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अपराध

20 दरिंदों का एक गिरोह, बिना हथियार के 400 लोगों को मारने तरीका और वजह आपको डरा देगा

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चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

लखनऊ: साल 2005 का पहला दिन था। सुबह के करीब आठ बजे होंगे। बाराबंकी के हैदरगढ़ थाने की पुलिस को कुछ ही दूरी पर हाइवे के पास दो लाशें पड़ी होने की सूचना मिली। तुरंत ही जिले के उच्चाधिकारियों को सूचना दी गई। कुछ ही देर में थानाध्यक्ष सहित पुलिस के आला अफसर मौके पर थे। दोनों शव 25 से 30 साल के युवकों के थे। एक के शरीर पर साधारण पैंट-शर्ट, जबकि दूसरे के शरीर पर शानदार सूट था।

सूट वाले युवक के शव के पास लैपटॉप बैग के साथ ही एक और बैग पड़ा था। दोनों बैग खाली होने से माना गया कि लूटपाट के लिए हत्या की गई है।

पुलिस ने पहचान की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। दोनों शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए बाराबंकी जिला अस्पताल भेज दिया गया।

एक महीने बाद हुई शिनाख्त

बाराबंकी के तत्कालीन एडिशनल एसपी राजेश पांडेय के अनुसार हर संभव प्रयास के बावजूद पहचान नहीं हो पा रही थी। करीब एक महीने बाद सात फरवरी को सूट वाले युवक की पहचान आजमगढ़ के एक नेता के भाई के रूप में हुई।

परिवारीजनों ने बताया कि 31 दिसंबर की रात वह दिल्ली से ट्रेन के जरिए लखनऊ आया था। चारबाग पहुंचने के बाद फोन करके बताया था कि आजमगढ़ के लिए अभी कोई ट्रेन नहीं है। काफी सामान और रुपये होने के चलते टैक्सी से आ रहा है। इसके बाद से उसका कुछ पता नहीं चला।

परिवारीजनों ने चारबाग स्टेशन भी तलाशने पहुंचे थे लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। छह फरवरी को पता चला कि एक जनवरी को हैदरगढ़ थाने के पास दो लाशें मिली थीं।

सवारी लूटने वाला गिरोह

परिवार की जानकारी के बाद बाराबंकी पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि घटना किसी गैंग ने अंजाम दी गई हैं। बाराबंकी पुलिस ने चारबाग में जीआरपी थाने और नाका थाने की पुलिस से संपर्क किया, तो वहां भी दर्जन भर ऐसी घटनाओं की जानकारी मिली, जिसमें चारबाग से अपने-अपने घरों के लिए निकले लोग लापता थे। इस जानकारी के बाद बाराबंकी पुलिस ने आसपास के जिलों से जानकारी जुटाई।

राजेश पांडेय बताते हैं कि 10 दिनों में आसपास के जिलों से मिली जानकारी हैरान करने वाली थीं। पिछले चार महीनों में ऐसी 32 घटनाएं हुई थीं, जिसमें 40 सवारियों को लूटकर सड़क के किनारे फेंका गया था। इससे स्पष्ट हो गया कि चारबाग रेलवे स्टेशन से यात्रियों को बैठाने के बाद लूटने वाला गिरोह सक्रिय है। इस बीच पांच महीने बीत गए और बाराबंकी पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली। हां, छानबीन में इतना जरूर पता चला था कि बहराइच और बस्ती के गैंग इस तरह की घटनाएं करते रहे हैं। सालभर पहले एक गैंग का पर्दाफाश भी हुआ था।

बाराबंकी पुलिस ने उस मामले में पकड़े गए लोगों को बारे में जानकारी जुटानी शुरू की। पता चला कि बस्ती पुलिस ने ऐसे छह लुटेरों को सालभर पहले जेल भेजा था। सभी जमानत पर छूट चुके हैं और अपने घर छोड़कर फरार हैं।

बस्ती से मिला एक संदिग्ध

बाराबंकी के वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत मौर्य बताते हैं कि पुलिस ने बस्ती वाले गिरोह की तलाश शुरू की। गिरोह का एक सदस्य मोहन पुलिस के हाथ लग गया। हालांकि, उस समय कोई मामला नहीं होने के चलते पूछताछ के बाद उसे छोड़ दिया गया। उसने सवारियों को लूटने वाले गिरोह के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी। बताया कि ऐसे गैंग में पांच से छह लोग होते हैं।

ड्राइवर को छोड़ कर बाकी सवारियों के रूप में पहले से गाड़ी में बैठे रहते हैं। दो पीछे बैठते हैं। एक बीच की सीट पर और एक ड्राइवर के बगल वाली सीट पर। यह लोग ऐसी सवारी चुनते हैं, जो अकेली हो और सामान अधिक हो। ड्राइवर सवारी को बताता है कि बाकी सवारियां बैठी हैं। रास्ते में जहां सन्नाटा मिलता है। पीछे बैठे लोग अचानक सवारी के गले में गमछा डाल कर मार डालते हैं। इसके बाद सारा सामान निकालने के बाद रास्ते में गाड़ी से फेंक देते हैं। सबसे अहम यह कि गाड़ी के सभी कागज पूरे रखते हैं और कोई हथियार या डंडा नहीं रखते।

एसटीएफ को लगाया गया

गिरोह की कार्यप्रणाली जानने और मामला बढ़ता देख बाराबंकी पुलिस ने डीजीपी को जानकारी दी और एसटीएफ से तहकीकात का अनुरोध किया। बकौल राजेश पांडेय डीजीपी कार्यालय ने प्रदेशभर से इस तरह की घटनाओं का ब्योरा जुटाया, तो होश उड़ गए।

पिछले छह महीने में यूपी के थानों पर ऐसी साढ़े तीन सौ से अधिक घटनाएं दर्ज थीं। जिनमें चार सौ से अधिक लोगों की हत्या हुई थी। आनन-फानन में जांच में एसटीएफ को लगाया गया। एसटीएफ के तत्कालीन एडिशनल एसपी अनंत देव तिवारी के नेतृत्व में टीम सवारियों को लूटने वाले गिरोह की तलाश में जुट गई। करीब साल भर की पड़ताल में एसटीएफ ने गिरोह के बारे में जानकारी जुटा ली।

पता चला कि घटनाओं को अंजाम देने वाला गैंग बहराइच का है और सरगना रामपुर थैलिया (बहराइच) निवासी सलीम चिकवा है। गिरोह में करीब 20 सदस्य थे, जिनमें प्रमुख एजाज, अली अहमद, मंगलोल, डबलू और सलाथू थे।

गिरोह खत्म करने में लगे पांच साल

गैंग के बारे में जानकारी मिलने के बाद एसटीएफ की तीन टीमों को लगाया गया। 2008 में एसटीएफ ने मेरठ में सलीम चिकवा को दो साथियों अली अहमद और एजाज के साथ गिरफ्तार किया। सलीम ने पूछताछ में एक के बाद एक करीब साढ़े तीन सौ घटनाएं करने की बात कबूलीं।

तत्कालीन एसएसपी मेरठ इस खुलासे को लेकर एसटीएफ के साथ प्रेस कांफ्रेंस की। सलीम की गिरफ्तारी के दो महीने बाद एसटीएफ ने डबलू को लखनऊ से गिरफ्तार किया। पूछताछ में पता चला कि उनका साथी सलारू कानपुर जेल में रहीम के नाम से बंद है। एसटीएफ ने उसे भी रिमांड पर लेकर पूछताछ की।

2009 जनवरी में बहराइच की क्राइम ब्रांच ने मंगलोल उर्फ नूरा उर्फ नूर बक्श को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया। नूरा की गिरफ्तारी के दो महीने ही बीते थे कि मार्च 2009 में सलीम चिकवा वाराणसी से पेशी से लौटते समय भदोही में पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया।

एसटीएफ फिर पीछे लगी, तो वह नेपाल भाग गया। दो जनवरी 2010 को सलीम चिकवा नोएडा में एसटीएफ के साथ मुठभेड़ के दौरान मारा गया। एसटीएफ को उसके पास से एक वैगनआर गाड़ी और एके 47 राइफल मिली थी। राजेश पांडेय बताते हैं कि सवारियों की हत्या कर उन्हें लूटने वाले खूंखार गैंग को खत्म करने में पूरे पांच साल लग गए। इस दौरान गैंग के उक्त प्रमुख बदमाशों के साथ उनके छह साथियों को बाराबंकी पुलिस और तीन को बहराइच पुलिस ने अलग-अलग गिरफ्तार किया था।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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