जाकिर हुसैन ने शास्त्रीयता की परंपरा को निभाते हुए नित नए प्रयोग किए। उन्होंने भारतीय संगीत के साथ-साथ जैज़, रॉक और विश्व संगीत को भी अपनाया। उनकी धुनें यह साबित करती थीं कि संगीत में किसी प्रकार की दीवारें नहीं होतीं। संगीत सिर्फ प्रवाह है, और जाकिर हुसैन उस प्रवाह के महान नाविक थे।

संगीत का आध्यात्मिक पक्ष

जाकिर हुसैन के लिए तबला एक साधना था। उनका मानना था कि सुर और ताल के माध्यम से ईश्वर से साक्षात्कार होता है। उनका जीवन और उनका संगीत इस आध्यात्मिक अनुभव की झलक थे। उन्होंने अपने पिता उस्ताद अल्ला रक्खा के दिखाए मार्ग को और आगे बढ़ाया, और अपने पीछे एक ऐसा संगीत-संसार छोड़ गए, जो अनगिनत पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।

अंतिम अलाप

उस्ताद जाकिर हुसैन का जाना भारतीय संगीत के एक महान अध्याय का अवसान है। लेकिन उनका संगीत, उनकी थाप, उनकी मुस्कान और उनके प्रयोग हमेशा हमारे बीच जिंदा रहेंगे। उनका तबला अब भी बजता रहेगा, हर उस दिल में, जो सुर और ताल को महसूस करता है।

संगीतमंच पर उनकी अनुपस्थिति खलती रहेगी, लेकिन शायद इसी को जीवन कहते हैं — जहां कलाकार विदा होता है, पर उसकी कला अमर रहती है।

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