- दुर्गेश्वर राय
टूंडला की ओर सरसराती हुई जा रही रेलगाड़ी फर्रुखाबाद में रुकी और उसके फर्स्ट क्लास डिब्बे में एक सन्यासी चढ़ कर बैठ गया। बिल्कुल शांतचित्त, चेहरे पर गजब का तेज, होठों पर हल्की मुस्कान, हाथ में चिमटा और कमंडल, कमर से नीचे धोती और ऊपर बिल्कुल नंगा। अंग्रेज टीटी की नजर पड़ी तो वह अधनंगे फकीर को देख आगबबूला हो गया। टिकट मांगा, पर टिकट कहां था। बहुत भला बुरा कहते हुए और गाली देते हुए टीटी ने अधनंगे फकीर को अगले ही स्टेशन ‘नीबकरौरी’ पर गाड़ी रोककर उतार दिया। फकीर ने अपना चिमटा गाड़ा और आसन लगाकर स्टेशन पर ही बैठ गया। होठों पर मुस्कान की रेखा और गहरी हो गई थी। गाड़ी को सिग्नल मिला, गाड़ी चलने को उद्यत हुई, पर ये क्या, गाड़ी के सभी पहिए तो अपने ही स्थान पर घूमते रहे। कुछ स्थानीय लोगों ने बाबा को गाड़ी में बैठाने की सलाह दी तो अंग्रेज अधिकारियों के चहरे नीले पीले होने लगे। लेकिन लाख प्रयत्न के बाद भी जब गाड़ी नहीं चली तो टीटी में बाबा से गाड़ी में बैठाने का निवेदन किया।
ट्रेन में साधु संन्यासियों के सम्मान करने की शर्त पर बाबा ट्रेन में सवार हुए। उनके बैठते ही गाड़ी चल पड़ी। और साथ ही चल पड़ी बाबा लछमनदास के बाबा नीम करौली बनने की यात्रा। आज इस स्टेशन का नाम ‘बाबा लछमनदास पुरी’ हो गया है और यहां से गुजरने वाली लगभग सभी ट्रेने इस स्टेशन पर रूकती है। बाबा 1934 तक नीब करौली में रहे।
कहां स्थित है बाबा नीम करौली का आश्रम?
बाबा नीम करौली का आश्रम देवभूमि उत्तराखंड में नैनीताल भुवाली मार्ग पर भुवाली से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थल कैंची धाम के नाम से विख्यात है। इस आश्रम के स्थापना की योजना बाबा ने 1961 में अपने शिष्य पूर्णानंद के साथ मिलकर बनाई थी। अंततः 1964 में कैंची धाम आश्रम की स्थापना हो गई। बाबा का यह आश्रम आज विश्व विख्यात हो गया है।
कौन हैं बाबा नीम करौली?
बाबा का जन्म 1980 में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में हुआ था। उनका नाम लक्ष्मण शर्मा था। छोटी आयु में ही उनका विवाह हो गया, किंतु गृहस्थ जीवन में उनका मन बिल्कुल नहीं लगता था। घर के लोगों के दबाव में कुछ दिनों तक गृहस्थ जीवन का निर्वहन किया। पर उनका जन्म तो किसी और ही निमित्तभुआ था। भगवान हनुमान की उनके ऊपर अत्यधिक कृपा थी।
1958 में बाबा ने अपने घर को त्याग दिया और पूरे उत्तर भारत में साधुओं की भांति विचरण करने लगे थे। उस दौरान लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा सहित वे कई नामों से जाने जाते थे। गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या की तो वहां उन्हें तलईया बाबा के नाम से पुकारते लगे थे।
दो पुत्र और एक बेटी
बाबा नीम करौली महाराज के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। ज्येष्ठ पुत्र अनेक सिंह अपने परिवार के साथ भोपाल में रहते हैं, जबकि कनिष्ठ पुत्र धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर के पद पर रहे थे। हाल ही में उनका निधन हो गया है।
अभी चर्चा में है बाबा नीम करौली आश्रम
15 जून 1964 को इस आश्रम की स्थापना हुई थी। 2024 में नीम करौली बाबा के कैंची धाम आश्रम का 60 वां स्थापना दिवस मनाया जाएगा। अभी से आयोजन की तैयारियां होने लगी हैं। 15 जून को लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने के अनुमान के मद्देनजर प्रशासन ने इंतजाम करना शुरू कर दिया है। यातायात के मार्ग बदले गए हैं। अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती की गई है। श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा न हो इसके पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं।
विराट कोहली और बाबा
कोलकाता में 23 नवंबर 1999 को बांग्लादेश के खिलाफ शतक लगाने के बाद विराट का बल्ला मानो खामोश हो गया था। उनके फैन्स निराश होने लगे थे। उनकी असफलत पर तंज कसे जाने लगे, मीम्स और कार्टून बनने लगे थे। विराट ने अपनी पत्नी अनुष्का शर्मा के साथ बाबा के आश्रम में दर्शन किया। दर्शन के पश्चात विराट के बल्ले ने तीन वर्ष तीन माह और सत्रह दिन की चुप्पी तोड़ते हुए ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शतक जड़ा। फिर सिलसिला चल पड़ा। अनुष्का शर्मा ने अफगानिस्तान के खिलाफ शतक के बाद नीम करौली दर्शन की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए विराट की वापसी का श्रेय बाबा को दिया।
जॉब्स, जुकरबर्ग और जूलिया को भी बाबा ने दिखाई राह
कई विदेशी हस्तियों है बाबा की मुरीद रह चुकी हैं। वर्ष 1974 में एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स अपने दोस्त के साथ बाबा के दर्शन करने के लिए पहुंचे थे। कहा जाता है कि बाबा ने उन्हें प्रसाद में कटा हुआ सेब दिया था। वही कटा हुआ सेब आज एप्पल कंपनी के लोगो के रूप में स्थापित है। कहा जाता है कि फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने जब बाबा के दर्शन किए उसके बाद फेसबुक अपने समकालीन सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को पीछे छोड़कर लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गया। सुप्रसिद्ध हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया राबर्ट भी बाबा नीम करौली की मुरीद रहीं हैं।
कम्बल और बाबा
बाबा नीम करौली हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे। कैंची धाम आश्रम में आज भी एक तखत पर कंबल बिछाया गया है। कहा जाता है कि बाबा आज भी अपने पुराने आसन पर विराजमान रहते हैं और अपने भक्तों के कल्याण हेतु निरंतर आशीष प्रदान करते रहते हैं।
आज भी मंदिर में कंबल चढ़ाने की प्रथा है। भक्त बाबा को कंबल चढ़ाते हैं और वह कंबल वापस भक्तों को प्रसादस्वरूप प्रदान कर दिया जाता है। कहा जाता है कि यदि किसी बीमार को बाबा का प्रसाद यह कंबल ओढ़ा दिया जाए तो उसके सभी रोग ठीक हो जाते हैं। आप मंदिर परिसर के बाहर स्थित दुकानों से विभिन्न रेंज के कंबल ₹300 से लेकर ₹700 में खरीद सकते हैं। यहां पर बाबा की अष्टधातु की विभिन्न साइज की मूर्तियां भी उपलब्ध है।
बाबा के चमत्कार के किस्से
कैंची धाम में भंडारे के दौरान एक बार घी की कमी हो गई। रसोइयों ने यह बात बाबा को बताई। बाबा ने कहा कि भोजन में घी के जगह शिप्रा नदी का पानी डालिए। आश्चर्य जनक रूप से नदी का पानी खाने के पात्रों में पड़ते ही घी में बदल जाता था। बाबा के चमत्कार के ऐसे हजारों किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं।
बाबा के इन चमत्कारी लीलाओं को पुस्तक MIRACLE OF LOVE और ‘अलौकिक यथार्थ बाबा नीम करौरी जी महाराज’ में विस्तार से वर्णन किया गया है। इन्हीं लीलाओं को संछेप में अर्जुन दास आहूजा द्वारा संपादित पुस्तक ‘प्रेमावतार बाबा नीम करोली महाराज’ में पढ़ा जा सकता है।
कैंची धाम क्यों नाम पडा
कैंची धाम की ओर जा रही सड़क कैंची की तरह दो तीखे मोड़ जैसी दिखाई देती है। इस वजह से धाम का नाम कैंची धाम रखा गया। नीम करौली बाबा हनुमान को काफी ज्यादा मानते थे। इसी वजह से उन्होंने अपने जीवन में हनुमान जी के 108 मंदिरों को बनवाया। बाबा नीम करौली के बारे में कहते हैं कि उन्होंने हनुमान जी भक्ति कर कई सिद्धियां हासिल की थी। वे किसी को भी पैर नहीं छूने देते थे।
कैसे पहुंचे बाबा नीम करौली के आश्रम कैंची धाम
कैंची धाम जाने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। उत्तराखंड के इस स्टेशन के लिए देश के प्रमुख शहरों से ट्रेनों का संचालन होता है। यहां से सड़क मार्ग से कैंची धाम की दूरी 37 किमी है। काठगोदाम से बस या प्राइवेट टैक्सी के माध्यम से दो से तीन घंटे की यात्रा पूर्ण कर कैंची धाम पहुंचा जा सकता है। नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर है जो कैंची धाम से 71 किलोमीटर दूर स्थित है। नैनीताल घूमने जाने वाले व्यक्तियों को कैंची धाम पहुंचकर बाबा का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."