कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा से समाजवादी पार्टी (सपा) की मजबूती का आधार रहा है। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा ने मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे राज्य की सत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखी। हालांकि, हाल के वर्षों में यह समीकरण कमजोर होता दिखाई दे रहा है। मुस्लिम वोट बैंक का सपा से धीरे-धीरे खिसकना न केवल पार्टी के लिए चिंता का विषय है, बल्कि आगामी चुनावों में इसके प्रदर्शन पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ सकता है।
मुस्लिम वोट बैंक की सपा से दूरी
पिछले विधानसभा चुनावों में सपा का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। कई इलाकों में मुस्लिम समुदाय ने सपा की बजाय एआईएमआईएम, आजाद समाज पार्टी जैसे विकल्पों की ओर रुख किया। इसके अलावा, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस जैसे दलों ने भी मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित करने के प्रयास किए। यह स्थिति सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए चुनौतीपूर्ण हो गई है।
अखिलेश यादव की रणनीति
मुस्लिम वोट बैंक को वापस सपा की ओर खींचने के लिए अखिलेश यादव ने ‘मुलायम मॉडल’ को अपनाने का संकेत दिया है। इस मॉडल का आधार समुदाय के नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ संवाद स्थापित करना और राजनीतिक मजबूती बढ़ाना है। अखिलेश ने हाल ही में मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली नेताओं से मुलाकातें शुरू की हैं।
अलीगढ़ में आयोजित कार्यक्रमों और मुलाकातों से यह साफ होता है कि अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की शैली को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने पूर्व विधायक हाजी जमीरउल्लाह और जफर आलम के साथ बैठक की। इसके अलावा, मुजाहिद किदवई के परिवारिक समारोह में शामिल होकर समाज में एक सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया।
मुस्लिम वोट बैंक की निर्णायक भूमिका
उत्तर प्रदेश की आबादी में करीब 19-20% हिस्सेदारी रखने वाला मुस्लिम समुदाय 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाता है। सपा के लिए यह वोट बैंक हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति ने मुस्लिम वोट बैंक को लेकर विपक्षी दलों को नई रणनीति अपनाने पर मजबूर कर दिया है।
सपा की चुनौतियां और अपेक्षाएं
सपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिम समुदाय के विश्वास को दोबारा जीतने की है। मुसलमानों की सपा से अपेक्षाएं रोजगार, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दों पर केंद्रित रही हैं। हालांकि, सपा सरकारों पर केवल मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में देखने का आरोप भी लगा है। अखिलेश यादव के लिए यह जरूरी है कि वे इस धारणा को बदलें और मुस्लिम समुदाय को यह विश्वास दिलाएं कि सपा उनके हितों की रक्षा के लिए हर समय प्रतिबद्ध है।
आने वाले चुनावों पर असर
अगर सपा अपनी रणनीति में सफल होती है और मुस्लिम वोट बैंक को दोबारा अपने पक्ष में कर पाती है, तो यह भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के लिए बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अखिलेश यादव किस हद तक मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने में सफल हो पाते हैं।
अभी तक के संकेत बताते हैं कि अखिलेश यादव सपा के परंपरागत वोट बैंक को मजबूत करने के लिए पूरी तरह सक्रिय हैं। यह पहल आगामी चुनावों में सपा के प्रदर्शन को नई दिशा दे सकती है।