सर्वेश द्विवेदी की खास रिपोर्ट
देश के शीर्ष पहलवान 140 दिन से भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। 18 जनवरी को पहली बार पहलवान धरने पर बैठे थे और 23 अप्रैल को दूसरी बार धरना शुरू किया। इस दौरान पहलवानों ने मौसम की मार झेली, पुलिस के साथ झड़प हुई। पहलवानों के खिलाफ एफआईआर भी हुई, लेकिन विरोध प्रदर्शन जारी रहा। हालांकि, पहलवानों और गृहमंत्री अमित शाह के बीच मुलाकात के बाद कहानी बदल गई और पहलवान अपनी नौकरियों पर पर लौट गए। बुधवार को खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने पहलवानों को मुलाकात के लिए बुलाया। खेल मंत्री से मिलने पहुंचे पहलवानों ने कहा कि उनका आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है।
अफ़वाहों का कोई सिरा नहीं होता। वे गोल होती हैं। कहाँ से उपजी और कहाँ तक गईं, पता ही नहीं चलता। महिला पहलवानों का आंदोलन, उनकी सरकार से बातचीत और मंत्रियों से मुलाक़ात, इसका ताज़ा और ज्वलंत उदाहरण है। जब कुछ महिला पहलवानों ने अपनी ड्यूटी वापस जॉइन की तो वॉट्सएपियों ने तरह-तरह के दस्तावेज परोसे। बयानों के दस्तावेज। बात का बतंगड़। रस्सी का साँप। … और भी बहुत कुछ।
आख़िर सब कुछ कोरी अफ़वाह से ज़्यादा कुछ नहीं निकला। पहले कहा महिला पहलवानों ने आंदोलन ख़त्म कर दिया है। फिर कहा एफआईआर भी वापस ले ली गई है। सफ़ेद झूठ। कुछ भी सही नहीं। सब कुछ ग़लत। न एफआईआर वापस ली गई और न ही आंदोलन की अगुआई कर रहे पहलवानों ने सरकार से कोई गुप्त समझौता किया।
इन पहलवानों ने चीख- चीखकर कहा कि हम ड्यूटी पर ज़रूर लौटे हैं, लेकिन हमने आंदोलन ख़त्म नहीं किया है। हमारी लड़ाई न्याय मिलने तक जारी रहेगी। ये ही पहलवान बुधवार को खेलमंत्री से आधिकारिक बात करके लौटे हैं और बातचीत के बाद उन्होंने कहा है कि सरकार ने बृजभूषण के खिलाफ कार्रवाई के लिए पंद्रह जून तक का समय माँगा है। इस मियाद के बीतने से पहले कार्रवाई नहीं की गई तो हम फिर धरना देंगे या सबकी सहमति से आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे।
इस बीच दिल्ली पुलिस अपनी सक्रियता दिखाने में जी- जान से जुट गई है। उसने बृजभूषण के उत्तरप्रदेश स्थित दो- तीन शहरों के घरों में जाकर उनके नौकरों से पूछताछ की। भला हो बृजभूषण शरण सिंह का जो खुद ही बुधवार को दिल्ली पहुँच गए। पुलिस ने लगे हाथ उनसे भी पूछताछ कर ली।
क्या पूछा होगा, यह बताने की ज़रूरत तो है नहीं। वैसे भी पॉक्सो में केस दर्ज होने पर तो तमाम पूछताछ गिरफ़्तारी के बाद ही होती है! भगवान जाने दिल्ली पुलिस पूछताछ के नाम पर बृजभूषण की ख़ातिर किस तरह कर रही होगी। उसे मेवे खिला रही होगी या डंडे का डर दिखा रही होगी। कम से कम इस मामले में तो दिल्ली पुलिस के पास से अपना डंडा भी छिन चुका है।
पता नहीं, इस बृजभूषण ने कोई जादू सीखा है या जन्मजात ही जादूगर है, उसके ख़िलाफ़ कोई बोल ही नहीं पा रहा है। न केन्द्र सरकार और न ही उत्तर प्रदेश की बलशाली सरकार! उधर खाप पंचायतें और किसान यूनियन पहलवानों की सरकार से डायरेक्ट बात होने से ठगी सी रह गई हैं।
दरअसल, न तो आंदोलन में अब इनकी भागीदारी रही और न ही सरकार से बातचीत में इनकी कोई जिद चली। इनके पास अब कहने को कुछ भी नहीं रहा, सिवाय इसके, कि हम तो पहले ही कह रहे थे कि बातचीत होनी चाहिए!
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."