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19 January 2025 11:07 pm

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स्वयंवर ; पान खाकर पति चुनती हैं लड़कियां, विदेशी युवकों को भी मिलती है मनपसंद दुल्हन

41 पाठकों ने अब तक पढा

मयंक जी की रिपोर्ट 

ये स्वयंवर का आयोजन पूर्णिया के बनमनखी प्रखंड के मलिनिया गांव में लगने वाले आदिवासियों के चर्चित मेले पत्ता मेला में किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर से आदिवासी युवक-युवतियां आते हैं और अपना मनपसंद जीवनसाथी चुनते हैं। अगर किसी लड़के को कोई लड़की पसंद आ जाती है तो वह उसे पान खाने के लिए प्रपोज करता है। अगर लड़की ने पान खा लिया तो मानो उसने अपने जीवनसाथी के रूप में उसे स्वीकार कर लिया है।

शादी से इनकार करने पर सुनाई जाती है सजा

लड़की के पान खाने इसके बाद सबकी सहमति से लड़का उसे अपने घर ले जाता है। फिर दोनों कुछ दिन साथ बिताते हैं। इसके बाद आदिवासी रीति-रिवाज से साथ दोनों की शादी कराई जाती है। अगर इस बीच किसी ने शादी से इनकार कर दिया तो आदिवासी समुदाय के लोग पंचायत कर इन्हें सजा सुनाई जाती है और जुर्माना लगाया जाता है।

दो दिन चलता है मेला

मलिनिया गांव में बैसाखी पर्व यानी सिरवा के दिन आदिवासियों का दो दिवसीय बहुचर्चित पत्ता मेला लगता है। इस पत्ता मेला में दूर-दूर से आदिवासी युवक युवतियां आते हैं।

बनाया जाता है बांस का बड़ा सा टावर

यहां बांस का एक बड़ा सा टावर भी बनाया जाता है। इस टावर पर चढ़कर आदिवासी लोग पूजा अर्चना करते हैं। इस 2 दिन के मेला में यहां पर जमकर आदिवासी नृत्य संगीत का आयोजन होता है। युवक-युवती एक दूसरे पर मिट्टी, रंग, अबीर डालकर जमकर होली भी खेलते हैं। इस दौरान वर वधू का चुनाव होता है।

पान खाने से इनकार पर दूसरी लड़की की खोज में लग जाता है लड़का

किसी युवक को अगर कोई युवती पसंद आती है तो वह उसे पान खाने के लिए प्रपोज करता है। अगर लड़की पान खा लिए तो यह माना जाता है कि वह उसे अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर लिया है। अगर पान खाने से लड़की इनकार कर देती है तो फिर लड़का दूसरी युवती की खोज में जुट जाता है।

स्वयंवर में नेपाल के अलावा भारत के इन राज्यों से शामिल होते हैं लोग

इस तरह 2 दिनों का यह खास पर्व होता है। इसमें नेपाल, बंगाल, झारखंड और आसपास के इलाके के आदिवासी लोग शामिल होते हैं। प्राचीन काल में भी स्वयंवर विधि से राजा महाराजाओं की बेटियों की शादी होती थी। लेकिन यह परंपरा विलुप्त हो चुकी थी। लेकिन प्रकृति प्रेमी आदिवासी आज भी इस परंपरा को जीवंत रखे हुए हैं, जिसकी झलक पूर्णिया के मलिनिया गांव में देखने को मिलता है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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