सुशील कुमार मिश्रा की रिपोर्ट
बांदा, उत्तर प्रदेश: बुंदेलखंड के बांदा जिले में रबी की फसल की बुआई का समय चल रहा है, लेकिन किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही हैं। जिले में डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) खाद की भारी किल्लत के चलते किसान बुरी तरह से परेशान हैं। हालात ऐसे बन गए हैं कि किसान आंदोलन का रास्ता अपनाने पर मजबूर हो रहे हैं।
कृषि पर निर्भरता और डीएपी की जरूरत
बांदा जिले की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा कृषि पर आधारित है। यहां के किसान मुख्य रूप से गेंहू, चना, सरसों और अन्य रबी फसलों की खेती करते हैं। इन फसलों की बुआई के लिए डीएपी खाद का इस्तेमाल बेहद जरूरी है क्योंकि यह फसलों की जड़ों को मजबूत बनाने और उनकी उपज बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
लेकिन इस बार, किसानों को बाजार में डीएपी खाद मिलना तो दूर, सरकारी सेंटरों पर भी खाली हाथ लौटना पड़ रहा है।
लंबी कतारें, निराश किसान
बांदा के कई कृषि केंद्रों पर किसानों की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं, लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी उन्हें डीएपी खाद नहीं मिल पा रही है। तिंदवारी के किसान रामशरण बताते हैं, “हर रोज सुबह 4 बजे लाइन में लग जाते हैं, लेकिन शाम होते-होते हमें खाली हाथ लौटना पड़ता है। सरकारी केंद्रों पर सप्लाई कम है, और खुले बाजार में कीमतें आसमान छू रही हैं।”
इसी तरह, नरैनी क्षेत्र के एक अन्य किसान रमेश यादव कहते हैं, “हमारी फसल की बुआई का समय बीतता जा रहा है, लेकिन खाद नहीं मिल रहा। अगर यही हाल रहा तो इस बार उपज पर भारी असर पड़ेगा।”
मजबूरन आंदोलन की राह
किसानों की इस समस्या के समाधान के लिए सरकार और प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम न उठाए जाने के कारण किसानों में भारी नाराजगी है। अखिल भारतीय किसान सभा के स्थानीय नेता सुनील वर्मा कहते हैं, “डीएपी की किल्लत किसानों की मेहनत पर पानी फेर रही है। अगर जल्द ही कोई समाधान नहीं निकला तो हम सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे। प्रशासन से कई बार शिकायत की है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।”
प्रशासन का क्या है कहना?
बांदा जिले के कृषि अधिकारी राजीव सिंह का कहना है कि डीएपी खाद की किल्लत का मुद्दा जिला स्तर पर गंभीरता से लिया जा रहा है। उन्होंने बताया, “खाद की आपूर्ति बढ़ाने के लिए राज्य सरकार से संपर्क किया जा रहा है। अगले कुछ दिनों में स्थिति में सुधार की उम्मीद है।”
लेकिन, किसानों का आरोप है कि प्रशासन के वादे केवल कागजों तक सीमित हैं। कई किसान संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो वे बड़े पैमाने पर प्रदर्शन करेंगे।
खाद संकट से प्रभावित फसलें और अर्थव्यवस्था
बांदा जैसे कृषि प्रधान जिले में डीएपी की किल्लत से न केवल किसान, बल्कि पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। खेती-किसानी पर आधारित इस इलाके में फसलें खराब होने का मतलब है कि हजारों परिवारों की जीविका पर संकट मंडराने लगेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्द ही डीएपी खाद की समस्या का समाधान नहीं हुआ, तो इससे फसलों की उत्पादकता में गिरावट आ सकती है। इसका सीधा असर खाद्यान्न उत्पादन और किसानों की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा।
बांदा जिले में डीएपी खाद की किल्लत ने किसानों को चिंता में डाल दिया है। लंबी कतारों, बढ़ती कीमतों और खाद की अनुपलब्धता ने किसानों को आंदोलन की राह पर ले जाने के लिए मजबूर कर दिया है। हालांकि, प्रशासन की ओर से समस्या के समाधान के वादे किए जा रहे हैं, लेकिन जमीन पर हालात जस के तस हैं।
अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार और प्रशासन इस संकट का समाधान कब तक निकालते हैं, ताकि किसानों की बुआई प्रभावित न हो और उनकी मेहनत रंग ला सके।